Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Ganesh Ji Ki Aarti: इस आरती के बिना नहीं पूरी होती है गणपति बप्पा की पूजा, बन जाएंगे बिगड़े काम

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Tue, 06 May 2025 11:35 PM (IST)

    वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर रवि योग का संयोग बन रहा है। इस योग में भगवान गणेश की पूजा (Ganesh Ji Puja Vidhi) करने से साधक को जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलेगी। साथ ही बुध देव की कृपा साधक पर बरसती है।

    Hero Image
    Ganesh Ji Ki Aarti: भगवान गणेश को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, बुधवार 07 मई को वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सुबह तक दशमी तिथि है। इसके बाद एकादशी तिथि शुरू होगी। बुधवार का दिन भगवान गणेश को प्रिय है। इसके लिए बुधवार के दिन भगवान गणेश की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृ्द्धि के लिए साधक व्रत भी रखते हैं। इस व्रत को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ज्योतिष कारोबार में सफलता पाने के लिए भगवान गणेश की पूजा करने की सलाह देते हैं। भगवान गणेश की पूजा से बुध देव प्रसन्न होते हैं। बुध देव को व्यापार का दाता कहा जाता है। उनकी कृपा बरसने से साधक को कारोबार में मनमुताबिक सफलता मिलती है। अगर आप भी गणपति बप्पा की कृपा पाना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा करें। वहीं, पूजा का समापन गणेश जी की आरती से करें। इस आरती के बिना भगवान गणेश की पूजा अधूरी मानी जाती है।

    यह भी पढ़ें: भगवान शिव की पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ, कालसर्प दोष में मिलेगी राहत

    गणेश चालीसा

    ॥ दोहा ॥

    जय गणपति सदगुण सदन,कविवर बदन कृपाल।

    विघ्न हरण मंगल करण,जय जय गिरिजालाल॥

    ॥ चौपाई ॥

    जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभः काजू॥

    जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥

    वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

    राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

    पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥

    सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥

    धनि शिव सुवन षडानन भ्राता। गौरी लालन विश्व-विख्याता॥

    ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे। मुषक वाहन सोहत द्वारे॥

    कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुची पावन मंगलकारी॥

    एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥

    भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥

    अतिथि जानी के गौरी सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥

    अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

    मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥

    गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥

    अस कही अन्तर्धान रूप हवै। पालना पर बालक स्वरूप हवै॥

    बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥

    सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥

    शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥

    लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा॥

    निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं॥

    गिरिजा कछु मन भेद बढायो।उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥

    कहत लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥

    नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहयऊ॥

    पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥

    गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी। सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥

    हाहाकार मच्यौ कैलाशा। शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥

    तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटी चक्र सो गज सिर लाये॥

    बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥

    नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥

    बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥

    चले षडानन, भरमि भुलाई।रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥

    चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

    धनि गणेश कही शिव हिये हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

    तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहसमुख सके न गाई॥

    मैं मतिहीन मलीन दुखारी। करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥

    भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥

    अब प्रभु दया दीना पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥

    ॥ दोहा ॥

    श्री गणेश यह चालीसा,पाठ करै कर ध्यान।

    नित नव मंगल गृह बसै,लहे जगत सन्मान॥

    सम्बन्ध अपने सहस्र दश,ऋषि पंचमी दिनेश।

    पूरण चालीसा भयो,मंगल मूर्ती गणेश॥

    गणेश जी की आरती

    जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।

    माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

    एकदन्त दयावन्त,चार भुजाधारी।

    माथे पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी॥

    पान चढ़े फूल चढ़े,और चढ़े मेवा।

    लड्डुअन का भोग लगे,सन्त करें सेवा॥

    जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।

    माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

    अँधे को आँख देत,कोढ़िन को काया।

    बाँझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥

    'सूर' श्याम शरण आए,सफल कीजे सेवा।

    माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

    दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी।

    कामना को पूर्ण करो,जग बलिहारी॥

    जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।

    माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥

    यह भी पढ़ें: मेष राशि वालों को कब मिलेगा साढ़ेसाती से छुटकारा, इन उपायों से पाएं शनिदेव की कृपा

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।