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    Mahalakshmi Vrat 2023: आज पूजा के समय करें महालक्ष्मी चालीसा का पाठ और आरती, आर्थिक तंगी हो जाएगी दूर

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Fri, 22 Sep 2023 07:00 AM (IST)

    Mahalakshmi Vrat 2023 आज से महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ हो रहा है। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि महालक्ष्मी व्रत करने से धन संबंधी परेशानी दूर हो जाती है। साथ ही घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है।

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    Mahalakshmi Vrat 2023: आज पूजा के समय करें महालक्ष्मी चालीसा का पाठ और आरती, आर्थिक तंगी हो जाएगी दूर

    नई दिल्ली, अध्यात्म। Mahalakshmi Vrat 2023: सनातन धर्म में शुक्रवार का दिन धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही लक्ष्मी वैभव व्रत भी रखा जाता है। आज से महालक्ष्मी व्रत प्रारंभ हो रहा है। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि महालक्ष्मी व्रत करने से धन संबंधी परेशानी दूर हो जाती है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। अगर आप भी आर्थिक तंगी से निजात पाना चाहते हैं, तो आज पूजा के समय माँ महालक्ष्मी चालीसा का पाठ और आरती जरूर करें।

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    Mahalakshmi Vrat 2023: महालक्ष्मी व्रत के दौरान करें इन मंत्रों का जाप, आय और सौभाग्य में होगी अपार वृद्धि

    श्री महालक्ष्मी चालीसा

    दोहा

    जय जय श्री महालक्ष्मी, करूँ मात तव ध्यान।

    सिद्ध काज मम किजिये,निज शिशु सेवक जान॥

    चौपाई

    नमो महा लक्ष्मी जय माता।

    तेरो नाम जगत विख्याता॥

    आदि शक्ति हो मात भवानी।

    पूजत सब नर मुनि ज्ञानी॥

    जगत पालिनी सब सुख करनी।

    निज जनहित भण्डारण भरनी॥

    श्वेत कमल दल पर तव आसन।

    मात सुशोभित है पद्मासन॥

    श्वेताम्बर अरू श्वेता भूषण।

    श्वेतही श्वेत सुसज्जित पुष्पन॥

    शीश छत्र अति रूप विशाला।

    गल सोहे मुक्तन की माला॥

    सुंदर सोहे कुंचित केशा।

    विमल नयन अरु अनुपम भेषा॥

    कमलनाल समभुज तवचारि।

    सुरनर मुनिजनहित सुखकारी॥

    अद्भूत छटा मात तव बानी।

    सकलविश्व कीन्हो सुखखानी॥

    शांतिस्वभाव मृदुलतव भवानी।

    सकल विश्वकी हो सुखखानी॥

    महालक्ष्मी धन्य हो माई।

    पंच तत्व में सृष्टि रचाई॥

    जीव चराचर तुम उपजाए।

    पशु पक्षी नर नारी बनाए॥

    क्षितितल अगणित वृक्ष जमाए।

    अमितरंग फल फूल सुहाए॥

    छवि विलोक सुरमुनि नरनारी।

    करे सदा तव जय-जय कारी॥

    सुरपति औ नरपत सब ध्यावैं।

    तेरे सम्मुख शीश नवावैं॥

    चारहु वेदन तब यश गाया।

    महिमा अगम पार नहिं पाये॥

    जापर करहु मातु तुम दाया।

    सोइ जग में धन्य कहाया॥

    पल में राजाहि रंक बनाओ।

    रंक राव कर बिमल न लाओ॥

    जिन घर करहु माततुम बासा।

    उनका यश हो विश्व प्रकाशा॥

    जो ध्यावै से बहु सुख पावै।

    विमुख रहे हो दुख उठावै॥

    महालक्ष्मी जन सुख दाई।

    ध्याऊं तुमको शीश नवाई॥

    निज जन जानीमोहीं अपनाओ।

    सुखसम्पति दे दुख नसाओ॥

    ॐ श्री-श्री जयसुखकी खानी।

    रिद्धिसिद्ध देउ मात जनजानी॥

    ॐह्रीं-ॐह्रीं सब व्याधिहटाओ।

    जनउन विमल दृष्टिदर्शाओ॥

    ॐक्लीं-ॐक्लीं शत्रुन क्षयकीजै।

    जनहित मात अभय वरदीजै॥

    ॐ जयजयति जयजननी।

    सकल काज भक्तन के सरनी॥

    ॐ नमो-नमो भवनिधि तारनी।

    तरणि भंवर से पार उतारनी॥

    सुनहु मात यह विनय हमारी।

    पुरवहु आशन करहु अबारी॥

    ऋणी दुखी जो तुमको ध्यावै।

    सो प्राणी सुख सम्पत्ति पावै॥

    रोग ग्रसित जो ध्यावै कोई।

    ताकी निर्मल काया होई॥

    विष्णु प्रिया जय-जय महारानी।

    महिमा अमित न जाय बखानी॥

    पुत्रहीन जो ध्यान लगावै।

    पाये सुत अतिहि हुलसावै॥

    त्राहि त्राहि शरणागत तेरी।

    करहु मात अब नेक न देरी॥

    आवहु मात विलम्ब न कीजै।

    हृदय निवास भक्त बर दीजै॥

    जानूं जप तप का नहिं भेवा।

    पार करो भवनिध वन खेवा॥

    बिनवों बार-बार कर जोरी।

    पूरण आशा करहु अब मोरी॥

    जानि दास मम संकट टारौ।

    सकल व्याधि से मोहिं उबारौ॥

    जो तव सुरति रहै लव लाई।

    सो जग पावै सुयश बड़ाई॥

    छायो यश तेरा संसारा।

    पावत शेष शम्भु नहिं पारा॥

    गोविंद निशदिन शरण तिहारी।

    करहु पूरण अभिलाष हमारी॥

    दोहा

    महालक्ष्मी चालीसा,पढ़ै सुनै चित लाय।

    ताहि पदारथ मिलै,अब कहै वेद अस गाय॥

    श्री महालक्ष्मी आरती

    ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।

    तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    उमा,रमा,ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।

    सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।

    जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।

    कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    जिस घर में तुम रहतीं, तहँ सब सद्गुण आता।

    सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।

    खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।

    रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।

    उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'