Mahabharat: आशीर्वाद में होती है कितनी शक्ति… जानिए कैसे द्रौपदी के प्रणाम ने बदला युद्ध का रुख
Mahabharat पौराणिक कथाओं के अनुसार जब हम किसी के पैर छूकर प्रणाम करते हैं तो वे हमें आशीर्वाद देते हैं। महाभारत के एक प्रसंग में भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को भीष्म पितामह से आशीर्वाद लेने के लिए भेजा जिससे उन्हें अखंड सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद मिला। इस आशीर्वाद ने द्रौपदी और उनके पतियों को अभयदान दिया।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जब हम झुक कर कभी किसी के पैर छूते हैं या उसे प्रणाम करते हैं, तो वह हमें आशीर्वाद देते हैं। वह कहते हैं- खुश रहो, सदा सुखी रहो, प्रसन्न रहो, आयुष्मान भव, चिरंजीवी भव, सदा सौभाग्यवती भव। यह अनायास मुंह से निकले कुछ शब्द नहीं है, बल्कि वो ढाल हैं, जो उस समय काम आते हैं, जब कुछ और नहीं आ सकता।
इस बात को गहराई से समझने के लिए आपको महाभारत का एक प्रसंग जानना होगा। जब पितामह भीष्म ने महाभारत के युद्ध के दौरान घोषणा कर दी थी कि वह अर्जुन का वध कर देंगे और युधिष्ठिर को बंदी बना लेंगे। उनकी इस घोषणा के बाद में पांडवों के शहर में भी हलचल थी।
दरअसल, हर कोई यह जानता था कि पितामह भीष्म से बड़ा योद्धा कोई नहीं है और अगर पितामह ने यह प्रतिज्ञा ली है, तो वह उसे करके ही दम लेंगे। तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को एक उपाय बताया। वह द्रोपदी को लेकर पितामह भीष्म के शिविर के बाहर पहुंचे।
प्रणाम करते ही मिला आशीर्वाद
द्रौपदी से शिविर के अंदर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम करने को कहा। द्रौपदी ने जैसे ही पितामह भीष्म को प्रणाम किया, उनके मुंह से निकला- अखंड सौभाग्यवती भव। फिर उन्होंने सवाल किया इतनी रात को यहां इस शिविर में कैसे आई? क्या तुमको कृष्णा लेकर आए हैं?
यह सुनते ही द्रौपदी ने हां में सर हिलाया और कहा कि हां वही लेकर आए हैं। इतने में भगावान श्री कृष्णा शिविर के अंदर आ गए। भीष्म पितामह ने कहा मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम केवल श्री कृष्ण ही कर सकते हैं।
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कुछ और होता युद्ध का परिणाम
इसके बाद श्री कृष्णा और द्रौपदी शिविर से बाहर निकल आए। आगे महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने अपने दिए हुए वचन के अनुसार द्रोपदी के पतियों को अभयदान दे दिया और खुद बाणों की शैय्या पर पर लेट गए। यदि उस दिन द्रोपदी को वह आशीर्वाद नहीं मिला होता, तो महाभारत के युद्ध का परिणाम कुछ और होता।
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