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    Shiva Aarti: भगवान शिव की पूजा करते समय करें ये आरती, सभी संकटों से मिलेगी मुक्ति

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 03 Jun 2024 08:00 AM (IST)

    धार्मिक मान्यता है कि देवों के देव महादेव की उपासना करने वाले साधकों को सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। अतः शिव भक्त श्रद्धा भाव से भगवान शिव की पूजा करते हैं। पूजा के अंत में ये आरती कर सुख-समृद्धि की कामना करें।

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    Shiva Aarti: भगवान शिव की पूजा करते समय करें ये आरती

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shiva Aarti: देवों के देव महादेव की महिमा अपरंपार है। अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। वहीं, दुष्टों का सर्वनाश करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि काल की गति से कोई दुष्ट नहीं बचता है। जबकि, भगवान शिव के शरणागत रहने वाले भक्तों को मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः शिव भक्त श्रद्धा भाव से प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करते हैं। साथ ही सोमवार के दिन भगवान शिव की विशेष उपासना की जाती है। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट से निजात पाना चाहते हैं, तो सोमवार के दिन विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय में शिव चालीसा का पाठ करें। पूजा के अंत में ये आरती कर सुख-समृद्धि की कामना करें।

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    शिवजी की आरती

    ॐ जय शिव ओंकारा,स्वामी जय शिव ओंकारा।

    ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव,अर्द्धांगी धारा॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    एकानन चतुराननपञ्चानन राजे।

    हंसासन गरूड़ासनवृषवाहन साजे॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    दो भुज चार चतुर्भुजदसभुज अति सोहे।

    त्रिगुण रूप निरखतेत्रिभुवन जन मोहे॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    अक्षमाला वनमालामुण्डमाला धारी।

    त्रिपुरारी कंसारीकर माला धारी॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    श्वेताम्बर पीताम्बरबाघम्बर अंगे।

    सनकादिक गरुणादिकभूतादिक संगे॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    कर के मध्य कमण्डलुचक्र त्रिशूलधारी।

    सुखकारी दुखहारीजगपालन कारी॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    ब्रह्मा विष्णु सदाशिवजानत अविवेका।

    प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    लक्ष्मी व सावित्रीपार्वती संगा।

    पार्वती अर्द्धांगी,शिवलहरी गंगा॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    पर्वत सोहैं पार्वती,शंकर कैलासा।

    भांग धतूर का भोजन,भस्मी में वासा॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    जटा में गंगा बहत है,गल मुण्डन माला।

    शेष नाग लिपटावत,ओढ़त मृगछाला॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    काशी में विराजे विश्वनाथ,नन्दी ब्रह्मचारी।

    नित उठ दर्शन पावत,महिमा अति भारी॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

    त्रिगुणस्वामी जी की आरतीजो कोइ नर गावे।

    कहत शिवानन्द स्वामी,मनवान्छित फल पावे॥

    ॐ जय शिव ओंकारा...

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।