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    Chaturmas 2025: हर साल क्यों लगता है चातुर्मास? जानें इसके पीछे का महत्व और डेट

    Updated: Sat, 21 Jun 2025 09:00 AM (IST)

    चातुर्मास (Chaturmas 2025) आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। हिन्दू धर्म में इसका बहुत महत्व है। इस दौरान भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं और शिव जी जगत का संचालन करते हैं। इस अवधि में विवाह और गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य वर्जित होते हैं तो आइए इस दिन से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।

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    Chaturmas Significance : चातुर्मास का धार्मिक महत्व।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी से चातुर्मास का आरंभ होता है, जो कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलता है। इस चार महीने की अवधि को 'चातुर्मास' कहा जाता है। हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है। कहते हैं कि इस दौरान (Chaturmas 2025) भगवान विष्णु की जगह शिव जी पूरे जगत का संचालन करते हैं।

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    इसी वजह से यह समय शिव पूजन के लिए खास माना जाता है, तो आइए इस माह से जुड़ी सभी प्रमुख बातों को जानते हैं, जो इस प्रकार हैं।

    कब से शुरू होगा चातुर्मास? (Chaturmas 2025 Start And End Date)

    वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल देवशयनी एकादशी 6 जुलाई को मनाई जाएगी और इसी तिथि से चातुर्मास की शुरुआत होगी। वहीं, 2 नवंबर 2025 को तुलसी विवाह के साथ इसका समापन होगा। तभी से मांगलिक काम की शुरुआत दोबारा से हो जाएगी।

    चातुर्मास क्यों लगता है? (Why is Chaturmas Observed?)

    प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के लिए क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। भगवान विष्णु के योग निद्रा में होने की वजह से इन चार महीनों में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे सभी शुभ काम पर रोक लग जाती है। यह अवधि तपस्या, साधना और पूजा-पाठ के लिए समर्पित होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने राजा बलि को दिए गए वरदान के चलते पाताल लोक में वास किया था। इसी कारण से यह अवधि उनके योग निद्रा के रूप में मनाई जाती है।

    चातुर्मास का धार्मिक महत्व (Chaturmas Significance)

    चातुर्मास का समय आत्म-सुधार और आध्यात्मिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान तपस्या और साधना, रामायण, श्रीमद्भागवत गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों का पाठ, तीर्थ यात्रा, दान-पुण्य, सात्विक जीवन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखने का समय है। ऐसे में इस दौरान ज्यादा से ज्यादा धार्मिक काम से जुड़े रहें। इससे आपके जीवन पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।