Vinayak Chaturthi 2025: विनायक चतुर्थी के दिन इस तरह प्राप्त करें विघ्नहर्ता की कृपा, मिलेंगे शुभ परिणाम
हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (Vinayak Chaturthi 2025) पर भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस दिन भक्त व्रत रखते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान गणेश की सच्चे मन से पूजा करने से रुके हुए काम पूरे होते हैं और महादेव के पुत्र विघ्नहर्ता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, 1 मई को विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi 2025 Date) का पर्व मनाया जाएगा। विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत करना शुभ माना जाता है। साथ ही विशेष चीजों का दान करना चाहिए। इससे धन लाभ के योग बनते हैं। विनायक चतुर्थी की पूजा के दौरान गणेश स्तुति का पाठ जरूर करना चाहिए।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, गणेश स्तुति (Ganesh Stuti Lyrics) का पाठ करने से साधक को जीवन में शुभ परिणाम देखने को मिलते हैं और गणपति बप्पा की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही धन एवं बुद्धि में वृद्धि होती है।
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विनायक चतुर्थी 2025 शुभ मुहूर्त
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत- दोपहर 2 बजकर 12 मिनट पर
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का समापन- 1 मई को सुबह 11 बजकर 23 मिनट पर
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गणेश स्तुति का पाठ (Ganesh Stuti)
मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम्।
अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ।। १।।
नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं नमत्सुरारिनिर्जकं नताधिकापदुद्धरम् ।
सुरेश्वरमं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ।। २।।
समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं नमस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ।। ३।।
अकिंचनार्तिमार्जनं चिरंतनोक्तिभाजनं पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।
प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणं कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ।।४।।
नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजमचिन्त्यरुपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम्।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि संततम् ।। ५।।
महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ।। ६।।
मंगलमुर्ती मोरया।।
गणेश मंत्र
1. गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित् ।
2. दन्ताभये चक्रवरौ दधानं, कराग्रगं स्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जयालिङ्गितमाब्धि पुत्र्या-लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे॥
3. शृणु पुत्र महाभाग योगशान्तिप्रदायकम् ।
येन त्वं सर्वयोगज्ञो ब्रह्मभूतो भविष्यसि ॥
चित्तं पञ्चविधं प्रोक्तं क्षिप्तं मूढं महामते ।
विक्षिप्तं च तथैकाग्रं निरोधं भूमिसज्ञकम् ॥
तत्र प्रकाशकर्ताऽसौ चिन्तामणिहृदि स्थितः ।
साक्षाद्योगेश योगेज्ञैर्लभ्यते भूमिनाशनात् ॥
चित्तरूपा स्वयंबुद्धिश्चित्तभ्रान्तिकरी मता ।
सिद्धिर्माया गणेशस्य मायाखेलक उच्यते ॥
अतो गणेशमन्त्रेण गणेशं भज पुत्रक ।
तेन त्वं ब्रह्मभूतस्तं शन्तियोगमवापस्यसि ॥
इत्युक्त्वा गणराजस्य ददौ मन्त्रं तथारुणिः ।
एकाक्षरं स्वपुत्राय ध्यनादिभ्यः सुसंयुतम् ॥
तेन तं साधयति स्म गणेशं सर्वसिद्धिदम् ।
क्रमेण शान्तिमापन्नो योगिवन्द्योऽभवत्ततः ॥
4. ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
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