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    Bhagavad Gita: सिर्फ अर्जुन ही नहीं, ये लोग भी भगवान श्रीकृष्ण के मुख से सुन रहे थे गीता उपदेश

    Updated: Wed, 18 Jun 2025 01:18 PM (IST)

    श्रीमद्भागवत गीता हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है जो ज्ञान का भंडार भी है। श्रीमद्भागवत गीता असल में श्रीकृष्ण द्वारा बताई गई बहुमूल्य बातों का संग्रह है। महाभारत की कथा के अनुसार कुरुक्षेत्र में अर्जुन को भगवान कृष्ण ने ये उपदेश दिए थे। क्या आप जानते हैं कि अर्जुन अकेले नहीं थे जिन्होंने गीता के उपदेश सुने थे।

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    Bhagavad Gita: किस-किस ने सुना था गीता का उपदेश?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म ग्रंथों में असंख्य ऐसे पौराणिक ग्रंथ हैं, जो ज्ञान का भंडार हैं। इन्हीं में से एक भगवत गीता भी है, जिसे बहुत ही पवित्र ग्रंथ के रूप में देखा जात है। इतना ही नहीं श्रीमद्भागवत गीता सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले धार्मिक ग्रंथों में से भी एक है।

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    महाभारत की कथा के अनुसार, जिस समय भगवान श्रीकृष्ण रणभूमि में अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, उस समय अर्जुन के अलावा इस उपदेश को अन्य चार लोग भी सुन रहे थे। चलिए जानते हैं इसके बारे में...

    इन्होंने भी सुना गीता का उपदेश

    अर्जुन के अलावा हनुमान जी ने भी गीता का उपदेश सुना था। कथा के अनुसार, अर्जुन को दिए वचन के अनुसार, महाभारत के युद्ध के दौरान पवन पुत्र हनुमान अर्जुन के रथ की ध्वजा में विराजमान थे और रथ की रक्षा कर रहे थे। इसलिए जब गीता का उपदेश चल रहा था, तो इसे हनुमान जी ने भी सुना।

    संजय समेत किसने सुनी गीता

    महर्षि व्यास के शिष्य तथा धृतराष्ट्र की राजसभा के सम्मानित सदस्य संजय ने भी गीता का उपदेश सुना था। संजय को महर्षि वेदव्यास से दिव्य दृष्टि का वरदान मिला था। इसके फलस्वरूप वह कुरुक्षेत्र के युद्ध का आंखों देखा हाल धृतराष्ट्र को सुना रहे थे। 

    ऐसे में जब भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, तो संजय ने भी इसे सुनने का सौभाग्य प्राप्त किया। साथ ही उन्होंने भगवान के विराट रूप के भी दर्शन किए थे। उन्होंने यह उपदेश धृतराष्ट्र को भी वैसे ही सुनाया, जैसा भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को सुना रहे थे। 

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    बर्बरीक को मिला था ये वरदान

    घटोत्कच और अहिलावती के पुत्र बर्बरीक ने भी यह उपदेश सुना था। वह भीम के पोते थे। जब महाभारत का युद्ध चल रहा था, तब बर्बरीक भी युद्ध में भाग लेने के लिए निकल पड़े। जब यह बात श्रीकृष्ण को पता चली, तो उन्हें समझ में आ गया कि बर्बरीक यदि युद्ध में पहुंच गया, तो इस युद्ध का कोई निष्कर्ष ही नहीं निकलेगा। 

    दरअसल, बर्बरीक हमेशा उस व्यक्ति या पक्ष की तरफ से खड़े होते थे, जो हारा हुआ हो। जो कमजोर हो। ऐसे में जब पांडव कमजोर पड़ते, तो बर्बरीक उनकी तरफ से लड़ता। जब कौरव कमजोर पड़ते, तो बर्बरीक उनकी तरफ चला जाता। 

    ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने एक ब्राह्मण का रूप धरकर लीला की और उससे शीश मांग लिया। हंसते हुए बर्बरीक ने अपने शीश का दान कर दिया, लेकिन ब्राह्मण से कहा कि आप साधारण नहीं हैं। कृपया अपने असली रूप में मुझे दर्शन दीजिए। 

    इस पर प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने न सिर्फ अपने मूल स्वरूप में दर्शन दिए, बल्कि यह वरदान भी दिया कि वह इस युद्ध को होते हुए देख सकते हैं। इसलिए जब भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे, तब बर्बरीक ने भी इसे सुना। बाद में वह खाटू श्याम के नाम से पूजे जाने लगे। 

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।