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    Ganga Dussehra 2025: गंगा दशहरा नहीं कर पाएंगे गंगा स्नान, तो पितरों के मोक्ष के लिए घर पर करें ये काम

    Updated: Sat, 31 May 2025 08:00 AM (IST)

    गंगा दशहरा पर पितरों की शांति और मोक्ष के लिए यदि गंगा तट पर जाना संभव नहीं है तो घर पर ही उपाय किया जा सकता है। ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास के अनुसार नहाने की बाल्टी में थोड़ा गंगा जल डालकर फिर स्नान करें। काले तिल और सफेद फूल अर्पित करें ‘पितृ चालीसा’ का पाठ करें।

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    Ganga Dussehra 2025: घर पर भी कर सकते हैं पितरों की शांति के लिए यह उपाय।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। इस दुनिया में हमें सुखी छोड़कर हमारे जो पूर्वज जा चुके हैं, उनकी आत्मा की शांति और मोक्ष का रास्ता बनाना हर सनातनी का धर्म भी है और कर्म भी है। यदि पितृ प्रसन्न होते हैं, तो उनकी कृपा और आशीर्वाद मिलता है। इसके लिए गंगा दशहरा पर गंगा स्नान करने के बाद तर्पण और दान-पुण्य करना जरूरी है। 

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    इस साल 5 जून को गुरुवार के दिन गंगा दशहरा मनाया जाएगा। ऐसे में हर किसी के लिए यह संभव नहीं है कि वह गंगा दशहरे के दिन मोक्षदायिनी मां गंगा के तट पहुंच सके। ऐसी स्थिति में जो लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति चाहते हैं और उनके मोक्ष का रास्ता बनाना चाहते हैं वो क्या करें। 

    घर पर करें ये उपाय 

    इंदौर के ज्योतिषाचार्य पंडित गिरीश व्यास ने बताया कि इसका एक उपाय है, जो उतना ही कारगर है, जितना गंगा तट पर पहुंचकर तर्पण करना है। यह तरीका शास्त्र सम्मत भी है। आपको नहाने की बाल्टी में पहले थोड़ा सा गंगा जल डालना है। इसके बाद उसमें नहाने का पानी भर लें। 

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    अब यह पानी नहीं गंगा का ही जल माना जाएगा। इस जल से स्नान करने के बाद काले तिल और सफेद फूल लेकर अपने ज्ञात और अज्ञात पितरों का ध्यान करते हुए उन्हें वह अर्पित कर दें। इसके बाद ‘पितृ चालीसा’ का पाठ करें और पितरों की आत्मा की शांति और उनके मोक्ष की कामना करें। 

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    श्री पितर चालीसा

    ॥ दोहा ॥

    हे पितरेश्वर आपको,दे दियो आशीर्वाद।

    चरणाशीश नवा दियो,रखदो सिर पर हाथ॥

    सबसे पहले गणपत,पाछे घर का देव मनावा जी।

    हे पितरेश्वर दया राखियो,करियो मन की चाया जी॥

    ॥ चौपाई ॥

    पितरेश्वर करो मार्ग उजागर।चरण रज की मुक्ति सागर॥

    परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा।मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा॥

    मातृ-पितृ देव मनजो भावे।सोई अमित जीवन फल पावे॥

    जै-जै-जै पित्तर जी साईं।पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं॥

    चारों ओर प्रताप तुम्हारा।संकट में तेरा ही सहारा॥

    नारायण आधार सृष्टि का।पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का॥

    प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते।भाग्य द्वार आप ही खुलवाते॥

    झुंझुनू में दरबार है साजे।सब देवों संग आप विराजे॥

    प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा।कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा॥

    पित्तर महिमा सबसे न्यारी।जिसका गुणगावे नर नारी॥

    तीन मण्ड में आप बिराजे।बसु रुद्र आदित्य में साजे॥

    नाथ सकल संपदा तुम्हारी।मैं सेवक समेत सुत नारी॥

    छप्पन भोग नहीं हैं भाते।शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते॥

    तुम्हारे भजन परम हितकारी।छोटे बड़े सभी अधिकारी॥

    भानु उदय संग आप पुजावै।पांच अँजुलि जल रिझावे॥

    ध्वज पताका मण्ड पे है साजे।अखण्ड ज्योति में आप विराजे॥

    सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी।धन्य हुई जन्म भूमि हमारी॥

    शहीद हमारे यहाँ पुजाते।मातृ भक्ति संदेश सुनाते॥

    जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा।धर्म जाति का नहीं है नारा॥

    हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई।सब पूजे पित्तर भाई॥

    हिन्दु वंश वृक्ष है हमारा।जान से ज्यादा हमको प्यारा॥

    गंगा ये मरुप्रदेश की।पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की॥

    बन्धु छोड़ना इनके चरणां।इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा॥

    चौदस को जागरण करवाते।अमावस को हम धोक लगाते॥

    जात जडूला सभी मनाते।नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते॥

    धन्य जन्म भूमि का वो फूल है।जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है॥

    श्री पित्तर जी भक्त हितकारी।सुन लीजे प्रभु अरज हमारी॥

    निशदिन ध्यान धरे जो कोई।ता सम भक्त और नहीं कोई॥

    तुम अनाथ के नाथ सहाई।दीनन के हो तुम सदा सहाई॥

    चारिक वेद प्रभु के साखी।तुम भक्तन की लज्जा राखी॥

    नाम तुम्हारो लेत जो कोई।ता सम धन्य और नहीं कोई॥

    जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत।नवों सिद्धि चरणा में लोटत॥

    सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी।जो तुम पे जावे बलिहारी॥

    जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे।ताकी मुक्ति अवसी हो जावे॥

    सत्य भजन तुम्हारो जो गावे।सो निश्चय चारों फल पावे॥

    तुमहिं देव कुलदेव हमारे।तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे॥

    सत्य आस मन में जो होई।मनवांछित फल पावें सोई॥

    तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।शेष सहस्र मुख सके न गाई॥

    मैं अतिदीन मलीन दुखारी।करहु कौन विधि विनय तुम्हारी॥

    अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै।अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै॥

    ॥ दोहा ॥

    पित्तरौं को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम।

    श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम॥

    झुंझुनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान।

    दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान॥

    जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझुनू धाम।

    पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान॥

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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