Vivah Panchami 2025: विवाह पंचमी के दिन जरूर करें ये स्तुति, जीवन में होगा मंगल ही मंगल
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था, जिस कारण विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम और माता सीता की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और व्रत किया जाता है। ऐसे में पूजा के दौरान ये स्तुति जरूर करें।
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Vivah Panchami 2025 (Picture Credit: Freepik) (AI Image)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। पंचांग के मुताबिक 25 नवंबर को विवाह पंचमी मनाई जाएगी। ऐसे में अगर विवाह पंचमी (Vivah Panchami 2025 Date) की पूजा में आप श्री राम स्तुति और श्री जानकी स्तुति का पाठ करते हैं, तो इससे आपको अदुभत लाभ देखने को मिल सकते हैं।
विवाह पंचमी पूजा विधि
विवाह पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं। इसके बाद पूजा स्थल की साफ-सफाई कर गंगाजल का छिड़काव करें। एक चौकी बिछाकर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और प्रभु श्री राम व सीता जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। भगवान गणेश के मंत्रों का जप करें और हनुमान जी का आवाहन करें।
अब विवाह की रस्में शुरू करें और माता सीता को लाल रंग के वस्त्र व शृंगार का सामान अर्पित करें। इसके साथ ही भगवान श्रीराम को पीले रंग के वस्त्र चढ़ाएं। अब राम-सीता जी को फूलों की माला पहनाएं और उनका गठबंधन करें। हल्दी, चंदन, फूल, धूप आदि अर्पित करें और घी का दीपक जलाकर आरती करें। अंत में सभी लोगों में प्रसाद बाटें।
श्री राम स्तुति (Shri Ram Stuti)
॥दोहा॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन
हरण भवभय दारुणं ।
नव कंज लोचन कंज मुख
कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥
कन्दर्प अगणित अमित छवि
नव नील नीरद सुन्दरं ।
पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि
नोमि जनक सुतावरं ॥२॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव
दैत्य वंश निकन्दनं ।
रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल
चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥
शिर मुकुट कुंडल तिलक
चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर
संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास शंकर
शेष मुनि मन रंजनं ।
मम् हृदय कंज निवास कुरु
कामादि खलदल गंजनं ॥५॥
मन जाहि राच्यो मिलहि सो
वर सहज सुन्दर सांवरो ।
करुणा निधान सुजान शील
स्नेह जानत रावरो ॥६॥
एहि भांति गौरी असीस सुन सिय
सहित हिय हरषित अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि
मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥
॥सोरठा॥
जानी गौरी अनुकूल सिय
हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल वाम
अङ्ग फरकन लगे।
रचयिता: गोस्वामी तुलसीदास
श्री जानकी स्तुति (Sri Janaki Stuti)
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ।
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥ १॥
दारिद्र्यरणसंहत्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम् ।
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम् ॥ २॥
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ।
पौलस्त्यैश्वर्यसन्त्री भक्ताभीष्टां सरस्वतीम् ॥ ३॥
पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम् ।
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम् ॥ ४॥
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम् ।
प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम् ॥ ५॥

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नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम् ।
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम् ॥ ६॥
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्षस्थलालयाम् ।
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम् ॥ ७॥
आह्लादरूपिणीं सिद्धि शिवां शिवकरी सतीम् ।
नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम् ।
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा ॥ ८॥
इति श्रीस्कन्दमहापुराणे सेतुमाहात्म्ये श्रीहनुमत्कृता
श्रीजानकीस्तुतिः सम्पूर्णा ।
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