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    Lord Shri Ram: प्रभु श्री राम के चरित्र से लेंगे ये सीख, तो कभी नहीं देखना पड़ेगा हार का मुंह

    Updated: Fri, 29 Dec 2023 11:27 AM (IST)

    Shri Ramcharit Manas रामचरितमानस जो तुलसीदास द्वारा रचित है हिंदू धर्म की सबसे प्रमुख और लोकप्रिय कृति मानी गई है। भगवान श्रीराम ने कभी भी अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहा जाता है। ऐसे में आज के युग में भगवान राम के चरित्र से कई बातें सीखी जा सकती हैं जो व्यक्ति को हर स्थिति के लिए तैयार करती हैं।

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    Lord Shri Ram प्रभु श्री राम के चरित्र से सीखें ये बातें।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Lord Shri Ram: हिंदू धर्म में भगवान राम को भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है। वे अयोध्या के महाराजा दशरथ के 4 पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र थे। उन्हें एक आदर्श पुरुष के रूप में देखा जाता है। उनके चरित्र में ऐसी कई विशेषताएं हैं जिन्हें अपनाने पर व्यक्ति हर समस्या का निदान पा सकता है। 

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    माता-पिता का आज्ञा का पालन

    भगवान राम सबसे बड़े पुत्र थे, इस अधिकार से उन्हें अध्योया की राजगद्दी सौंपी जानी थी। लेकिन माता कैकेयी के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने राजपाट की जगह वनवास चुना। इससे मानव मात्र को यह शिक्षा लेनी चाहिए की माता-पिता की आज्ञा का पालन करना ही संतान का सबसे पहला धर्म है।

    धैर्यशीलता का सबसे अच्छा उदाहरण

    आज के इस समय में मनुष्य में धैर्य की कमी पाई जाती है, जो व्यक्ति के लिए कई समस्याएं खड़ी कर देती है। ऐसे में राम जी का जीवन धैर्य का एक उत्तम उदाहरण है। जब माता कैकेयी ने राम जी को 14 वर्ष का वनवास का आदेश दिया तब राम जी ने इसे पूरे धैर्य के साथ स्वीकारा। वहीं, समुद्र पर सेतु तैयार करने के लिए तपस्या की। इसके साथ ही जब माता सीता को पुनः वन में जाना पड़ा तब श्री राम ने भी राजा होते हुए भी संन्यासी की तरह जीवन व्यतीत किया।

    आदर्श भाई का प्रतीक हैं श्री राम

    एक आदर्श पुत्र होने के साथ-साथ राम जी एक आदर्श भाई का भी उत्तम उदाहरण हैं। आज के इस कलयुग में जब भाई, भाई का दुश्मन बन जाता है। ऐसे में वनवास के दौरान राम जी के भाई भरत उन्हें वापिस अयोध्या लेने आए तो उन्होंने माता-पिता की आज्ञा को ही सर्वोपरि रखा और राजपाट भरत को ही सौंप दिया।

    बने श्री राम जैसा मित्र

    मित्रता निभाने में भी राम जी सबसे आगे रहे हैं। केवट, सुग्रीव और विभीषण आदि उनके परम मित्र रहे और स्वयं इन सभी के संकट झेले। बिना कोई भेदभाव किए उन्होंने सभी के साथ अपनी दोस्ती निभाई।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'