Jagannath Rath Yatra 2025: जगन्नाथ जी की मूर्ति का किस लकड़ी से होता है निर्माण, जिसमें आज भी धड़कता है दिल
Jagannath Rath Yatra 2025 उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में 27 जून को रथ यात्रा की तैयारी चल रही है। यहाँ हर 12 साल में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बदली जाती है जिसे नवकलेवर कहते हैं। इस दौरान पुरानी मूर्ति से ब्रह्म पदार्थ निकालकर नई मूर्ति में डाला जाता है माना जाता है कि इससे भगवान जगन्नाथ का दिल धड़कता रहता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन 27 जून को रथ यात्रा निकाली जाएगी। इसकी तैयारियां पूरे जोरों शोर से चल रही हैं। इस मौके पर आज हम आपको जगन्नाथ मंदिर के एक अनोखी परंपरा और इससे जुड़े रहस्य के बारे में बताने जा रहे हैं।
यहां भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को हर 12 साल में बदल दिया जाता है, जब आषाढ़ के दो महीने होते हैं। कभी-कभी आषाढ़ के दो महीने आने में समय बढ़ जाता है। इसकी वजह से यह अनुष्ठान भी देर से होता है। इस परंपरा को नवकलेवर के नाम से जानते हैं।
जैसा कि यह शब्द खुद ही बताता है कि अब भगवान का नया कलेवर या नया रूप देखने को मिलेगा। इसके साथ ही गुप्त प्रक्रिया के साथ ब्रह्म पदार्थ निकालकर मूर्तियों में डाला जाता है, जिससे भगवान जगन्नाथ का दिल धड़कता रहता है। चलिए विस्तार से जानते हैं पूरी कहानी…
धातु या पत्थर से नहीं बनती हैं मूर्तियां
आमतौर पर आप जिस भी मंदिर में जाएंगे, वहां पर आपको किसी धातु या पत्थर की बनी हुई मूर्ति ही देखने को मिलेगी। मगर, रहस्यों से भरे उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियां लकड़ी से बनी हुई होती हैं।
समय के साथ ये मूर्तियां खराब नहीं हों, इसलिए उन्हें हर 12 साल में बदल दिया जाता है। इससे जहां मूर्तियों की दिव्यता और अखंडता बनी रहती है। वहीं, यह जीवन चक्र, परिवर्तन और नवीनीकरण का भी संकेत है, जो बताता है कि परिवर्तन ही स्थिर है।
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नीम की लकड़ी से बनती हैं मूर्तियां
भगवान की मूर्तियां नीम के पेड़ की लड़कियों से बनाई जाती हैं, जिनका चुनाव मुख्य पुजारी करते हैं। मगर, इसकी शर्त यह है कि यह पेड़ 100 साल पुराना और दोष रहित होना चाहिए।
मूर्ति बदलते समय पुरानी मूर्ति से ब्रह्म पदार्थ निकालकर नई मूर्तियां में डाला जाता है। कहते हैं यह भगवान का हृदय है, जो उनके देह छोड़ने के बाद किए गए अंतिम संस्कार में बच गया था। भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों में यह हृदय आज भी धड़क रहा है।
गुप्त तरीके से होता है अनुष्ठान
जिस समय यह अनुष्ठान किया जाता है, तब पूरे शहर की लाइट बंद करवा दी जाती है। यह प्रक्रिया बहुत ही गुप्त तरीके से होती है। ब्रह्म पदार्थ को जब पुरानी मूर्ति से निकलकर नई मूर्ति में डाला जाता है, तो पुजारी अपनी आंखों में पट्टी बांधते हैं। कहते हैं उनको यह ब्रह्म पदार्थ उछलता हुआ महसूस होता है।
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