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    Chaitra Navratri 2024: कलश स्थापना के समय जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ, प्राप्त होगा मां दुर्गा का आशीर्वाद

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 04 Apr 2024 02:27 PM (IST)

    जगत जननी अपने भक्तों की रक्षा हेतु नवरात्र में भूलोक पर आती हैं। इस अवधि में जगत जननी मां दुर्गा की पूजा-भक्ति करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही साधक के घर में सुख शांति और खुशहाली आती है। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त दुखों से निजात पाना चाहते हैं तो विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा करें।

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    Chaitra Navratri 2024: कलश स्थापना के समय जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्र में नौ दिनों तक जगत जननी मां दुर्गा की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। कई साधक फलाहार व्रत रखते हैं, तो कई साधक दिन भर उपवास रख संध्याकाल में आरती कर सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। नवरात्र की शुरुआत घटस्थापना से होती है। इस वर्ष 09 अप्रैल को कलश स्थापना है। धार्मिक मान्यता है कि जगत जननी अपने भक्तों की रक्षा हेतु नवरात्र में भूलोक पर आती हैं। इस अवधि में जगत जननी मां दुर्गा की पूजा-भक्ति करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही साधक के घर में सुख, शांति और खुशहाली आती है। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त दुखों से निजात पाना चाहते हैं, तो विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय अर्गला स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

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    अर्गला स्तोत्रम्

    ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।

    दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

    जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।

    जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥

    मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।

    रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

    पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।

    तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

    इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।

    स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥

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