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    Dronagiri Parvat: क्यों द्रोणागिरी पर्वत के पास बसे लोग हनुमान जी से हैं खफा? त्रेता युग से जुड़ा है कनेक्शन

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 28 Nov 2024 07:14 PM (IST)

    मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम(Dronagiri Mountain) की पूजा करने से साधक की फूटी किस्मत भी बदल जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि राम से बढ़कर राम का नाम है। अतः राम नाम का जप करने वाले साधक पर हनुमान जी की विशेष कृपा बरसती है। उनकी कृपा से साधक को सभी क्षेत्रों में सफलता मिलती है। साथ ही बिगड़े काम बन जाते हैं।

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    Dronagiri Parvat: द्रोणागिरी पर्वत का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मंगलवार का दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान जी को समर्पित है। इस दिन राम परिवार संग हनुमान जी की पूजा की जाती है। साथ ही मंगलवार का व्रत रखा जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि त्रेता युग में मंगलवार के दिन ही भगवान श्रीराम की अपने परम भक्त हनुमान जी से भेंट हुई थी। इस शुभ अवसर पर हर वर्ष बड़ा मंगल मनाया जाता है।

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    शास्त्रों में निहित है कि लंका विजय में हनुमान जी ने अहम भूमिका निभाई थी। वानर सेना की मदद से भगवान श्रीराम ने रावण पर विजयश्री प्राप्त की थी। वाल्मीकि जी द्वारा लिखित रामायण में द्रोणागिरी पर्वत का उल्लेख है। लेकिन क्या आपको पता है कि रामायण में उल्लेखित द्रोणागिरी पर्वत (Dronagiri Mountain myth) क्यों प्रसिद्ध है?

    यह भी पढ़ें: भगवान श्रीराम को कब और कैसे प्राप्त हुआ था कोदंड धनुष और क्या थी इसकी खासियत?

    भगवान श्रीराम

    मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम त्रेता युग (Treta Yuga story) के समकालीन थे। उन्हें अपने जीवन में केवल और केवल दुखों का सामना करना पड़ा था। भक्ति काल के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी रचना रामचरित्रमानस में भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र का वर्णन विस्तारपूर्वक किया है।

    रामचरित्रमानस में वर्णित है कि अयोध्या नरेश बनने से एक दिन पहले भगवान श्रीराम को चौदह वर्षों का वनवास मिला। अगले दिन पिता की आज्ञा का पालन कर भगवान श्रीराम अपनी धर्मपत्नी जग की देवी मां सीता और अनुज लक्ष्मण जी के साथ वनवास चले गये। वनवास के दौरान भगवान श्रीराम लंबे समय तक दण्डकारण्य वन में रहें। दण्डकारण्य वन रावण का गढ़ था। यह वन असुरों से भरा था। भगवान श्रीराम ने असुरों का वध कर दण्डकारण्य वन को रावण के आतंक से मुक्त कराया था।

    ऐसा कहा जाता है कि दण्डकारण्य वन में भगवान श्रीराम ने कोदंड धनुष का निर्माण किया था। वनवास के दौरान लंकापति रावण ने मां जानकी का हरण कर लिया था। उस समय भगवान श्रीराम के परम भक्त और सेवक हनुमान जी ने मां जानकी का पता लगाया था। लंका नरेश रावण ने मां जानकी को अशोक वाटिका में रखा था।

    हनुमान जी (Lord Hanuman) के बल से रावण भलीभांति वाकिफ थे। इसका वर्णन रामचरित्रमानस में भी गोस्वामी तुलसीदास ने की है। वानर सेना की मदद से भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर मां जानकी को मुक्त कराया था। युद्ध के दौरान मेघनाथ के ब्रह्मास्त्र से लक्ष्मण जी मूर्छित हो गये थे। उस समय सुषेण वैद्य के कहने पर हनुमान जी ने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी के प्राण की रक्षी की थी। संजीवनी बूटी द्रोणागिरी पर्वत पर मिलता है।

    द्रोणागिरी पर्वत

    मेघनाथ के ब्रह्मास्त्र से लक्ष्मण जी मूर्छित हो गये। यह देख मेघनाथ, लक्ष्मण जी के पास आये और उन्हें उठाने की कोशिश की। इसमें इंद्रजीत को सफलता नहीं मिली। तब हनुमान जी ने गदा से प्रहार कर मेघनाथ के बल को भंग किया। इसके बाद लक्ष्मण जी को लेकर भगवान श्रीराम के पास पहुंचे। लक्ष्मण जी को मूर्छित देख भगवान श्रीराम विलाप करने लगे।

    तब विभीषण जी ने उन्हें सुषेण वैद्य से संपर्क करने की सलाह दी। सुषेण वैद्य की सलाह पर हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने द्रोणागिरी पर्वत पहुंचे। जब उन्हें संजीवनी बूटी नहीं मिली या सभी बूटी एक सामान देख हनुमान जी ने द्रोणागिरी पर्वत को ही उठाकर लंका पहुंच गये। संजीवनी बूटी से लक्षमण जी को नवजीवन मिला। कहते हैं कि द्रोणागिरी पर्वत को लंका ले जाने के चलते द्रोणागिरी पर्वत के पास रहने वाले लोग हनुमान जी से अप्रसन्न रहते हैं।

    यह भी पढ़ें: भगवान श्रीराम को कब और कैसे प्राप्त हुआ था कोदंड धनुष और क्या थी इसकी खासियत?

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।