Chhath Puja 2023: जानें, कब, क्यों और कैसे मनाया जाता है लोक आस्था का महापर्व छठ ?
खरना के दिन सूर्यास्त के बाद व्रती स्नान-ध्यान करती हैं। इसके बाद एकांत में छठी मैया की पूजा करती हैं। पूजा में गन्ने के रस और चावल से खीर और रोटी बना ...और पढ़ें

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chhath Puja 2023: लोक आस्था का महापर्व छठ देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। शास्त्रों में निहित है कि त्रेता युग में सर्वप्रथम माता सीता ने छठ पूजा की थी। उस समय से हर वर्ष कार्तिक माह में छठ पूजा मनाई जाती है। चार दिवसीय छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है और कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उगते सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होती है। आइए, इस पूजा के बारे में सबकुछ जानते हैं-
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कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय खाय मनाया जाता है। इस दिन से ही छठ पूजा की शुरुआत होती है। इसमें स्नान-ध्यान कर सूर्य देव की पूजा की जाती है। इसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है। नहाय खाय के दिन व्रती पवित्र नदी या सरोवर में स्नान-ध्यान कर सूर्य देव की पूजा करती हैं। व्रत के लिए मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से भोजन पकाया जाता है। भोजन में चावल, मूंग और चने की दाल और लौकी की सब्जी बनाई जाती है। पूजा के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है।
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व्रती दिन में एक बार भोजन ग्रहण करती हैं। इस दिन सात्विक नियमों का पालन किया जाता है। साथ ही तामसिक भोजन ग्रहण करने की मनाही है। नहाय खाय के दिन रात्रि में भोजन नहीं किया जाता है।
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छठ पूजा के दूसरे दिन खरना मनाया जाता है। यह व्रत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इसमें व्रती दिन भर उपवास रखती हैं। संध्याकाल में स्नान-ध्यान कर छठी मैया की पूजा करती हैं। नहाय खाय के दिन भोजन ग्रहण करने के बाद व्रती खरना पूजा तक व्रती उपवास रखती हैं।

खरना के दिन सूर्यास्त के बाद व्रती स्नान-ध्यान करती हैं। इसके बाद एकांत स्थान में छठी मैया की पूजा करती हैं। पूजा में गन्ने के रस और चावल से खीर बनाई जाती है। साथ ही रोटी भी बनाई जाती है। फल-फूल से छठी मैया की पूजा की जाती है। इस समय व्रती खरना का प्रसाद ग्रहण करती हैं। उसके बाद घर के सभी सदस्य प्रसाद ग्रहण करते हैं।
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खरना पूजा के बाद लगातार 36 घंटे का निर्जला व्रत-उपवास प्रारंभ होता है। इसके अगले दिन यानी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इसके लिए छठ घाट पवित्र नदी और सरोवरों में तैयार किया जाता है। व्रती के स्वजन छठ घाट तैयार करते हैं।
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कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को संध्या अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य के लिए डाला सजाया जाता है। डाला बांस से तैयार किया जाता है। वहीं, अर्घ्य सूप और डगरा से दिया जाता है। इसमें फल और फूल समेत पूरी पकवान भी रखे जाते हैं।
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डूबते सूर्य को अर्घ्य देते समय व्रती पानी में खड़े होकर भगवान भास्कर की उपासना करती हैं। सूर्यास्त के क्षण पानी में तीन बार डुबकी लगाकर स्नान करती हैं। इसके पश्चात, अर्घ्य देती हैं। सूर्यास्त के बाद व्रती समेत स्वजन वापस घर लौटते हैं।

सांझ का अर्घ्य देने के बाद टोकरी में रखी सभी पूजन सामग्री को बदला जाता है। प्रातः काल पुनः स्नान ध्यान कर सभी घाट पर पहुँचते हैं। ब्रह्म मुहूर्त से लेकर सूर्योदय तक व्रती पानी में खड़ी रहती हैं।

सूर्योदय के समय पुनः स्नान कर व्रती सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं। इस समय मनोवांछित फल की प्राप्ति हेतु साधक व्रती के अर्घ्य देते समय कच्चे दूध से सूर्य देव का अभिषेक करते हैं। पूजा समापन के समय साधक व्रती के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। व्रती प्रसाद में कुसही केराव देती हैं। इसे महाप्रसाद कहा जाता है।
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