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    Laxmi Puja: आर्थिक तंगी दूर करने के लिए शुक्रवार के दिन इस विधि से करें मां लक्ष्मी की पूजा

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 22 May 2025 11:31 PM (IST)

    शुक्रवार 23 मई को आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है। इस शुभ अवसर पर कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में लक्ष्मी नारायण जी (Laxmi Pujan Vidhi) की पूजा करने से साधक की सभी परेशानी दूर हो जाएगी। साथ ही घर में सुख और शांति आएगी।

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    Laxmi Puja: मां लक्ष्मी को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, शुक्रवार 23 मई को अपरा एकादशी है। शुक्रवार का दिन देवी मां लक्ष्मी को बेहद प्रिय है। इस शुभ अवसर पर देवी मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाएगी। साथ ही वैभव लक्ष्मीऔर एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस व्रत को करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही साधक पर लक्ष्मी नारायण जी की कृपा बरसती है। इसके अलावा, जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं। अगर आप भी जगत के पालनहार भगवान विष्णु की कृपा पाना चाहते हैं, तो शुक्रवार के दिन इस विधि से मां लक्ष्मी की पूजा करें।

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    लक्ष्मी पूजन विधि

    शुक्रवार के दिन सूर्योदय से पहले उठें। इस समय लक्ष्मी नारायण जी का ध्यान कर दिन की शुरुआत करें। घर की साफ-सफाई करें। दैनिक कामों से निवृत्त होने के बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान करें। इसके बाद आचमन कर पीले या लाल रंग के कपड़े पहनें। इसके बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें। अब पूजा गृह में एक चौकी पर लक्ष्मी नारायण जी की प्रतिमा या छवि विराजमान करें। इसके बाद मां लक्ष्मी को लाल रंग की चुनरी अर्पित करें। अब पंचोपचार कर भक्ति भाव से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करें। देवी मां लक्ष्मी को फल, फूल, नारियल, चावल की खीर अर्पित करें। पूजा के समय लक्ष्मी चालीसा का पाठ और मंत्र का जप करें। अंत में लक्ष्मी नारायण जी की आरती करें।

    मां लक्ष्मी ध्यान

    सिन्दूरारुणकान्तिमब्जवसतिं सौन्दर्यवारांनिधिं,

    कॊटीराङ्गदहारकुण्डलकटीसूत्रादिभिर्भूषिताम् ।

    हस्ताब्जैर्वसुपत्रमब्जयुगलादर्शंवहन्तीं परां,

    आवीतां परिवारिकाभिरनिशं ध्याये प्रियां शार्ङ्गिणः ॥

    भूयात् भूयो द्विपद्माभयवरदकरा तप्तकार्तस्वराभा,

    रत्नौघाबद्धमौलिर्विमलतरदुकूलार्तवालेपनाढ्या ।

    नाना कल्पाभिरामा स्मितमधुरमुखी सर्वगीर्वाणवनद्या,

    पद्माक्षी पद्मनाभोरसिकृतवसतिः पद्मगा श्री श्रिये वः ॥

    वन्दे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां,

    हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैर्नानाविधैर्भूषिताम् ।

    भक्ताभीष्टफलप्रदां हरिहरब्रह्मादिभिस्सेवितां,

    पार्श्वे पङ्कजशङ्खपद्मनिधिभिर्युक्तां सदा शक्तिभिः ॥

    ॥ श्री लक्ष्मीनारायण आरती ॥

    जय लक्ष्मी-विष्णो।जय लक्ष्मीनारायण,

    जय लक्ष्मी-विष्णो।जय माधव, जय श्रीपति,

    जय, जय, जय विष्णो॥

    जय लक्ष्मी-विष्णो।

    जय चम्पा सम-वर्णेजय नीरदकान्ते।

    जय मन्द स्मित-शोभेजय अदभुत शान्ते॥

    जय लक्ष्मी-विष्णो।

    कमल वराभय-हस्तेशङ्खादिकधारिन्।

    जय कमलालयवासिनिगरुडासनचारिन्॥

    जय लक्ष्मी-विष्णो।

    सच्चिन्मयकरचरणेसच्चिन्मयमूर्ते।

    दिव्यानन्द-विलासिनिजय सुखमयमूर्ते॥

    जय लक्ष्मी-विष्णो।

    तुम त्रिभुवन की माता,तुम सबके त्राता।

    तुम लोक-त्रय-जननी,तुम सबके धाता॥

    जय लक्ष्मी-विष्णो।

    तुम धन जन सुखसन्तित जय देनेवाली।

    परमानन्द बिधातातुम हो वनमाली॥

    जय लक्ष्मी-विष्णो।

    तुम हो सुमति घरों में,तुम सबके स्वामी।

    चेतन और अचेतनके अन्तर्यामी॥

    जय लक्ष्मी-विष्णो।

    शरणागत हूँ मुझ परकृपा करो माता।

    जय लक्ष्मी-नारायणनव-मन्गल दाता॥

    जय लक्ष्मी-विष्णो।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।

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