Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    वास्तुकला और शिल्प का बेजोड़ नमूना हैं हलेबिदु के मंदिर, सुनाते हैं होयसल राजवंश की गौरवगाथा

    Updated: Fri, 30 May 2025 07:16 PM (IST)

    Halebidu Temples कर्नाटक के हलेबिदु शहर का इतिहास रोमांचक है। कभी यह होयसल साम्राज्य की राजधानी थी। यहीं से विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी गई और दक्षिण भारत को मुस्लिम आक्रमणकारियों से बचाया गया। 12वीं शताब्दी में होयसल राजाओं के शासन में यह शहर अपने गौरव पर था। जानिए इसके बनने और उजड़ने की कहानी।

    Hero Image
    Halebidu Temples: कभी यह होयसल साम्राज्य की पूर्व राजधानी हुआ करता था।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। भारत के कर्नाटक राज्य के एक शहर हलेबिदु का इतिहास (Halebidu Temple history) रोमांचित करने वाला है। हालांकि, उससे भी ज्यादा रोमांचित करता है, इसका नाम। हलेबिदु का मतलब होता है पुराना या बर्बाद शहर। कभी यह होयसल साम्राज्य की पूर्व राजधानी हुआ करता था। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इसी जगह ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी और उत्तर की दिशा से आ रहे मुस्लिम आक्रांताओं से करीब 250 साल तक दक्षिण भारत को बचाए रखा। मैसूर से करीब 150 किमी दूर हलेबिदु दक्षिण भारत के हिंदू राजवंश होयसल राजाओं (Hoysala dynasty history) के बचे हुए गौरव का एक हिस्सा है।

    वास्तुकला का अद्भुत नमूना हैं यहां के मंदिर 

    12वीं शताब्दी में होयसल राजाओं के स्वर्णिम शासन कॉल के दौरान यह शहर (Halebidu travel guide) अपने पूर्ण गौरव पर था। उस वक्त इसका नाम द्वार समुद्र था और उस दौरान यहां बहुत भव्य और सुंदर मंदिर हुआ करते थे। सभी मंदिर द्रविड़ शैली में बने हैं और इनकी कलाकारी अद्भुत है। हालांकि, आज उनमें से बहुत ही कम मंदिर बचे हुए हैं। 

    मगर, जितने भी मंदिर बचे हैं, उनकी वास्तुकला देखने लायक है। इसे देखकर आप हैरान हो जाएंगे। विशाल मंदिरों में जगह-जगह भगवानों की मूर्तियों को उकेरा गया है। बताते हैं कि 12वीं सदी में यह जगह होयसल राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। होयसल जन्म से ही राजा नहीं थे। 

    हलेबिदु को बनाया था राजधानी 

    मगर, फिर भी 11वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी तक उन्होंने राज किया। इस दौरान वे जैन धर्म का पालन करते थे। राजा विष्णुवर्धन होयसल राजवंश के सबसे प्रसिद्ध राजा हुए थे। उन्होंने अपनी सेना के बल पर अपने राजवंश का नाम रोशन किया। 

    उन्होंने चोल साम्राज्य के साथ युद्ध किया और अपनी राजधानी बेलुर से हटाकर हलेबिदु को राजधानी बनाया। हालांकि इससे पहले उन्होंने यहां से करीब 50 किमी पहले अंगड़ी नाम की जगह को अपनी राजधानी बनाया था, जो कि आज कर्नाटक के जंगलों के बीच छोटा सा अनजाना गांव है।  

    ऐसे पड़ी थी होयसल राजवंश की नींव

    ओटीटी प्लेटफॉर्म डिस्कवरी प्लस के शो एकांत में अंगड़ी के एक मंदिर के पुजारी ने होयसल राजवंश की नींव पड़ने की कहानी सुनाई। वसंतिका देवी मंदिर के पुजारी दत्तात्रेय बताते हैं कि होयसल वंश के पहले राजा का नाम साला था। वह जंगल में अपने गुरु के साथ जा रहे थे। इस दौरान सामने से एक शेर आ गया। 

    उसे देखकर उनके गुरु ने साला के हाथ में एक त्रिशूल देकर कहा होय साला… जिसका पुरानी कन्नड भाषा में अर्थ होता है उसे मार दो साला। कहते हैं एक ही वार से साला ने उस शेर को ढेर कर दिया। उसी दिन से साला और उनके वंशज राजा बने और इस साम्राज्य की नींव पड़ी। 

