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    Durga Ashtami 2025: सावन माह की दुर्गा अष्टमी पर करें इस चालीसा का पाठ, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Wed, 30 Jul 2025 08:30 PM (IST)

    सावन माह के शुक्ल पक्ष में हरियाली तीज नाग पंचमी दुर्गा अष्टमी (Durga Ashtami 2025) पुत्रदा एकादशी सावन सोमवार और रक्षा बंधन समेत कई प्रमुख व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। दुर्गा अष्टमी के दिन देवी मां दुर्गा की पूजा एवं भक्ति की जाती है। इस शुभ तिथि पर दान करना उत्तम माना जाता है।

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    Durga Ashtami 2025: मां दुर्गा को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन माह की दुर्गा अष्टमी शुक्रवार 01 अगस्त को धूमधाम से मनाई जाएगी। यह पर्व हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन जगत की देवी मां दुर्गा की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही मनचाही मुराद पाने के लिए व्रत रखा जाता है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक को मनोवांछित फल मिलता है।

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    अगर आप भी देवी मां दुर्गा को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो सावन माह की दुर्गा अष्टमी पर विधिवत मां दुर्गा की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय दुर्गा चालीसा का पाठ और मंत्र का जप करें। वहीं, पूजा का समापन ''ॐ जय अम्बे गौरी…'' आरती से करें।

    दुर्गा चालीसा

    नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

    निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥

    शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

    रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥

    तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥

    अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

    तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

    शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

    रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

    धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥

    रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

    लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥

    क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

    हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥

    मातंगी अरु धूमावती माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

    श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

    केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥

    कर में खप्पर खड्ग विराजै । जाको देख काल डर भाजै॥

    सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

    नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहूं लोक में डंका बाजत॥

    शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥

    महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

    रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

    परी गाढ़ सन्तन र जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥

    अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥

    ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नरनारी॥

    प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

    ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्ममरण ताकौ छुटि जाई॥

    जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

    शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

    निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

    शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥

    शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

    भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

    मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

    आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें॥

    शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

    करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि सिद्धि दै करहु निहाला॥

    जब लगि जिऊँ दया फल पाऊं । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥

    श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परम पद पावै॥

    देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।

    दुर्गा जी की आरती

    ॐ जय अम्बे गौरी…

    जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।

    तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।

    उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।

    रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।

    सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।

    कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।

    धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।

    मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।

    आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।

    बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता,

    भक्तन की दुख हरता । सुख संपति करता ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी ।

    मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।

    श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।

    कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥

    ॐ जय अम्बे गौरी...

    जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।