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    Vinayak Chaturthi 2025: इन दिव्य मंत्रों के जप से करें गणपति बप्पा को प्रसन्न, खुशियों से भर जाएगा जीवन

    Updated: Wed, 24 Sep 2025 01:37 PM (IST)

    ज्योतिषियों की मानें तो विनायक चतुर्थी (Krishnapingal Vinayak Chaturthi 2025) पर रवि योग समेत कई मंगलकारी संयोग बन रहे हैं। इस योग में भगवान गणेश की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। साथ ही घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आएगी। इस दिन दान-पुण्य भी किया जाता है।

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    Vinayak Chaturthi 2025: भगवान गणेश को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, गुरुवार 25 सितंबर को विनायक चतुर्थी है। यह पर्व प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस शुभ अवसर पर भक्ति भाव से भगवान गणेश की पूजा की जाएगी। साथ ही उनके निमित्त चतुर्थी तिथि का व्रत रखा जाएगा।

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    धार्मिक मत है कि भगवान गणेश की पूजा करने से सुख और सौभाग्य में वृ्द्धि होती है। साथ ही आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। अगर आप भी करियर और कारोबार में मनमुताबिक सफलता पाना चाहते हैं, तो चतुर्थी तिथि पर भक्ति भाव से गणेश जी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।

    गणेश मंत्र

    1. ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।

    निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

    2. ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥

    3. 'गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।

    नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक :।।

    धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।

    गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।

    4. ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

    5. दन्ताभये चक्रवरौ दधानं, कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।

    धृताब्जयालिङ्गितमाब्धि पुत्र्या-लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे॥

    6. ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नम:।।

    7. “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चिरचिर गणपतिवर वर देयं मम वाँछितार्थ कुरु कुरु स्वाहा ।”

    8. गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।

    द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥

    विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।

    द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्‌ ॥

    विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत्‌ क्वचित्‌ ।

    9. ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।

    10. वन्दे गजेन्द्रवदनं वामाङ्कारूढवल्लभाश्लिष्टम् ।

    कुङ्कुमरागशोणं कुवलयिनीजारकोरकापीडम् ॥

    विघ्नान्धकारमित्रं शङ्करपुत्रं सरोजदलनेत्रम् ।

    सिन्दूरारुणगात्रं सिन्धुरवक्त्रं नमाम्यहोरात्रम् ॥

    गलद्दानगण्डं मिलद्भृङ्गषण्डं,

    चलच्चारुशुण्डं जगत्त्राणशौण्डम् ।

    लसद्दन्तकाण्डं विपद्भङ्गचण्डं,

    शिवप्रेमपिण्डं भजे वक्रतुण्डम् ॥

    गणेश्वरमुपास्महे गजमुखं कृपासागरं,

    सुरासुरनमस्कृतं सुरवरं कुमाराग्रजम् ।

    सुपाशसृणिमोदकस्फुटितदन्तहस्तोज्ज्वलं,

    शिवोद्भवमभीष्टदं श्रितततेस्सुसिद्धिप्रदम् ॥

    विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणिर्विघ्नाटवीहव्यवाट्,

    विघ्नव्यालकुलप्रमत्तगरुडो विघ्नेभपञ्चाननः ।

    विघ्नोत्तुङ्गगिरिप्रभेदनपविर्विघ्नाब्धिकुंभोद्भवः,

    विघ्नाघौघघनप्रचण्डपवनो विघ्नेश्वरः पातु नः ॥

    संकटनाशन गणेश स्तोत्र

    प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम ।

    भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ॥

    प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम ।

    तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम॥

    लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च ।

    सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ॥

    नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम ।

    एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥

    द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।

    न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो ॥

    विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।

    पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥

    जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।

    संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:॥

    अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत ।

    तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:॥

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