Aaj ka Panchang 25 September 2025: विनायक चतुर्थी पर बन रहे कई अद्भुत योग, पढ़ें आज का पंचांग
Aaj ka Panchang 25 सितंबर 2025 के अनुसार आज शारदीय नवरात्र की तृतीया तिथि है। इस तिथि पर मां चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना करने का विधान है और विधिपूर्वक व्रत भी किया जाता है। मां चंद्रघंटा की उपसना करने से भक्त की सभी मुरादें पूरी होती हैं। ऐसे में आइए एस्ट्रोलॉजर आनंद सागर पाठक से जानते हैं आज का पंचांग।

आनंद सागर पाठक, एस्ट्रोपत्री। आज यानी 25 सितंबर को आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि है। आज विनायक चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा। शारदीय नवरात्र में इस तिथि पर मां चंद्रघंटा के संग भगवान गणेश की पूजा-अर्चना होगी।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, गणपति बप्पा की पूजा करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं और मां चंद्रघंटा की पूजा करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है। विनायक चतुर्थी पर कई योग भी बन रहे हैं। ऐसे में आइए जानते हैं आज का पंचांग (Aaj ka Panchang 25 September 2025) के बारे में।
तिथि: शुक्ल तृतीया
मास पूर्णिमांत: अश्विन
दिन: गुरुवार
संवत्: 2082
तिथि: तृतीया प्रातः 07 बजकर 06 मिनट तक
योग: वैधृति रात्रि 09 बजकर 54 मिनट तक
करण: गरज प्रातः 07 बजकर 06 मिनट तक
करण: वणिज सायं 08 बजकर 18 मिनट तक
सूर्योदय और सूर्यास्त का समय
सूर्योदय: प्रातः 06 बजकर 10 मिनट पर
सूर्यास्त: सायं 06 बजकर 15 मिनट पर
चंद्रोदय: प्रातः 08 बजकर 19 मिनट पर
चन्द्रास्त: सायं 07 बजकर 27 मिनट पर
सूर्य राशि: कन्या
चंद्र राशि: तुला
पक्ष: शुक्ल
शुभ समय अवधि
अभिजीत मुहूर्त: प्रातः 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12बजकर 37 मिनट तक
अमृत काल: प्रातः 09 बजकर 17 मिनट से प्रातः 11 बजकर 05 मिनट तक
अशुभ समय अवधि
राहुकाल: दोपहर 01 बजकर 43 मिनट से दोपहर 03 बजकर 13 मिनट तक
गुलिकाल: प्रातः 09 बजकर 12 मिनट से प्रातः 10 बजकर 42 मिनट तक
यमगण्ड: प्रातः 06 बजकर 11 मिनट से प्रातः 07 बजकर 41 मिनट तक
आज का नक्षत्र
आज चंद्रदेव स्वाति नक्षत्र में रहेंगे…
स्वाति नक्षत्र- सायं 07 बजकर 09 मिनट तक
सामान्य विशेषताएं: स्वतंत्र स्वभाव, लचीलापन, शिष्टाचार, बुद्धिमत्ता, आत्मसंयम, समाजप्रियता, संवेदनशीलता, शांत स्वभाव, शालीनता और आकर्षक व्यक्तित्व
नक्षत्र स्वामी: राहु देव
राशि स्वामी: शुक्र देव
देवता: पवन देव (पवन के देवता)
प्रतीक: हवा में झुकती हुई एक नई कली
गणेश मंत्र
1. ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
2. ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
3. 'गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक :।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।
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