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    Pradosh Vrat 2025: प्रदोष व्रत की पूजा में करें इस स्तोत्र का पाठ, जल्द मिलेगा लाभ

    इस बार वैशाख माह का दूसरा प्रदोष व्रत शुक्रवार 9 मई को किया जा रहा है। शुक्रवार के दिन पड़ने के कारण इसे शुक्र प्रदोष व्रत (shukra Pradosh Vrat 2025) भी कहा जाएगा। इस दिन पर पूजा का मुहूर्त शाम 7 बजकर 1 मिनट से रात 9 बजकर 8 मिनट तक रहने वाला है।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Thu, 01 May 2025 11:00 PM (IST)
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    प्रदोष व्रत पर भगवान शिव शंकर की होती है पूजा। (Picture Credit: Freepik)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर महीने में दो बार प्रदोष व्रत किया जाता है, एक बार कृष्ण की त्रयोदशी तिथि पर और दूसरी बार शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर। इस दिन पर खासतौर से भगवान शिव जी की पूजा-अर्चना प्रदोष काल में की जाती है। 

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    प्रदोष व्रत के दिन विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करने से साधक के सभी दुख-दर्द दूर हो सकते हैं। इस दिन के पूजन के दौरान आप भगवान शिव को समर्पित श्री शिव रूद्राष्टकम का पाठ कर सकते हैं। ऐसा करने से आपको भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

    श्री शिव रूद्राष्टकम

    नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।

    निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥

    निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।

    करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥

    तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।

    स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

    चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।

    मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

    प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में करना शुभ माना गया है। माना जाता है कि यदि आप इस दिन पर पूजा के दौरान श्री शिव रूद्राष्टकम का पाठ करते हैं, तो इससे आपको त्वरित लाभ मिल सकते हैं।

    प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।

    त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥

    कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।

    चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

    (Picture Credit: Freepik)

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    न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

    न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

    न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।

    जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

    रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये

    ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

    ॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।