अंतिम संस्कार के समय शव के सिर पर तीन बार मारा जाता है डंडा, कपाल क्रिया न करें तो क्या होगा
Kapal Kriya मृत्यु के बाद हिंदू धर्म से जुड़े लोग दाह संस्कार के समय शव के सिर पर तीन बार डंडा मारते हैं। इसे कपाल क्रिया कहते हैं जो ब्रह्मरंध्र को खोलने के लिए की जाती है। मगर यह क्रिया करना क्यों जरूरी होता है। यदि ऐसा न किया जाए तो क्या होगा। इन सब सवालों के जबाव जानने के लिए पढ़िए यह खबर।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में बताए गए 16 संस्कारों में से आखरी है अंतिम संस्कार। मृतक के शव को चिता में जलाने के बाद शव के सिर पर तीन बार डंडा मारा जाता है। इस कपाल क्रिया को मृतक के कपाल यानी खोपड़ी को भेदने के लिए किया जाता है।
मान्यता है कि कपाल क्रिया करने से मृत व्यक्ति की आत्मा को शरीर से मुक्त हो जाती है। इसके बाद वह परलोक की यात्रा पर निकल पड़ती है। कहते हैं कि सिर के ऊपरी भाग में ब्रह्मरंध्र होता है। आत्मा शरीर को इसी भाग से छोड़कर निकलती है।
मगर, कई बार मृत्यु के समय ऐसा नहीं होता है। लिहाजा, देह त्यागने के बाद भी आत्मा का शरीर से मोह बना रहता है। ऐसे में शव को चिता में जलाने के बाद कपाल क्रिया के दौरान जब सिर पर डंडा मारा जाता है, तो ब्रह्मरंध्र खुलने के बाद आत्मा शरीर का मोह छोड़ देती है।
तांत्रिक विद्या के लिए न हो शव का इस्तेमाल
कहते हैं कि कपाल क्रिया नहीं करने पर आत्मा अपना रास्ता भटक सकती है। इस क्रिया को करने का उद्देश्य होता है कि मृतक की आत्मा शरीर का मोह छोड़कर अब शांति प्राप्त करे। इस क्रिया को मृतक का पुत्र, पिता, भाई या नजदीकी पुरुष परिजन या पुरोहित करता है।
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कपाल क्रिया करने के कई कारणों में एक यह भी है कि इसके बाद शव का दुरुपयोग तांत्रिक विद्या के लिए नहीं हो। मान्यता यह भी है कि कपाल क्रिया नहीं होने पर मनुष्य को इस जन्म में बुरे कर्मों का फल अगले जन्म में भी भुगतना पड़ता है।
साधु संतों पर नहीं लागू होता है नियम
यह नियम साधु-संतों और योगियों पर लागू नहीं होता है। दरअसल, वो पहले ही ईश्वर से एकाकार हो जाते हैं और ब्रह्मलीन अवस्था में ही शरीर त्यागते हैं, इसलिए उनकी कपाल क्रिया नहीं की जाती है। कपाल क्रिया सिर्फ साधारण व्यक्तियों की ही होती है।
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