Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्र की सप्तमी तिथि पर करें इन मंत्रों का जप, पूरी होगी मनचाही मुराद
ज्योतिषियों की मानें तो चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में मां काली (Navratri 2025 Day 7 Shobhan Yoga) की पूजा करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त संकटों से मुक्ति मिलती है। नवरात्र के दौरान मंदिरों में देवी मां काली की विशेष पूजा की जाती है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chaitra Navratri 2025 Day 7: सनातन धर्म में चैत्र नवरात्र का खास महत्व है। चैत्र नवरात्र के दौरान देवी मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त नवरात्र का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक की हर एक कामना पूरी होती है।
देवी मां काली ममता की देवी हैं। अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाती हैं। उनकी कृपा से भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। मां के शरणागत रहने वाले भक्तों की रक्षा माता रानी स्वयं करती हैं। वहीं, दुष्टों का संहार करती हैं। अगर आप भी देवी मां काली को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो सप्तमी तिथि पर देवी मां काली की भक्ति भाव से पूजा करें। वहीं, पूजा के इन मंत्रों का जप करें।
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मां काली के मंत्र
- क्रीं
- क्रीं ह्रुं ह्रीं॥
- क्रीं ह्रुं ह्रीं हूँ फट्॥
- क्रीं कालिके स्वाहा॥
- हूँ ह्रीं हूँ फट् स्वाहा॥
- ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं॥
- क्रीं ह्रुं ह्रीं दक्षिणेकालिके क्रीं ह्रुं ह्रीं स्वाहा॥
- ॐ ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥
- ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके स्वाहा॥
- ह्रौं काली महाकाली किलिकिले फट् स्वाहा॥
- ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं॥
- ॐ क्रीं काली
- ॐ श्री कालिकायै नमः
- ॐ कलिं कालिका-य़ेइ नमः
- ॐ हरिं श्रीं कलिं अद्य कालिका परम् एष्वरी स्वा:
- क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥
- कृन्ग कृन्ग कृन्ग हिन्ग कृन्ग दक्षिणे कलिके कृन्ग कृन्ग कृन्ग हरिनग हरिनग हुन्ग हुन्ग स्वा:
- ॐ महा काल्यै छ विद्यामहे स्स्मसन वासिन्यै छ धीमहि तन्नो काली प्रचोदयात”
- ॐ क्रीं कालिकायै नमः
- ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा
स्तोत्र
करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।
कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥
दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघोर्ध्वकराम्बुजाम्।
अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥
महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।
घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥
सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।
एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥
स्तोत्र
हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।
कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥
कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघन्कुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥
क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।
कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥
महाकाली स्तोत्र
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं,
सुहृदपोषिणी शत्रुसंहारणीयं |
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
महाकाली स्तोत्र
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली,
मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात ।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं,
वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता,
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते |
जपध्यान पुजासुधाधौतपंका,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
चिदानन्दकन्द हसन्मन्दमन्द,
शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुन्ज बिम्बं |
मुनिनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा,
कदाचिद्विचित्रा कृतिर्योगमाया |
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
क्षमास्वापराधं महागुप्तभावं,
मय लोकमध्ये प्रकाशीकृतंयत् |
तवध्यान पूतेन चापल्यभावात्,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
यदि ध्यान युक्तं पठेद्यो मनुष्य,
स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च |
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि मुक्ति,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।
मां काली की आरती
अम्बे तू है जगदम्बे काली,जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती,ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
तेरे भक्त जनो पर माता भीड़ पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिंह सवारी॥
सौ-सौ सिहों से बलशाली,है अष्ट भुजाओं वाली,
दुष्टों को तू ही ललकारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
माँ-बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता।
पूत-कपूत सुने हैं, पर ना माता सुनी कुमाता॥
सब पे करूणा दर्शाने वाली,अमृत बरसाने वाली,
दुखियों के दुखड़े निवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
नहीं मांगते धन और दौलत,न चांदी न सोना।
हम तो मांगें तेरे चरणों में छोटा सा कोना॥
सबकी बिगड़ी बनाने वाली,लाज बचाने वाली,
सतियों के सत को संवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
चरण शरण में खड़े तुम्हारी,ले पूजा की थाली।
वरद हस्त सर पर रख दो माँसंकट हरने वाली॥
माँ भर दो भक्ति रस प्याली,अष्ट भुजाओं वाली,
भक्तों के कारज तू ही सारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
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