Sawan 2025: सावन में रोजाना करें इस स्तोत्र का पाठ, कृपा बरसाएंगे महादेव
सावन का पवित्र महीना चल रहा है। यह अवधि भगवान शिव की आराधना करने व उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए उत्तम मानी गई है। ऐसे में आप इस माह में शिव जी की आराधना के समय द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पाठ करके शिव जी की असीम कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन को हिंदू धर्म में एक पवित्र माह के रूप में देखा जाता है, जो भगवान शिव की आराधना करने के लिए बहुत ही खास है। विशेषकर सावन सोमवार का दिन। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भोलेनाथ केवल जल चढ़ाने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं।
अधिक लाभ प्राप्ति के लिए आप शिव जी की पूजा के दौरान द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् का भी पाठ कर सकते हैं। इससे साधक को शिव जी का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम् (Dwadash Jyotirlinga Stotram)
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालम्ॐकारममलेश्वरम् ॥१॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमाशंकरम् ।
सेतुबंधे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥२॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारम् घुश्मेशं च शिवालये ॥३॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥४॥
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम्
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम् ।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥1
श्रीशैलशृङ्गे विबुधातिसङ्गे तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥2
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥3
सावन में आने वाले सोमवार के दिन व्रत करना बहुत ही पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन विशेष विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से आपको शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही साधक की मनचाही इच्छा भी पूरी होती है।
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कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्तमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥4
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥5
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥6
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः ।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥7
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे ।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥8
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥9
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥10
सानन्दमानन्दवने वसन्तमानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥11
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।
वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये ॥12
ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥13
(Picture Credit: Freepik)
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