Basant Panchami 2025: इस आरती से मां सरस्वती को करें प्रसन्न, ज्ञान से भर जाएगा जीवन
सनातन धर्म में मां सरस्वती की पूजा का विशेष महत्व है। मां सरस्वती को कई नामों से जाना जाता है जैसे- चंद्रघंटा सिद्धिदात्री भगवती भुवनेश्वरी गायत्री वाणिश्वरी बुद्धिदात्री और ब्राह्मणी समेत आदि। माना जाता है कि वसंत पंचमी (Basant Panchami 2025) के दिन मां सरस्वती की आरती न करने से पूजा अधूरी रहती है। इसलिए पूजा के दौरान देवी की आरती जरूर करें।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Maa Saraswati Ki Aarti: पंचांग के अनुसार, आज यानी 02 फरवरी (Basant Panchami 2025 Date) को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जा रहा है। इस खास अवसर पर विद्या की देवी मां सरस्वती की विशेष पूजा उपासना करने का विधान है। साथ ही विशेष चीजों का भोग लगाया जाता है। इससे मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं और सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
अगर आप मां सरस्वती (Maa Saraswati Ki Aarti Lyrics) की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो वसंत पंचमी की पूजा के दौरान मां सरस्वती की आरती जरूर करें। धार्मिक मान्यता है कि आरती करने से मां सरस्वती का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है। आइए पढ़ते हैं मां सरस्वती की आरती।
सरस्वती माता की आरती
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता ।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥
जय जय सरस्वती माता...
चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी ।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥
जय जय सरस्वती माता...
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला ।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला ॥
जय जय सरस्वती माता...
देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया ।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥
जय जय सरस्वती माता...
विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो ।
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो ॥
जय जय सरस्वती माता...
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो ।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥
जय जय सरस्वती माता...
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे ।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे ॥
जय जय सरस्वती माता...
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता ।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥
(Pic Credit -Freepik )
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सरस्वती माता की आरती-2
ओइम् जय वीणे वाली, मैया जय वीणे वाली
ऋद्धि-सिद्धि की रहती, हाथ तेरे ताली
ऋषि मुनियों की बुद्धि को, शुद्ध तू ही करती
स्वर्ण की भाँति शुद्ध, तू ही माँ करती॥
ज्ञान पिता को देती, गगन शब्द से तू
विश्व को उत्पन्न करती, आदि शक्ति से तू॥
हंस-वाहिनी दीज, भिक्षा दर्शन की
मेरे मन में केवल, इच्छा तेरे दर्शन की॥
ज्योति जगा कर नित्य, यह आरती जो गावे
भवसागर के दुख में, गोता न कभी खावे॥
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