Baglamukhi Jayanti 2025: शत्रुओं पर विजय दिलाती हैं मां बगलामुखी, जानिए कब है जयंती और क्या है इनका महत्व
Baglamukhi Jayanti 2025 उदिया तिथि में अष्टमी तिथि (Baglamukhi Jayanti) की मान्यता होने की वजह से अष्टमी तिथि 5 मई को मनाई जाएगी और उसी दिन मां बगलामुखी की पूजा और साधना की जाएगी। तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए मां बगलामुखी की साधना की जाती है। वह प्रसन्न होने पर अपने साधकों को मनोवांक्षित फल देती हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या देवी बगलामुखी हैं। देवी पार्वती के उग्र स्वरूप के रूप में पूज्य बगलामुखी मां की जयंती (Baglamukhi Jayanti 2025) वैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह इस साल पांच मई को मनाई जाएगी।
दरअसल, अष्टमी तिथि 4 मई को सुबह 7:18 मिनट पर लगेगी और अगले दिन 5 मई को सुबह 7:35 मिनट पर समाप्त होगी। उदिया तिथि में अष्टमी तिथि (Baglamukhi Jayanti) की मान्यता होने की वजह से अष्टमी तिथि 5 मई को मनाई जाएगी और उसी दिन मां बगलामुखी की पूजा और साधना की जाएगी।
ये योग बन रहे हैं अष्टमी को
इस दिन अष्टमी तिथि पर वृद्धि योग पूरी रात तक रहेगा। इसके इस तिथि पर रवि योग और सर्वार्थ शिववास योग भी बन रहा है। इन योगों में देवी मां बगलामुखी की पूजा करने से सुखों में वृद्धि होगी। मां बगलामुखी की पूजा मुख्यतः युद्ध में विजय, शत्रुओं को परास्त करने और कोर्ट-कचहरी के मामलों में जीत के लिए की जाती है।
पांडवों ने भी की थी साधना
इनकी साधना रात के समय में करने से विशेष सिद्धि मिलती है। कहते हैं कि भगवान कृष्ण ने भी महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों से मां बगलामुखी की साधना करवाई थी। देश में मां बगलामुखी के तीन प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर हैं। इनमें से दो मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया और नलखेड़ा-आगर मालवा में और एक हिमाचल के कांगड़ा में है।
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पीले रंग का होता है प्रयोग
देवी बगलामुखी का रंग सोने की तरह पीला है। इसीलिए उनकी पूजा करने के समय पीले कपड़े पहने जाते हैं और पीले रंग की ही अन्य सामग्रियों का भी इस्तेमाल किया जाता है। उनकी साधना से पहले हरिद्रा गणपति की पूजा और आह्वान किया जाता है।
ब्रह्मा जी ने दिया था साधना का उपदेश
पाैराणिक मान्यता के अनुसार, सबसे पहले सनकादि ऋषियों को ब्रह्माजी ने बगलामुखी साधना का उपदेश दिया था। उनसे प्रेरणा पाकर देव ऋषि नारद ने मां बगलामुखी की साधना की थी। देवी के दूसरे उपासक भगवान विष्णु ने भगवान परशुराम को यह विद्या सिखाई थी।
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कालांतर में उन्होंने यह विद्या गुरु द्रोण को दी। कहते हैं महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को युद्ध से पहले बगलामुखी की साधना करने के लिए कहा था। वैदिक काल में सप्तऋषियों ने देवी बगलामुखी की साधना की थी।
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