Shani Amavasya 2025: शनि अमावस्या के दिन इस विधि से करें गंगा चालीसा का पाठ, पापों से मिलेगा छुटकारा
वैदिक पंचांग के अनुसार 29 मार्च के दिन शनि अमावस्या (Shani Amavasya 2025) का पर्व मनाया जाएगा। इसी दिन शनि मीन राशि में गोचर करेंगे और सूर्य ग्रहण भी है। शनि अमावस्या को चैत्र अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां गंगा की पूजा करने से सभी पापों से छुटकारा मिलता है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में चैत्र महीने का विशेष महत्व है। इस बार चैत्र माह में शनि अमावस्या (Shani Amavasya 2025) का पर्व मनाया जाएगा। अमावस्या तिथि पर पवित्र नदी में स्न्नान और दान करना शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, पवित्र नदी में स्न्नान और विशेष चीजों का दान करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। ऐसे में मां गंगा की पूजा जरूर करनी चाहिए।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां गंगा की पूजा करने से साधक के सभी पापों का नाश होता है। अगर आप मां गंगा की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो शनि अमावस्या पर विधिपूर्वक गंगा चालीसा का पाठ करें। इससे सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और मां गंगा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस विधि से करें गंगा चालीसा का पाठ
- शनि अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठें।
- गंगा स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें और सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- इस दौरान दीपदान करें और सच्चे मन से गंगा चालीसा का पाठ करें।
- गंगा आरती कर लोगों में प्रसाद बाटें।
- अन्न और धन का दान करें।
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गंगा चालीसा
॥ दोहा॥
जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग।
जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जननी हरण अघ खानी।
आनंद करनि गंग महारानी॥
जय भगीरथी सुरसरि माता।
कलिमल मूल दलनि विख्याता॥
जय जय जहानु सुता अघ हनानी।
भीष्म की माता जगा जननी॥
धवल कमल दल मम तनु साजे।
लखि शत शरद चंद्र छवि लाजे॥
वाहन मकर विमल शुचि सोहै।
अमिय कलश कर लखि मन मोहै॥
जड़ित रत्न कंचन आभूषण।
हिय मणि हर, हरणितम दूषण॥
जग पावनि त्रय ताप नसावनि।
तरल तरंग तंग मन भावनि॥
जो गणपति अति पूज्य प्रधाना।
तिहूं ते प्रथम गंगा स्नाना॥
ब्रह्म कमंडल वासिनी देवी।
श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥
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साठि सहस्त्र सागर सुत तारयो।
गंगा सागर तीरथ धरयो॥
अगम तरंग उठ्यो मन भावन।
लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन॥
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट।
धरयौ मातु पुनि काशी करवट॥
धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढी।
तारणि अमित पितु पद पिढी॥
भागीरथ तप कियो अपारा।
दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥
जब जग जननी चल्यो हहराई।
शम्भु जाटा महं रह्यो समाई॥
वर्ष पर्यंत गंग महारानी।
रहीं शम्भू के जटा भुलानी॥
पुनि भागीरथी शंभुहिं ध्यायो।
तब इक बूंद जटा से पायो॥
ताते मातु भइ त्रय धारा।
मृत्यु लोक, नाभ, अरु पातारा॥
गईं पाताल प्रभावति नामा।
मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि।
कलिमल हरणि अगम जग पावनि॥
धनि मइया तब महिमा भारी।
धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥
मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।
धनि सुरसरित सकल भयनासिनी॥
पान करत निर्मल गंगा जल।
पावत मन इच्छित अनंत फल॥
पूर्व जन्म पुण्य जब जागत।
तबहीं ध्यान गंगा महं लागत॥
जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।
तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥
महा पतित जिन काहू न तारे।
तिन तारे इक नाम तिहारे॥
शत योजनहू से जो ध्यावहिं।
निशचाई विष्णु लोक पद पावहिं॥
नाम भजत अगणित अघ नाशै।
विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै॥
जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।
धर्मं मूल गंगाजल पाना॥
तब गुण गुणन करत दुख भाजत।
गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥
गंगाहि नेम सहित नित ध्यावत।
दुर्जनहुँ सज्जन पद पावत॥
बुद्दिहिन विद्या बल पावै।
रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै॥
गंगा गंगा जो नर कहहीं।
भूखे नंगे कबहु न रहहि॥
निकसत ही मुख गंगा माई।
श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥
महाँ अधिन अधमन कहँ तारें।
भए नर्क के बंद किवारें॥
जो नर जपै गंग शत नामा।
सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥
सब सुख भोग परम पद पावहिं।
आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥
धनि मइया सुरसरि सुख दैनी।
धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥
कंकरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।
सुन्दरदास गंगा कर दासा॥
जो यह पढ़े गंगा चालीसा।
मिली भक्ति अविरल वागीसा॥
॥ दोहा ॥
नित नव सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान।
अंत समय सुरपुर बसै। सादर बैठी विमान॥
संवत भुज नभ दिशि । राम जन्म दिन चैत्र।
पूरण चालीसा कियो। हरी भक्तन हित नैत्र॥
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