Bhandirvan: इस स्थान पर हुआ था राधा जी और भगवान कृष्ण का विवाह, हर कोई नहीं कर पाता दर्शन
भगवान श्रीकृष्ण को जगत की देवी श्रीराधा रानी से अगाध प्रेम और स्नेह है। लेकिन क्या आपको पता है कि उनका विवाह भी हुआ था और मथुरा में उनके विवाह को समर्पित एक मंदिर भी स्थापित है जिसका वर्णन “गर्ग संहिता” में मिलता है जो भगवान श्रीकृष्ण के गुरु गर्गाचार्य द्वारा रचित एक ग्रंथ है। चलिए जानते हैं उसके बारे में।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। माना जाता है कि अगर आप भगवान कृष्ण से पहले राधा रानी जी का नाम लेते हैं, तो इससे कान्हा जी जल्दी प्रसन्न होते हैं। आज हम आपको एक ऐसे स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं, जो राधा-कृष्ण जी के विवाह का साक्षी रहा है, हालांकि इसके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है।
मिलता है ये प्रसंग
“गर्ग संहिता” में वर्णित प्रसंग के अनुसार, एक बार नन्द बाबा कृष्ण जी को गोद में लिए हुए गाय चरा रहे थे। गाय चराते-चराते वह वन में काफी आगे निकल गए। अचानक से मौसम में बदलाव हुआ और आंधी चलने लगी। तभी नन्द बाबा के समक्ष राधा जी प्रकट हुईं। नन्द बाबा ने राधा जी को प्रणाम किया और कहा कि मैं जानता हूं कि मेरी गोद मे साक्षात् प्रभु श्रीहरि हैं और यह रहस्य मुझे गर्ग जी द्वारा बताया गया है।
तब वह भगवान कृष्ण को राधा जी को सौंप कर चले गए। इस दौरान भगवान कृष्ण अपनी युवा रूप में आए। तब वहां ब्रह्मा जी भी प्रकट हुए। विवाह मंडप और विवाह की सारी सामग्री वहां पहले से ही मौजूद थीं। भगवान कृष्ण राधा जी के साथ उस मंडप में विराजमान हुए और ब्रह्मा जी ने वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ विवाह संपन्न कराया।
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क्या हैं मान्यताएं
भांडीरवन में एकलौता ऐसा मंदिर है, जहां भगवान कृष्ण दूल्हे के रूप में और राधा जी दुल्हन के रूप में नजर आती हैं। यह मंदिर एक विशाल वृक्ष के नीचे बना हुआ है, जहां राधा रानी और भगवान कृष्ण की प्रतिमाएं एक-दूसरे को वरमाला पहनाते हुए नजर आ रही हैं। वहीं ब्रह्मा जी की भी मूर्ति स्थापित है, जो विवाह की रस्में निभा रहे हैं। इस स्थान पर एक कुंड भी स्थित है, जिसे भांडीर कुंड के नाम से जाना जाता है।
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इसी के साथ इस स्थान को लेकर यह मान्यता भी प्रचलित है कि इस स्थान के दर्शन वर्तमान समय में केवल वही लोग कर सकते हैं, जो उस काल में भी किसी-न-किसी जैसे सखियां, मोर, तोते, गाय और बंदर आदि रूप में उस स्थान पर उपस्थित थे। इसी के साथ भांडीरवन वह स्थान भी है, जहां बलराम दाऊ ने कंस के द्वारा भेजे गए प्रलम्बासुर नामक राक्षस का वध किया था।
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