Pradosh Vrat 2025: भौम प्रदोष व्रत पर श्री लिङ्गाष्टकम् स्तोत्र के पाठ से पाएं शिव जी की कृपा
हर माह में दो बार किया जाने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए उत्तम माना गया है। इस दिन शुभ मुहूर्त (प्रदोष काल) में महादेव की पूजा-अर्चना करना बहुत ही फलदायी माना गया है। ऐसे में यदि आप भी शिव जी के कृपा पात्र बनना चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान शिव जी को समर्पित ये पाठ कर सकते हैं।
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Bhaum Pradosh Vrat 2025 (AI Generated Image)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। दिसंबर का पहला प्रदोष व्रत मंगलवार, 2 दिसंबर को मनाया जाएगा। इसे भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat 2025) भी कहा जाएगा। इस दिन पर पूजा का मुहूर्त शाम 5 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 7 मिनट तक रहने वाला है। आप इस दिन पर भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए श्री लिङ्गाष्टकम् और भगवान शिव अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् का पाठ कर सकते हैं।
श्री लिङ्गाष्टकम्
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गंनिर्मलभासितशोभितलिङ्गम्।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गंतत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहम्करुणाकर लिङ्गम्।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गंतत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गंबुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम्।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गंतत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गंफणिपतिवेष्टित शोभित लिङ्गम्।
दक्षसुयज्ञविनाशन लिङ्गंतत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥

(AI Generated Image)
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गंपङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गंतत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥
देवगणार्चित सेवितलिङ्गंभावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गंतत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गंसर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम्।
अष्टदरिद्रविनाशनलिङ्गंतत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥
सुरगुरुसुरवरपूजित लिङ्गंसुरवनपुष्प सदार्चित लिङ्गम्।
परात्परं परमात्मक लिङ्गंतत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यःपठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोतिशिवेन सह मोदते॥
जब त्रयोदशी तिथि मंगलवार के दिन पड़ती है, तो इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस व्रत को मंगल ग्रह से जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में अगर आप इस दिन पर विधि-विधान से यह भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करते हैं, तो इससे आपको विशेष फलों की प्राप्ति हो सकती है।
भगवान शिव अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
शिवो महेश्वरः शम्भुःपिनाकी शशिशेखरः।
वामदेवो विरूपाक्षःकपर्दी नीललोहितः॥1॥
शङ्करः शूलपाणिश्चखट्वाङ्गी विष्णुवल्लभः।
शिपिविष्टोऽम्बिकानाथःश्रीकण्ठो भक्तवत्सलः॥2॥
भवः शर्वस्त्रिलोकेशःशितिकण्ठः शिवाप्रियः।
उग्रः कपालीकामारिरन्धकासुरसूदनः॥3॥
गङ्गाधरो ललाटाक्षःकालकालः कृपानिधिः।
भीमः परशुहस्तश्चमृगपाणिर्जटाधरः॥4॥

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कैलासवासी कवचीकठोरस्त्रिपुरान्तकः।
वृषाङ्को वृषभारूढोभस्मोद्धूलितविग्रहः॥5॥
सामप्रियः स्वरमयस्त्रयीमूर्तिरनीश्वरः।
सर्वज्ञः परमात्मा चसोमसूर्याग्निलोचनः॥6॥
हविर्यज्ञमयः सोमःपञ्चवक्त्रः सदाशिवः।
विश्वेश्वरो वीरभद्रोगणनाथः प्रजापतिः॥7॥
हिरण्यरेता दुर्धर्षोगिरीशो गिरिशोऽनघः।
भुजङ्गभूषणो भर्गोगिरिधन्वा गिरिप्रियः॥8॥
कृत्तिवासाः पुरारातिर्-भगवान् प्रमथाधिपः।
मृत्युञ्जयः सूक्ष्म-तनुर्जगद्व्यापी जगद्गुरुः॥9॥
व्योमकेशो महासेनजनकश्चारु विक्रमः।
रुद्रो भूतपतिःस्थाणुरहिर्बुध्न्यो दिगम्बरः॥10॥
अष्टमूर्तिरनेकात्मासात्त्विकः शुद्धविग्रहः।
शाश्वतः खण्डपरशुरजःपाशविमोचकः॥11॥
मृडः पशुपतिर्देवोमहादेवोऽव्ययो हरिः।
पूषदन्तभिदव्यग्रोदक्षाध्वरहरो हरः॥12॥
भगनेत्रभिदव्यक्तःसहस्राक्षः सहस्रपात्।
अपवर्गप्रदोऽनन्तस्तारकःपरमेश्वरः॥13॥
॥ इति श्रीशिवाष्टोत्तरशतदिव्यनामामृतस्त्रोत्रं सम्पूर्णम् ॥
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो साधक प्रदोष व्रत करता है, उसपर सदा भगवान शिव की कृपा बनी रहती है। साथ ही उसके सभी कष्ट भी दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
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