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    Shri Navgrah Chalisa: रविवार को पूजा के समय करें इस मंगलकारी चालीसा का पाठ, अशुभ ग्रहों का प्रभाव होगा समाप्त

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Sun, 26 May 2024 07:00 AM (IST)

    सूर्य देव की पूजा करने से साधक को आरोग्यता का वरदान प्राप्त होता है। साथ ही कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होता है। कुंडली में सूर्य मजबूत होने से जातकों की पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती रहती है। अतः ज्योतिष रविवार के दिन सूर्य उपासना करने की सलाह देते हैं। धार्मिक मत है कि सूर्य देव की पूजा-अर्चना करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

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    Shri Navgrah Chalisa: रविवार को पूजा के समय करें इस मंगलकारी चालीसा का पाठ

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shri Navgrah Chalisa: रविवार का दिन आत्मा के कारक सूर्य देव को समर्पित होता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा-उपासना की जाती है। सूर्य देव की पूजा करने से साधक को आरोग्यता का वरदान प्राप्त होता है। साथ ही कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होता है। कुंडली में सूर्य मजबूत होने से जातकों की पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती रहती है। अतः ज्योतिष रविवार के दिन सूर्य उपासना करने की सलाह देते हैं। धार्मिक मत है कि सूर्य देव की पूजा-अर्चना करने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही मनचाहा वर मिलता है। अतः साधक रविवार के दिन सूर्य उपासना करते हैं। अगर आप भी सूर्य देव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो रविवार के दिन विधि-विधान से सूर्य देव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इस चालीसा का पाठ करें।

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    नवग्रह चालीसा

    ॥ दोहा ॥

    श्री गणपति गुरुपद कमल,प्रेम सहित सिरनाय।

    नवग्रह चालीसा कहत,शारद होत सहाय॥

    जय जय रवि शशि सोम बुध,जय गुरु भृगु शनि राज।

    जयति राहु अरु केतु ग्रह,करहु अनुग्रह आज॥

    ॥ चौपाई ॥

    श्री सूर्य स्तुति

    प्रथमहि रवि कहँ नावौं माथा।

    करहुं कृपा जनि जानि अनाथा॥

    हे आदित्य दिवाकर भानू।

    मैं मति मन्द महा अज्ञानू॥

    अब निज जन कहँ हरहु कलेषा।

    दिनकर द्वादश रूप दिनेशा॥

    नमो भास्कर सूर्य प्रभाकर।

    अर्क मित्र अघ मोघ क्षमाकर॥

    श्री चन्द्र स्तुति

    शशि मयंक रजनीपति स्वामी।

    चन्द्र कलानिधि नमो नमामि॥

    राकापति हिमांशु राकेशा।

    प्रणवत जन तन हरहुं कलेशा॥

    सोम इन्दु विधु शान्ति सुधाकर।

    शीत रश्मि औषधि निशाकर॥

    तुम्हीं शोभित सुन्दर भाल महेशा।

    शरण शरण जन हरहुं कलेशा॥

    श्री मङ्गल स्तुति

    जय जय जय मंगल सुखदाता।

    लोहित भौमादिक विख्याता॥

    अंगारक कुज रुज ऋणहारी।

    करहु दया यही विनय हमारी॥

    हे महिसुत छितिसुत सुखराशी।

    लोहितांग जय जन अघनाशी॥

    अगम अमंगल अब हर लीजै।

    सकल मनोरथ पूरण कीजै॥

    श्री बुध स्तुति

    जय शशि नन्दन बुध महाराजा।

    करहु सकल जन कहँ शुभ काजा॥

    दीजैबुद्धि बल सुमति सुजाना।

    कठिन कष्ट हरि करि कल्याणा॥

    हे तारासुत रोहिणी नन्दन।

    चन्द्रसुवन दुख द्वन्द्व निकन्दन॥

    पूजहु आस दास कहु स्वामी।

    प्रणत पाल प्रभु नमो नमामी॥

    श्री बृहस्पति स्तुति

    जयति जयति जय श्री गुरुदेवा।

    करों सदा तुम्हरी प्रभु सेवा॥

    देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी।

    इन्द्र पुरोहित विद्यादानी॥

    वाचस्पति बागीश उदारा।

    जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा॥

    विद्या सिन्धु अंगिरा नामा।

    करहु सकल विधि पूरण कामा॥

    श्री शुक्र स्तुति

    शुक्र देव पद तल जल जाता।

    दास निरन्तन ध्यान लगाता॥

    हे उशना भार्गव भृगु नन्दन।

    दैत्य पुरोहित दुष्ट निकन्दन॥

    भृगुकुल भूषण दूषण हारी।

    हरहु नेष्ट ग्रह करहु सुखारी॥

    तुहि द्विजबर जोशी सिरताजा।

    नर शरीर के तुमहीं राजा॥

    श्री शनि स्तुति

    जय श्री शनिदेव रवि नन्दन।

    जय कृष्णो सौरी जगवन्दन॥

    पिंगल मन्द रौद्र यम नामा।

    वप्र आदि कोणस्थ ललामा॥

    वक्र दृष्टि पिप्पल तन साजा।

    क्षण महँ करत रंक क्षण राजा॥

    ललत स्वर्ण पद करत निहाला।

    हरहु विपत्ति छाया के लाला॥

    श्री राहु स्तुति

    जय जय राहु गगन प्रविसइया।

    तुमही चन्द्र आदित्य ग्रसइया॥

    रवि शशि अरि स्वर्भानु धारा।

    शिखी आदि बहु नाम तुम्हारा॥

    सैहिंकेय तुम निशाचर राजा।

    अर्धकाय जग राखहु लाजा॥

    यदि ग्रह समय पाय कहिं आवहु।

    सदा शान्ति और सुख उपजावहु॥

    श्री केतु स्तुति

    जय श्री केतु कठिन दुखहारी।

    करहु सुजन हित मंगलकारी॥

    ध्वजयुत रुण्ड रूप विकराला।

    घोर रौद्रतन अघमन काला॥

    शिखी तारिका ग्रह बलवान।

    महा प्रताप न तेज ठिकाना॥

    वाहन मीन महा शुभकारी।

    दीजै शान्ति दया उर धारी॥

    नवग्रह शान्ति फल

    तीरथराज प्रयाग सुपासा।

    बसै राम के सुन्दर दासा॥

    ककरा ग्रामहिं पुरे-तिवारी।

    दुर्वासाश्रम जन दुख हारी॥

    नव-ग्रह शान्ति लिख्यो सुख हेतु।

    जन तन कष्ट उतारण सेतू॥

    जो नित पाठ करै चित लावै।

    सब सुख भोगि परम पद पावै॥

    ॥ दोहा ॥

    धन्य नवग्रह देव प्रभु,महिमा अगम अपार।

    चित नव मंगल मोद गृह,जगत जनन सुखद्वार॥

    यह चालीसा नवोग्रह,विरचित सुन्दरदास।

    पढ़त प्रेम सुत बढ़त सुख,सर्वानन्द हुलास॥

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