Vinayak Chaturthi 2025: पूरा फल पाने के लिए विनायक चतुर्थी की पूजा में जरूर करें इस आरती का पाठ
विनायक चतुर्थी की तिथि पर मुख्य रूप से भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस साल विनायक चतुर्थी 1 मई को मनाई जा रही है। इस दिन पर कई जातक व्रत भी करते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से साधक के सभी बिगड़े काम बन सकते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर महीने में मनाई जाने वाली विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi 2025) का दिन मुख्य रूप से भगवान गणेश को समर्पित माना जाता है। इस दिन व्रत और गणपति जी की पूजा-अर्चना से साधक के जीवन में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। ऐसे में इस दिन पर पूजा के दौरान गणेश जी की आरती व मंत्रों का जप जरूर करना चाहिए, ताकि आपको पूजा का पूरा फल मिल सके।
विनायक चतुर्थी मुहूर्त (Vinayak Chaturthi Muhurat)
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 30 अप्रैल को दोपहर 02 बजकर 12 मिनट पर शुरू हो चुकी है। वहीं इस तिथि का समापन 01 मई को सुबह 11 बजकर 23 मिनट पर हो जाएगा। उदया तिथि के अनुसार वैशाख माह की विनायक चतुर्थी गुरुवार 01 मई को मनाई जा रही है। इस दिन पर पूजा का मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहने वाला है -
विनायक चतुर्थी पूजा मुहूर्त - सुबह 10 बजकर 59 मिनट से सुबह 11 बजकर 23 मिनट तक
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
पान चढ़े फल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
भगवान गणेश की जय, पार्वती के लल्ला की जय
(Picture Credit: Freepik)
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गणेश जी के मंत्र
1.कदंताय विद्महे, वक्रतुंडाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात।।
2. ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा ॥
3. ॐ गंग गणपतये नमो नमः
4. वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
5. एकदंताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने।।
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