Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Margashirsha Amavasya 2025: मार्गशीर्ष अमावस्या पर पूजा के समय करें इस खास चालीसा का पाठ, बरसेगी पितरों की कृपा

    Updated: Mon, 17 Nov 2025 10:00 PM (IST)

    मार्गशीर्ष अमावस्या 20 दिसंबर को है। इस दिन गंगा स्नान कर पितरों का तर्पण करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है और पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है। साधक पापों से मुक्ति पाने के लिए विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करते हैं और गंगाजल से अभिषेक करते समय गंगा चालीसा का पाठ करते हैं। यह दिन आध्यात्मिक लाभ और सुख-समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।  

    Hero Image

    Margashirsha Amavasya 2025: मार्गशीर्ष अमावस्या का धार्मिक महत्व 

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, गुरुवार 20 दिसंबर को मार्गशीर्ष अमावस्या है। इस शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में साधक गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। इसके बाद भक्ति भाव से देवों के देव महादेव की पूजा करते हैं। पूजा के समय गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। इसके साथ ही मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितरों का भी तर्पण किया जाता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    tarpan vidhi

    गरुड़ पुराण में वर्णित है कि अमावस्या तिथि पर गंगा स्नान कर पितरों का तर्पण करने से साधक को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। साथ ही तीन पीढ़ी के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अगर आप भी जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन गंगा स्नान कर विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा (Margashirsha Amavasya 2025) करें  हैं। वहीं, भगवान शिव का अभिषेक करते समय गंगा चालीसा का पाठ अवश्य करें।


    गंगा चालीसा

    ॥ दोहा॥

    जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग।
    जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग॥


    ॥ चौपाई ॥

    जय जय जननी हरण अघ खानी।
    आनंद करनि गंग महारानी॥

    जय भगीरथी सुरसरि माता।
    कलिमल मूल दलनि विख्याता॥

    जय जय जहानु सुता अघ हनानी।
    भीष्म की माता जगा जननी॥

    धवल कमल दल मम तनु साजे।
    लखि शत शरद चंद्र छवि लाजे॥

    वाहन मकर विमल शुचि सोहै।
    अमिय कलश कर लखि मन मोहै॥

    जड़ित रत्न कंचन आभूषण।
    हिय मणि हर, हरणितम दूषण॥

    जग पावनि त्रय ताप नसावनि।
    तरल तरंग तंग मन भावनि॥

    जो गणपति अति पूज्य प्रधाना।
    तिहूं ते प्रथम गंगा स्नाना॥

    ब्रह्म कमंडल वासिनी देवी।
    श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवि॥

    साठि सहस्त्र सागर सुत तारयो।
    गंगा सागर तीरथ धरयो॥

    अगम तरंग उठ्यो मन भावन।
    लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन॥

    तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट।
    धरयौ मातु पुनि काशी करवट॥

    धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढी।
    तारणि अमित पितु पद पिढी॥

    भागीरथ तप कियो अपारा।
    दियो ब्रह्म तव सुरसरि धारा॥

    जब जग जननी चल्यो हहराई।
    शम्भु जाटा महं रह्यो समाई॥

    वर्ष पर्यंत गंग महारानी।
    रहीं शम्भू के जटा भुलानी॥


    पुनि भागीरथी शंभुहिं ध्यायो।
    तब इक बूंद जटा से पायो॥

    ताते मातु भइ त्रय धारा।
    मृत्यु लोक, नाभ, अरु पातारा॥

    गईं पाताल प्रभावति नामा।
    मन्दाकिनी गई गगन ललामा॥

    मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि।
    कलिमल हरणि अगम जग पावनि॥

    धनि मइया तब महिमा भारी।
    धर्मं धुरी कलि कलुष कुठारी॥

    मातु प्रभवति धनि मंदाकिनी।
    धनि सुरसरित सकल भयनासिनी॥

    पान करत निर्मल गंगा जल।
    पावत मन इच्छित अनंत फल॥

    पूर्व जन्म पुण्य जब जागत।
    तबहीं ध्यान गंगा महं लागत॥

    जई पगु सुरसरी हेतु उठावही।
    तई जगि अश्वमेघ फल पावहि॥

    महा पतित जिन काहू न तारे।
    तिन तारे इक नाम तिहारे॥

    शत योजनहू से जो ध्यावहिं।
    निशचाई विष्णु लोक पद पावहिं॥

    नाम भजत अगणित अघ नाशै।
    विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै॥

    जिमी धन मूल धर्मं अरु दाना।
    धर्मं मूल गंगाजल पाना॥

    तब गुण गुणन करत दुख भाजत।
    गृह गृह सम्पति सुमति विराजत॥

    गंगाहि नेम सहित नित ध्यावत।
    दुर्जनहुँ सज्जन पद पावत॥

    बुद्दिहिन विद्या बल पावै।
    रोगी रोग मुक्त ह्वै जावै॥

    गंगा गंगा जो नर कहहीं।
    भूखे नंगे कबहु न रहहि॥

    निकसत ही मुख गंगा माई।
    श्रवण दाबी यम चलहिं पराई॥

    महाँ अधिन अधमन कहँ तारें।
    भए नर्क के बंद किवारें॥

    जो नर जपै गंग शत नामा।
    सकल सिद्धि पूरण ह्वै कामा॥

    सब सुख भोग परम पद पावहिं।
    आवागमन रहित ह्वै जावहीं॥

    धनि मइया सुरसरि सुख दैनी।
    धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी॥

    कंकरा ग्राम ऋषि दुर्वासा।
    सुन्दरदास गंगा कर दासा॥

    जो यह पढ़े गंगा चालीसा।
    मिली भक्ति अविरल वागीसा॥

    ॥ दोहा ॥

    नित नव सुख सम्पति लहैं। धरें गंगा का ध्यान।
    अंत समय सुरपुर बसै। सादर बैठी विमान॥

    संवत भुज नभ दिशि । राम जन्म दिन चैत्र।
    पूरण चालीसा कियो। हरी भक्तन हित नैत्र॥

    यह भी पढ़ें- Margashirsha Amavasya 2025 Daan: पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए करें इन चीजों का दान, जीवन होगा खुशहाल

    यह भी पढ़ें- Margashirsha Amavasya 2025 Date: पितरों का तर्पण करते समय करें इन मंत्रों का जप, पितृ दोष से मिलेगी राहत

    अस्वीकरण: ''इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है''।