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    Chaitra Navratri 2025: देवी मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए करें इस स्तोत्र का पाठ, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम

    सनातन धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व है। नवरात्र चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि मनाया जाता है। इस दौरान जगत जननी मां दुर्गा (Chaitra Navratri 2025) और उनके नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। वहीं अष्टमी एवं नवमी तिथि पर संधि पूजा की जाती है। संधि पूजा के दौरान देवी मां चामुंडा की पूजा की जाती है।

    By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Fri, 04 Apr 2025 10:00 PM (IST)
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    Chaitra Navratri 2025: देवी मां दुर्गा को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chaitra Navratri 2025 Day 8: मां दुर्गा की महिमा अपंरपार है। ममतामयी मां दुर्गा अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाती हैं। उनकी कृपा से भक्तजन के सभी दुख दूर हो जाते हैं। साथ ही साधक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। चैत्र नवरात्र के दौरान देवी मां दुर्गा और उनके रूपों की पूजा की जाती है। अप्रैल महीने में 05 अप्रैल को चैत्र नवरात्र की अष्टमी तिथि है।

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    सनातन शास्त्रों में निहित है कि देवी मां दुर्गा के शरणागत रहने वाले साधकों पर माता रानी की असीम कृपा बरसती है। तंत्र सीखने वाले साधक नवरात्र के दौरान देवी मां दुर्गा की कठिन उपासना करते हैं। अगर आप भी देवी मां दुर्गा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो नवरात्र के दौरान दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम का पाठ अवश्य करें।

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    दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम

    ॐ दुर्गा शिवा महालक्ष्मीर्महागौरी च चण्डिका ।

    सर्वज्ञा सर्वलोकेशा सर्वकर्मफलप्रदा ॥

    सर्वतीर्थमया पुण्या देवयोनिरयोनिजा ।

    भूमिजा निर्गुणा चैवाधारशक्तिरनीश्वरा ॥

    निर्गुणा निरहङ्कारा सर्वगर्वविमर्दिनी ।

    सर्वलोकप्रिया वाणी सर्वविद्याधिदेवता ॥

    पार्वती देवमाता च वनीशा विन्ध्यवासिनी ।

    तेजोवती महामाता कोटिसूर्यसमप्रभा ॥

    देवता वह्निरूपा च सदौजा वर्णरूपिणी ।

    गुणाश्रया गुणमयी गुणत्रयविवर्जिता ॥

    कर्मज्ञानप्रदा कान्ता सर्वसंहारकारिणी ।

    धर्मज्ञाना धर्मनिष्ठा सर्वकर्मविवर्जिता ॥

    कामाक्षा कामसंहन्त्री कामक्रोधविवर्जिता ।

    शाङ्करी शाम्भवी शान्ता चन्द्रसूर्याग्निलोचना ॥

    सुजया जयभूमिष्ठा जाह्नवी जनपूजिता ।

    शास्त्रा शास्त्रमया नित्या शुभा चन्द्रार्धमस्तका ॥

    भारती भ्रामरी कल्पा कराली कृष्णपिङ्गला ।

    ब्राह्मी नारायणी रौद्रा चन्द्रामृतपरिश्रुता ॥

    ज्येष्ठेन्दिरा महामाया जगत्सृष्ट्यादिकारिणी ।

    ब्रह्माण्डकोटिसंस्थाना कामिनी कमलालया ॥

    कात्यायनी कलातीता कालसंहारकारिणी ।

    योगिनिष्ठा योगिगम्या योगिध्येया तपस्विनी ॥

    ज्ञानरूपा निराकारा भक्ताभीष्टफलप्रदा ।

    भूतात्मिका भूतमाता भूतेशा भूतधारिणी ॥

    स्वधानारीमध्यगता षडाधारादिवर्तिनी ।

    मोह्हिता शुभदा शुभ्रा सूक्ष्मा मात्रा निरालसा ॥

    निम्नगा नीलसङ्काशा नित्यानन्दा हरा परा ।

    सर्वज्ञानप्रदाऽनन्ता सत्या दुर्लभरूपिणी ।

    सरस्वती सर्वगता सर्वाभीष्टप्रदायिनी ॥

    दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

    शतनाम प्रवक्ष्यामि श‍ृणुष्व कमलानने ।

    यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥

    ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।

    आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥

    पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः ।

    मनो बुद्धिरहङ्कारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥

    सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी ।

    अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥

    शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा ।

    सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥

    अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती ।

    पट्टाम्बर परीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी ॥

    अमेयविक्रमा क्रुरा सुन्दरी सुरसुन्दरी ।

    वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥

    ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा ।

    चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥

    विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा ।

    बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहन वाहना ॥

    निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी ।

    मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥

    सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी ।

    सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥

    अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी ।

    कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ॥

    अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा ।

    महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ॥

    अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी ।

    नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ॥

    शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी ।

    कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ॥

    य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् ।

    नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥

    धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च ।

    चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥

    कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् ।

    पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ॥

    तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि ।

    राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ॥

    गोरोचनालक्तककुङ्कुमेव

    सिन्धूरकर्पूरमधुत्रयेण ।

    विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो

    भवेत् सदा धारयते पुरारिः ॥

    भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते ।

    विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ॥

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