मरकर भी पीछा नहीं छोड़ता 'कर्ज', गरुड़ पुराण की ये चेतावनी सुनकर कांप जाएगी रूह!
गरुड़ पुराण बताता है कि कर्ज चुकाए बिना मरने पर व्यक्ति को यमलोक में कठोर यातनाएं मिलती हैं। अगले जन्म में उसे वो कर्ज उतारना पड़ता है, जिसका उसने पैस ...और पढ़ें

Garuda Purana: गरुण पुराण (AI-generated image)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली: आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में बैंक लोन, क्रेडिट कार्ड या अपनों से उधार लेना एक आम बात हो गई है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि अगर कोई व्यक्ति किसी का पैसा हड़प ले या कर्ज चुकाए बिना ही उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसके साथ क्या होता है? सनातन धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ 'गरुड़ पुराण' में इसका जवाब दिया गया है, जो किसी को भी हैरान कर सकता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार, कर्ज लेना केवल एक आर्थिक लेन-देन नहीं है, बल्कि यह एक 'कर्म बंधन' है। अगर आप किसी का पैसा लेकर उसे वापस नहीं करते, तो कुदरत का कानून आपसे वह पैसा पाई-पाई करके वसूलता है- भले ही इसके लिए आपको दूसरा जन्म ही क्यों न लेना पड़े।
यमलोक में मिलती है कठोर सजा
गरुड़ पुराण के अनुसार, जब कोई कर्जदार व्यक्ति मरता है, तो यमराज के दूत उसे यमलोक ले जाते समय रास्ते में बहुत प्रताड़ित करते हैं। माना जाता है कि जो लोग सामर्थ्य होने के बावजूद जानबूझकर दूसरों का पैसा दबा लेते हैं, उन्हें नरक की भीषण आग और कष्टों का सामना करना पड़ता है। वहां आत्मा को तब तक शांति नहीं मिलती, जब तक उसका हिसाब चुकता नहीं हो जाता।
अगले जन्म में बनना पड़ता है नौकर या पशु
इस कहानी का सबसे चौंकाने वाला पहलू 'पुनर्जन्म' से जुड़ा है। गरुड़ पुराण में लिखा है कि यदि कोई व्यक्ति कर्ज चुकाए बिना मर जाता है, तो उसे अगले जन्म में उसी व्यक्ति के घर में जन्म लेना पड़ता है जिसका उसने पैसा लिया था। वह उस घर में नौकर या दास बनकर जन्म ले सकता है। या फिर उसे बैल, घोड़ा या कोई अन्य पशु बनकर उस घर में आना पड़ता है। वह अपनी पूरी जिंदगी उस व्यक्ति की सेवा करता है और मेहनत के जरिए अपने पिछले जन्म का कर्ज उतारता है। जब कर्ज की राशि के बराबर सेवा पूरी हो जाती है, तभी उस आत्मा को उस बंधन से मुक्ति मिलती है।
दान और पुण्य भी नहीं आता काम
गरुड़ पुराण यह भी चेतावनी देता है कि अगर आपके सिर पर किसी का हक (पैसा) बकाया है, तो आपके द्वारा किए गए दान-पुण्य का फल भी आपको पूरी तरह नहीं मिलता। पहले वह फल उस कर्ज को भरने में चला जाता है। इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति को अपनी मृत्यु से पहले अपने सभी सांसारिक ऋणों (कर्जों) से मुक्त हो जाना चाहिए।
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