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    Chitragupta Puja 2025: चित्रगुप्त पूजा और भाई दूज का शुभ संयोग, करें ये विशेष आरती, दूर होंगे सभी कष्ट

    Updated: Thu, 23 Oct 2025 08:59 AM (IST)

    दीपावली के पांच दिवसीय पर्व का समापन कार्तिक शुक्ल द्वितीया को होता है, जब भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा का शुभ संयोग बनता है। इस दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं, वहीं कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है।

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    Chitragupta Puja 2025 And Bhai Dooj 2025 Aarti: भगवान यमराज और चित्रगुप्त जी की आरती 

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। दीपावली के पांच दिवसीय पर्व का समापन कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को होता है। इस दिन दो महत्वपूर्ण पर्वों का शुभ संयोग बनता है। भाई दूज (Bhai Dooj 2025) और चित्रगुप्त पूजा (Chitragupta Puja 2025) यह संयोग बेहद पवित्र माना जाता है, क्योंकि इस दिन जहां बहनें अपने भाई की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं, वहीं दूसरी ओर कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की पूजा होती है।

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    इस साल यह शुभ संयोग 23 अक्टूबर, दिन गुरुवार यानी आज बन रहा है। आइए इस दिन को और भी शुभ बनाने के लिए भगवान यमराज और चित्रगुप्त जी की आरती करते हैं, जो इस प्रकार हैं -

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    ।।भगवान चित्रगुप्त जी की आरती।। (Shri Chitragupt Ji Ki Aarti)

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे,

    स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।

    भक्तजनों के इच्छित,

    फलको पूर्ण करे॥

    विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,

    सन्तनसुखदायी ।

    भक्तों के प्रतिपालक,

    त्रिभुवनयश छायी ॥

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

    रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत,

    पीताम्बरराजै ।

    मातु इरावती, दक्षिणा,

    वामअंग साजै ॥

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

    कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक,

    प्रभुअंतर्यामी ।

    सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन,

    प्रकटभये स्वामी ॥

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

    कलम, दवात, शंख, पत्रिका,

    करमें अति सोहै ।

    वैजयन्ती वनमाला,

    त्रिभुवनमन मोहै ॥

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

    विश्व न्याय का कार्य सम्भाला,

    ब्रम्हाहर्षाये ।

    कोटि कोटि देवता तुम्हारे,

    चरणनमें धाये ॥

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

    नृप सुदास अरू भीष्म पितामह,

    यादतुम्हें कीन्हा ।

    वेग, विलम्ब न कीन्हौं,

    इच्छितफल दीन्हा ॥

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

    दारा, सुत, भगिनी,

    सबअपने स्वास्थ के कर्ता ।

    जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,

    तुमतज मैं भर्ता ॥

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

    बन्धु, पिता तुम स्वामी,

    शरणगहूँ किसकी ।

    तुम बिन और न दूजा,

    आसकरूँ जिसकी ॥

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

    जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,

    प्रेम सहित गावैं ।

    चौरासी से निश्चित छूटैं,

    इच्छित फल पावैं ॥

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

    न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी,

    पापपुण्य लिखते ।

    'नानक' शरण तिहारे,

    आसन दूजी करते ॥

    ॐ जय चित्रगुप्त हरे,

    स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।

    भक्तजनों के इच्छित,

    फलको पूर्ण करे ॥

    ''यम देव की आरती''

    धर्मराज कर सिद्ध काज,

    प्रभु मैं शरणागत हूँ तेरी ।

    पड़ी नाव मझदार भंवर में,

    पार करो, न करो देरी ॥

    ॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥

    धर्मलोक के तुम स्वामी,

    श्री यमराज कहलाते हो ।

    जों जों प्राणी कर्म करत हैं,

    तुम सब लिखते जाते हो ॥

    अंत समय में सब ही को,

    तुम दूत भेज बुलाते हो ।

    पाप पुण्य का सारा लेखा,

    उनको बांच सुनते हो ॥

    भुगताते हो प्राणिन को तुम,

    लख चौरासी की फेरी ॥

    ॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥

    चित्रगुप्त हैं लेखक तुम्हारे,

    फुर्ती से लिखने वाले ।

    अलग अगल से सब जीवों का,

    लेखा जोखा लेने वाले ॥

    पापी जन को पकड़ बुलाते,

    नरको में ढाने वाले ।

    बुरे काम करने वालो को,

    खूब सजा देने वाले ॥

    कोई नही बच पाता न,

    याय निति ऐसी तेरी ॥

    ॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥

    दूत भयंकर तेरे स्वामी,

    बड़े बड़े दर जाते हैं ।

    पापी जन तो जिन्हें देखते ही,

    भय से थर्राते हैं ॥

    बांध गले में रस्सी वे,

    पापी जन को ले जाते हैं ।

    चाबुक मार लाते,

    जरा रहम नहीं मन में लाते हैं ॥

    नरक कुंड भुगताते उनको,

    नहीं मिलती जिसमें सेरी ॥

    ॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥

    धर्मी जन को धर्मराज,

    तुम खुद ही लेने आते हो ।

    सादर ले जाकर उनको तुम,

    स्वर्ग धाम पहुचाते हो ।

    जों जन पाप कपट से डरकर,

    तेरी भक्ति करते हैं ।

    नर्क यातना कभी ना करते,

    भवसागर तरते हैं ॥

    कपिल मोहन पर कृपा करिये,

    जपता हूँ तेरी माला ॥

    ॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥

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