Guru Purnima 2025: सिर्फ किताबें ही नहीं पढ़ाते, चरित्र भी बनते हैं गुरु... जानिए चाणक्य ने क्या बताएं हैं गुण
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2025) आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है जो गुरुओं को समर्पित है। इस दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था जिन्होंने वेदों की रचना की। गुरु का महत्व बताते हुए श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है कि ज्ञान के समान पवित्र कुछ नहीं है और यह गुरु के बिना संभव नहीं है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि विशेष रूप से गुरुओं को समर्पित होती है। शास्त्रों के अनुसार, इसी तिथि पर महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। वह पहले गुरु हैं, जिन्होंने चारों वेदों की रचना की है।
गुरु का जीवन में बहुत महत्व होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में लिखा है, ‘न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।’ इसका अर्थ है ज्ञान के समान पवित्र करने वाला इस संसार में कुछ भी नहीं है। इसका मतलब है कि ज्ञान सबसे शुद्ध और पवित्र चीज है, और इसे प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण है।
मगर यह गुरु के बिना संभव नहीं है। गुरु ऐसा हो, जो सिर्फ किताबी ज्ञान देने वाला न हो, वह पथ प्रदर्शक, मार्गदर्शक भी होना चाहिए। वह छात्र को सही-गलत, उचित-अनुचित का ज्ञान कराने वाला होना चाहिए। एक अच्छा गुरु कौन हो सकता है, इस बारे में आचार्य चाणक्य ने कई बातें कहीं हैं।
उनके अनमोल वचन चाणक्य नीति में लिखे गए हैं। गुरु पूर्णिमा के इस मौके पर आइए जानते हैं कि चाणक्य कैसे गुरु थे। उन्होंने गुरु के कौन से गुण बताएं हैं, जो किसी भी व्यक्ति को अपना गुरु चुनते समय देखने चाहिए।
मौर्य साम्राज्य बना दिया
आचार्य चाणक्य मौर्य साम्राज्य के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। वह मौर्य साम्राज्य, जिसकी सीमाएं पाने के लिए अंग्रेज तरसते रहे। वह मौर्य साम्राज्य जिसकी सत्ता सैकड़ों साल तक बनी रही। उन्होंने साधारण परिवार में जन्मे चंद्रगुप्त में राजा बनने की संभावनाएं देखीं।
उन्होंने चंद्रगुप्त को सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं दिया, बल्कि नीति, युद्ध-कौशल और शासन की बारीकियां सिखाईं। उन्होंने एक सामान्य बच्चे को चक्रवर्ती सम्राट बना दिया। चाणक्य ने इस उदाहरण के जरिये दुनिया को बताया कि शिष्य की सामाजिक स्थिति को गुरु नहीं देखता है। गुरु को क्षमता, निष्ठा और छात्र के सीखने की जिज्ञासा को महत्व देना चाहिए।
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चरित्र निर्माण कराने वाला है गुरु
चाणक्य कहते हैं कि सच्चा गुरु सत्य का मार्ग दिखाता है। वह निस्वार्थ होकर शिष्य के हित में काम करता है। वह न सिर्फ शिष्य को अनुशासन सिखाता है, बल्कि स्वयं भी अनुशासन में रहता है और इस तरह से वह छात्र के चरित्र निर्माण का सूत्रधार बन जाता है। इसलिए गुरु चुनते समय यह जरूर देखना चाहिए कि गुरु जो कह रहे हैं, कर रहे हैं क्या उसका पालन वह स्वयं भी कर रहे हैं।
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