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    Ashadha Amavasya पर इस चमत्कारी स्तोत्र से करें तर्पण, पितृ दोष से मिलेगा छुटकारा

    आषाढ़ अमावस्या (Ashadha Amavasya 2025 Kab Hai) पर कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इन योग में गंगा स्नान कर देवों के देव महादेव की पूजा करने से अशुभ ग्रहों के प्रभाव से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं।

    By Pravin Kumar Edited By: Pravin Kumar Updated: Sun, 22 Jun 2025 07:54 PM (IST)
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    Ashadh Amavasya 2025: पितरों को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, बुधवार 25 जून को आषाढ़ अमावस्या है। सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। इस शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में साधक गंगा स्नान कर देवों के देव महादेव की पूजा की जाती है। साथ ही पितरों का तर्पण एवं पिंडदान किया जाता है।

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    गरुड़ पुराण में निहित है कि अमावस्या तिथि पर पितरों का तर्पण करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, साधकों पर पितरों की कृपा बरसती है। अगर आप भी पितरों की कृपा पाना चाहते हैं, तो आषाढ़ अमावस्या के दिन गंगा स्नान कर पितरों का तर्पण करें। वहीं, तर्पण के समय इस स्तोत्र का पाठ करें।

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    गंगा स्तोत्र

    ॐ नमः शिवायै गंगायै, शिवदायै नमो नमः।
    नमस्ते विष्णु-रुपिण्यै, ब्रह्म-मूर्त्यै नमोऽस्तु ते।।

    नमस्ते रुद्र-रुपिण्यै, शांकर्यै ते नमो नमः।
    सर्व-देव-स्वरुपिण्यै, नमो भेषज-मूर्त्तये।।

    सर्वस्य सर्व-व्याधीनां, भिषक्-श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।
    स्थास्नु-जंगम-सम्भूत-विष-हन्त्र्यै नमोऽस्तु ते।।

    संसार-विष-नाशिन्यै, जीवानायै नमोऽस्तु ते।
    ताप-त्रितय-संहन्त्र्यै, प्राणश्यै ते नमो नमः।।

    शन्ति-सन्तान-कारिण्यै, नमस्ते शुद्ध-मूर्त्तये।
    सर्व-संशुद्धि-कारिण्यै, नमः पापारि-मूर्त्तये।।

    भुक्ति-मुक्ति-प्रदायिन्यै, भद्रदायै नमो नमः।
    भोगोपभोग-दायिन्यै, भोग-वत्यै नमोऽस्तु ते।।

    मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु, स्वर्गदायै नमो नमः।
    नमस्त्रैलोक्य-भूषायै, त्रि-पथायै नमो नमः।।

    नमस्त्रि-शुक्ल-संस्थायै, क्षमा-वत्यै नमो नमः।
    त्रि-हुताशन-संस्थायै, तेजो-वत्यै नमो नमः।।

    नन्दायै लिंग-धारिण्यै, सुधा-धारात्मने नमः।
    नमस्ते विश्व-मुख्यायै, रेवत्यै ते नमो नमः।।

    बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु, लोक-धात्र्यै नमोऽस्तु ते।
    नमस्ते विश्व-मित्रायै, नन्दिन्यै ते नमो नमः।।

    पृथ्व्यै शिवामृतायै च, सु-वृषायै नमो नमः।
    परापर-शताढ्यै, तारायै ते नमो नमः।।

    पाश-जाल-निकृन्तिन्यै, अभिन्नायै नमोऽस्तु ते।
    शान्तायै च वरिष्ठायै, वरदायै नमो नमः।।

    उग्रायै सुख-जग्ध्यै च, सञ्जीविन्यै नमोऽस्तु ते।
    ब्रह्मिष्ठायै-ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः।।

    प्रणतार्ति-प्रभञजिन्यै, जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।
    सर्वापत्-प्रति-पक्षायै, मंगलायै नमो नमः।।

    शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे।
    सर्वस्यार्ति-हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते।।


    निर्लेपायै दुर्ग-हन्त्र्यै, सक्षायै ते नमो नमः।
    परापर-परायै च, गंगे निर्वाण-दायिनि।।


    गंगे ममाऽग्रतो भूया, गंगे मे तिष्ठ पृष्ठतः।
    गंगे मे पार्श्वयोरेधि, गंगे त्वय्यस्तु मे स्थितिः।।


    आदौ त्वमन्ते मध्ये च, सर्व त्वं गांगते शिवे!
    त्वमेव मूल-प्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।।
    गंगे त्वं परमात्मा च, शिवस्तुभ्यं नमः शिवे।।

    गंगा स्तोत्र

    देवि सुरेश्वरि भगवति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरल तरंगे।
    शंकर मौलिविहारिणि विमले मम मति रास्तां तव पद कमले ॥
    भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
    नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥
    हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे ।
    दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥
    तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
    मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥
    पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे ।
    भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥
    कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
    पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवति कृततरलापांगे ॥
    तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।
    नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ॥
    पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे ।
    इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥
    रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् ।
    त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥
    अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये ।
    तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः ॥
    वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
    अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥
    भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
    गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥
    येषां हृदये गंगा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
    मधुराकंता पंझटिकाभिः परमानंदकलितललिताभिः ॥
    गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् ।
    शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः त्व ॥

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