Guru Purnima 2025: तुलसीदास जी ने बजरंगबली को क्यों माना गुरु, हनुमान चालीसा में क्या लिखा है
गुरु पूर्णिमा पर शिष्य गुरु का आभार व्यक्त करते हैं क्योंकि गुरु उन्हें अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाते हैं। इस बार गुरु पूर्णिमा की तिथि (Guru Purnima 2025) 10 जुलाई को मनाई जाएगी। तुलसीदास जैसे महान भक्त को भी गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिला। हनुमान जी को तुलसीदास जी ने अपना गुरु मानकर हनुमान चालीसा में गुरु की महिमा का वर्णन किया है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरु का आभार व्यक्त करते हैं, क्योंकि वह उनको अंधकार से निकालकर ज्ञान रूपी उजाले में ले जाते हैं। स्नान और दान के लिए उत्तम यह तिथि इस बार 10 जुलाई को मनाई जाएगी। सामान्य लोगों को तो छोड़िए, तुलसीदास जैसे सिद्ध पुरुषों और भक्तों को भी गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता है।
इस बारे में एक कथा है। मान्यता है कि तुलसीदास ने रामचरितमानस के सात कांडों को काशी में लिखा था। फिर वह भगवान राम के दर्शन के लिए चित्रकूट आ गए थे। कहते हैं कि तुलसीदास जी चित्रकूट के रामघाट पर अपने आराध्य को याद करते हुए चंदन घिस रहे थे।
तभी वहां दो बालक आकर उनसे चंदन लगाने को कहते हैं। तुलसीदास जी उन बालकों से कहते हैं कि क्यों परेशान कर रहे हो। यहां और भी तो पंडा हैं। उनसे जाकर तिलक लगवा लो। तब हनुमान जी तोते के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने चौपाई कही- चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसैं, तिलक देत रघुवीर।
तब हनुमानजी ने भी दिए दर्शन
यह सुनकर उन्हें ज्ञात हो गया कि वो बालक कोई और नहीं राम और लक्ष्मण हैं। इस चौपाई को सुनकर तुलसीदास जी ने बालकों के रूप में खड़े भगवान राम और लक्ष्मण को पहचान लिया और उनके चरणों में गिर गए। तब हनुमान जी ने भी उन्हें अपने असली स्वरूप में दर्शन दिए।
इसके बाद तुलसीदास जी ने हनुमान जी को अपना गुरु मान लिया। उन्होंने हनुमान चालीसा का पहला दोहा भी गुरु को ही समर्पित करते हुए लिखा-
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल, बुधि, बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
इसका अर्थ है- श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्रीरघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाले हैं। हे पवन कुमार! मैं आपको याद करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है।
मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि और ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों और दोषों का नाश कार दीजिए। गुरु से उन्होंने वो सब मांग लिया, जो किसी भी इंसान के लिए जरूरी होता है। शारीरिक बल, बुद्धि, ज्ञान और समस्त दुखों का नाश करने का वर।
हनुमान चालीसा की एक और चौपाई में भी उन्होंने गुरुदेव की महिमा बताते हुए लिखा है-
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
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इसका अर्थ है- हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझ पर कृपालु श्री गुरु जी की तरह से कृपा करें। जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा, वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा। जो इस हनुमान चालीसा को पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी इस बात के साक्षी भगवान शंकर हैं।
इसमें भी उन्होंने रामभक्त भगवान हनुमान से वर नहीं मांगा है। उन्होंने अपने गुरु के रूप में बजरंगबली से आग्रह किया है कि वह गुरु की तरह से उन पर कृपा करें। यह भी कहा है कि जो भी व्यक्ति इस हनुमान चालीसा का 100 बार पाठ करेगा, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाएगा और इस बात के गवाह स्वयं गौरीश यानी शंकरजी हैं।
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