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    Shabari Jayanti 2025: शबरी जयंती पर इस तरह करें श्रीराम जी की पूजा व आरती, नहीं रहेगा कोई कष्ट

    शबरी भगवान श्रीराम की अंतत भक्त थी जिसने जीवनभर राम जी की राह देखी। भगवान श्रीराम के वनवास के दौरान शबरी को राम जी के दर्शन पाने का मौका मिला। ऐसे में अगर आप राम जी की कृपा पाना चाहते हैं तो शबरी जयंती (Shabari Jayanti 2025 Significance) इसके लिए एक विशेष अवसर है। चलिए जानते हैं शबरी जयंती पर राम जी की पूजा विधि।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Thu, 20 Feb 2025 08:26 AM (IST)
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    Shabari Jayanti 2025 राम जी की पूजा विधि।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर शबरी जयंती मनाई जाती है। ऐसे में इस साल शबरी जयंती (Shabari Jayanti 2025) गुरुवार, 20 फरवरी को मनाई जा रही है। इस दिन पर भगवान राम की पूजा-अर्चना से साधक को जीवन में अच्छे परिणाम मिलने लगते हैं। ऐसे में आप इस दिन पर श्रीराम जी की विधिवत रूप से पूजा-अर्चना कर आरती का पाठ भी जरूर करें।

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    इस तरह करें पूजा

    शबरी जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद पीले रंग के वस्त्र धारण करें और मंदिर में गंगाजल का छिड़काव करें। राम जी की तस्वीर स्थापित कर विधिवत रूप से पूजा-अर्चना करें। इस दिन आप राम जी को बैर का भोग लगा सकते हैं। अंत में आरती करते हुए सभी लोगों में प्रसाद बांटें।

    भगवान राम की आरती

    श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।

    नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

    कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।

    पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

    कोई भी पूजा आरती के बिना अधूरी मानी जाती है। ऐसे में शबरी जयंती के दिन भगवान राम की पूजा के दौरान राम जी की आरती का पाठ भी जरूर करना चाहिए। इससे आपको पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। 

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    भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।

    रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

    सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

    आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

    इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

    मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

    मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।

    करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

    एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।

    तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

    दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

    मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।