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    Shardiya Navratri 2023: स्कंदमाता की पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ एवं आरती, आय और सौभाग्य में होगी वृद्धि

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Wed, 18 Oct 2023 05:11 PM (IST)

    नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। साथ ही सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति हेतु व्रत उपवास रखा जाता है। शास्त्रों में निहित है कि मां की पूजा करने से साधक को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। स्कंदमाता चार भुजा धारी हैं।

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    Durga Puja 2023 Day 5: स्कंदमाता की पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ एवं आरती

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Shardiya Navratri 2023 Day 5: सनातन धर्म में शारदीय नवरात्र पर जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है। नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। साथ ही सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति हेतु व्रत उपवास रखा जाता है। शास्त्रों में निहित है कि मां की पूजा करने से साधक को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। स्कंदमाता चार भुजा धारी हैं। इनमें एक भुजा यानी हस्त वरमुद्रा में है। इससे समस्त लोक का कल्याण होता है। अगर आप भी स्कंदमाता का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो नवरात्र के पांचवें दिन पूजा के समय पार्वती चालीसा का पाठ और आरती जरूर करें।

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    माता पार्वती चालीसा

    दोहा

    जय गिरी तनये दक्षजे शम्भू प्रिये गुणखानि।

    गणपति जननी पार्वती अम्बे! शक्ति! भवानि।

    चौपाई

    ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे,

    पंच बदन नित तुमको ध्यावे।

    षड्मुख कहि न सकत यश तेरो,

    सहसबदन श्रम करत घनेरो।।

    तेऊ पार न पावत माता,

    स्थित रक्षा लय हिय सजाता।

    अधर प्रवाल सदृश अरुणारे,

    अति कमनीय नयन कजरारे।।

    ललित ललाट विलेपित केशर,

    कुंकुंम अक्षत् शोभा मनहर।

    कनक बसन कंचुकि सजाए,

    कटी मेखला दिव्य लहराए।।

    कंठ मंदार हार की शोभा,

    जाहि देखि सहजहि मन लोभा।

    बालारुण अनंत छबि धारी,

    आभूषण की शोभा प्यारी।।

    नाना रत्न जड़ित सिंहासन,

    तापर राजति हरि चतुरानन।

    इन्द्रादिक परिवार पूजित,

    जग मृग नाग यक्ष रव कूजित।।

    गिर कैलास निवासिनी जय जय,

    कोटिक प्रभा विकासिनी जय जय।

    त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी,

    अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी।।

    हैं महेश प्राणेश तुम्हारे,

    त्रिभुवन के जो नित रखवारे।

    उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब,

    सुकृत पुरातन उदित भए तब।।

    बूढ़ा बैल सवारी जिनकी,

    महिमा का गावे कोउ तिनकी।

    सदा श्मशान बिहारी शंकर,

    आभूषण हैं भुजंग भयंकर।।

    कण्ठ हलाहल को छबि छायी,

    नीलकण्ठ की पदवी पायी।

    देव मगन के हित अस किन्हो,

    विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो।।

    ताकी, तुम पत्नी छवि धारिणी,

    दुरित विदारिणी मंगल कारिणी।

    देखि परम सौंदर्य तिहारो,

    त्रिभुवन चकित बनावन हारो।।

    भय भीता सो माता गंगा,

    लज्जा मय है सलिल तरंगा।

    सौत समान शम्भू पहआयी,

    विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी।।

    तेहि कों कमल बदन मुरझायो,

    लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो।

    नित्यानंद करी बरदायिनी,

    अभय भक्त कर नित अनपायिनी।।

    अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी,

    माहेश्वरी, हिमालय नन्दिनी।

    काशी पुरी सदा मन भायी,

    सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी।।

    भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री,

    कृपा प्रमोद सनेह विधात्री।

    रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे,

    वाचा सिद्ध करि अवलम्बे।।

    गौरी उमा शंकरी काली,

    अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली।

    सब जन की ईश्वरी भगवती,

    पतिप्राणा परमेश्वरी सती।।

    तुमने कठिन तपस्या कीनी,

    नारद सों जब शिक्षा लीनी।

    अन्न न नीर न वायु अहारा,

    अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा।।

    पत्र घास को खाद्य न भायउ,

    उमा नाम तब तुमने पायउ।

    तप बिलोकी ऋषि सात पधारे,

    लगे डिगावन डिगी न हारे।।

    तब तव जय जय जय उच्चारेउ,

    सप्तऋषि निज गेह सिद्धारेउ।

    सुर विधि विष्णु पास तब आए,

    वर देने के वचन सुनाए।।

    मांगे उमा वर पति तुम तिनसों,

    चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों।

    एवमस्तु कही ते दोऊ गए,

    सुफल मनोरथ तुमने लए।।

    करि विवाह शिव सों भामा,

    पुनः कहाई हर की बामा।

    जो पढ़िहै जन यह चालीसा,

    धन जन सुख देइहै तेहि ईसा।।

    दोहा

    कूटि चंद्रिका सुभग शिर,

    जयति जयति सुख खा‍नि,

    पार्वती निज भक्त हित,

    रहहु सदा वरदानि।

    यह भी पढ़ें- नवरात्रि के पांचवें दिन दुर्लभ 'शोभन' योग का हो रहा है निर्माण, प्राप्त होगा मां का आशीर्वाद

    माता पार्वती की आरती

    जय पार्वती माता, जय पार्वती माता।

    ब्रह्म सनातन देवी, शुभ फल की दाता।।

    जय पार्वती माता...

    अरिकुल पद्मा विनासनी जय सेवक त्राता।

    जग जीवन जगदम्बा हरिहर गुण गाता।

    जय पार्वती माता...

    सिंह को वाहन साजे कुंडल है साथा।

    देव वधु जहं गावत नृत्य कर ताथा।।

    जय पार्वती माता...

    सतयुग शील सुसुन्दर नाम सती कहलाता।

    हेमांचल घर जन्मी सखियन रंगराता।।

    जय पार्वती माता...

    शुम्भ-निशुम्भ विदारे हेमांचल स्याता।

    सहस भुजा तनु धरिके चक्र लियो हाथा।।

    जय पार्वती माता...

    सृष्ट‍ि रूप तुही जननी शिव संग रंगरात

    नंदी भृंगी बीन लाही सारा मदमाता।

    जय पार्वती माता...

    देवन अरज करत हम चित को लाता।

    गावत दे दे ताली मन में रंगराता।।

    जय पार्वती माता...

    श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता।

    सदा सुखी रहता सुख संपति पाता।।

    जय पार्वती माता...

    डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।