    शिल्प और कला को दिया संरक्षण 

    इसी कहानी से होयसल राजाओं के प्रतीक चिह्न की प्रेरणा मिली, जो होयसल साम्राज्य की हर इमारत में देखने को मिलती है। होयसल शासन के दौरान बनी किसी भी इमारत के बाहर शेर का शिकार करते हुए एक व्यक्ति की मूर्ति लगी होती है। होयसल साम्राज्य के राजा विष्णुवर्धना और वीर बलाला के राज के दौरान संस्कृति, कला और शिल्प को बहुत बढ़ावा मिला। 

    बताते हैं कि उनके राजकॉल के दौरान 1500 से भी ज्यादा मंदिरों का निर्माण कराया गया। हालांकि, आज उनमें से महज 40 से 50 मंदिर ही बचे हुए हैं। अंगड़ी के बाद बेलूर होयसल साम्राज्य की राजधानी बना, जिसे उस वक्त बेलापुरी के नाम से भी जाना जाता था। उस समय यहां इतने मंदिर बने थे कि इसे दक्षिण का वाराणसी भी कहा जाता था। 

    इन मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध कर्नाटक के बेलुर का चन्नाकेश्वरा मंदिर है। यहां जकनाचार्य ने शिल्पकारी की थी। मंदिर का वास्तु और वहां लगी मूर्तियां देखने में उत्कृष्ट हैं। उनके सम्मान में आज भी यहां कर्नाटक सरकार शिल्पकारों को जकनाचार्य के नाम से एक पुरस्कार देती है। मीलों से चलकर भक्त पहुंचते हैं। 

    ऐसे हो गया बर्बाद

    द्वारसमुद्र का विनाश वीर बलाला तृतीय के दौर में शुरू हुआ। उस समय दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफूर को दक्षिण भारत पर हमला करने भेजा। उसने हलेबिदु की कई इमारतों को नुकसान पहुंचाया। वह दक्षिण भारत से दो हजार 41 टन सोना, 20 हजार घोड़े और 612 हाथी लूटकर दिल्ली ले गया था। 

    मलिक काफूर ने जब हलेबिदु में हमला किया था, तब वीर बलाला कहीं और युद्ध लड़ रहे थे। हलेबिदु का सर्वनाश न हो इसलिए उन्होंने शुल्क देने का समझौता कर लिया। हालांकि, वो जानते थे कि दिल्ली के शासक दक्षिण भारत पर कब्जा करना चाहते हैं। 

    यह भी पढ़ें- Chanakya Niti: रिश्तों में नहीं आएगी खटास, अगर चाणक्य की इन बातों का रखेंगे ध्यान

    लिहाजा, वह अपने दो सेनापति हक्का और बुक्का के साथ अपनी सेना को मजबूत बनाने में जुट गए। इस दौरान दिल्ली में खिलजियों का शासन खत्म हुआ और मलिक काफूर को भी मार दिया गया। उसके बाद तुगलग राजवंश का शासन शुरू हो गया। दक्षिण भारत के अभियान पर मोहम्मद बिन तुगलक ने भी अपनी सेना भेजी। 

    उसकी सेना कई राजाओं को हराते हुए मदुरै तक पहुंच गया। वहां वीर बलाला तृतीय की सेना ने उसे घेर लिया। तुगलक के सेनापति ने समझौता करने का झांसा दिया और कहा कि वह दिल्ली वापस चला जाएगा।

    हालांकि, बाद में वह अपनी बात से पलट गया और धोखे से वीर बलाला तृतीय की हत्या कर दी। इस तरह होयसला के आखिरी राजा का निधन हुआ और इसके साथ ही होयसल साम्राज्य का विघटन हुआ। 

    यह भी पढ़ें- Vrat Rules: व्रत के पहले पेटभर के खाना सही या गलत, पारण के बाद क्या खाना चाहिए 

    फिर विजयनगर साम्राज्य की हुई शुरुआत 

    वीर बलाला तृतीय के निधन के बाद उनके बेटे विरुपाक्ष राजा बने। हालांकि, वह अपने पिता की तरह कुशल, सक्षम, वीर और लोकप्रिय राजा नहीं बन सके। प्रजा भी उनसे ज्यादा भरोसा सेनापति हक्का और बक्का पर करती थी। होयसला के कई राजा स्वतंत्रता की मांग करने लगे। 

    लिहाजा, हक्का और बुक्का ने नए उभरते विजयनगर साम्राज्य में होयसल साम्राज्य को शामिल कर दिया जाए। इस तरह से होयसल साम्राज्य का पतन हुआ और नए साम्राज्य की नींव रखी, जो दुनियाभर में प्रसिद्ध हुआ। 

    डिस्क्लेमरः डिस्कवरी प्लस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुए शो ‘एकांत’ से जानकारी ली गई है।