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Mahashivratri Katha: महाशिवरात्रि पर जरूर पढ़ें चित्रभानु की कथा, भगवान शिव की पूजा का जानेंगे महत्व

Mahashivratri Katha महाशिवरात्रि का पावन पर्व इस वर्ष 21 फरवरी दिन शुक्रवार को है। इस दिन भगवान शिव की पूजा के साथ महाशिवरात्रि व्रत की कथा भी पढ़नी चाहिए।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Thu, 20 Feb 2020 04:00 PM (IST)Updated: Thu, 20 Feb 2020 04:38 PM (IST)
Mahashivratri Katha: महाशिवरात्रि पर जरूर पढ़ें चित्रभानु की कथा, भगवान शिव की पूजा का जानेंगे महत्व
Mahashivratri Katha: महाशिवरात्रि पर जरूर पढ़ें चित्रभानु की कथा, भगवान शिव की पूजा का जानेंगे महत्व

Mahashivratri Katha: महाशिवरात्रि का पावन पर्व इस वर्ष 21 फरवरी दिन शुक्रवार को है। इस दिन भगवान शिव की पूजा के साथ महाशिवरात्रि व्रत की कथा भी पढ़नी चाहिए। चित्रभानु की कथा पढ़ने से आप भगवान शिव की महिमा और उनकी भक्ति के महत्व को समझ पाएंगे। भगवान शिव भोले हैं, वे आसानी से प्रसन्न होते हैं, वह सच्चे मन से जल अर्पित कर देने मात्र से ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों के दुख दूर कर देते हैं और उनको शिव लोक में स्थान प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि का दिन उनको प्रसन्न करने का सबसे बड़ा अवसर है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करें और महाशिवरात्रि व्रत की ​कथा पढ़ें।

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महाशिवरात्रि व्रत कथा

शिव पुराण के अनुसार, एक समय में चित्रभानु नामक शिकारी शिकार करके अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। उस पर साहूकार का कर्ज था, समय से कर्ज चुकता न करने के कारण साहुकार ने उसे बंदी बना लिया। उस दिन शिवरात्रि थी। दिनभर वह भूखे प्यासे रहते हुए भगवान शिव का स्मरण किया और दिन गुजर गया। शाम को साहूकार ने उसे कर्ज चुकाने के लिए अलगे ​एक दिन का समय दिया और चित्रभानु को छोड़ दिया।

तब चित्रभानु भूख-प्यास से व्याकुल होकर जंगल में शिकार खोजने लगा। देखते-देखते शाम और फिर रात हो गई। तब वब एक तालाब के पास बेल के पेड़ चढ़ गया और रात बीतने की प्रतीक्षा करने लगा। उस बेल के पेड़ के नीचे शिवलिंग था। चित्रभानु अनजाने में बेलपत्र तोड़कर नीचे गिरा रहा था, जो शिवलिंग पर गिर रहे थे। इस प्रकार संयोगवश वह दिनभर भूखा प्यासा रहा, जिससे उसका व्रत हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र गिरने से उसकी शिव आराधना भी हो गई।

रात बीतने पर एक एक गर्भिणी हिरणी तालाब किनारे पानी पीने आई। तब वह धनुष-बाण से उसका शिकार करने के लिए तैयार हो गया। उस हिरणी ने चित्रभानु देख लिया, उसने शिकारी से कहा कि वह गर्भवती है, जल्द ही प्रसव करेगी। उसने शिकारी से कहा कि तुम एक साथ दो जीव हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। हिरणी ने शिकारी को वचन दिया कि वह बच्चे को जन्म देकर आएगी, तब शिकार कर लेना। इस पर शिकारी ने उसे जाने दिया। इस दौरान प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करते समय कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिरे। इससे प्रथम प्रहर की शिव पूजा हो गई।

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कुछ समय बाद एक और हिरणी वहां से जा रहा थी, तब शिकारी खुश होकर उसके शिकार के लिए तैयार हो गया। तब हिरणी ने उससे निवेदन किया कि 'हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' तब शिकारी ने उसे जाने दिया। चित्रभानु शिकार न कर पाने से चिंतित था। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था, इस बार भी कुछ बेलपत्र टूटकर शिवलिंग पर गिरे, जिससे दूसरे प्रहर की भी पूजा हो गई।

तभी एक दूसरी हिरणी बच्चों के साथ वहां से जा रही थी। तब चित्रभानु ने उसका शिकार करने का​ निर्णय कर लिया। तब हिरणी ने उससे कहा, 'हे शिकारी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।' इस पर शिकारी ने कहा कि वह मूर्ख नहीं है, इससे पहले अपने दो शिकार छोड़ चुका है। उसका परिवार भूख प्यास से तड़प रहा होगा। तब हिरणी ने कहा, 'मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ। ऐसे करते हुए सुबह हो गई और अनजाने में ही शिकारी की शिवरात्रि की पूजा हो गई। उपवास और रात्रि-जागरण भी हो गया। इसी बीच एक हिरण वहां से जा रहा था, तब शिकारी ने इसका शिकार करने का निश्चय कर लिया।

चित्रभानु को प्रत्यंचा चढ़ाए देखकर उस हिरण ने निवदेन किया कि यदि तुमने मेरे से पहले तीन हिरणी और उनके बच्चों का शिकार कर लिया हो, तो उसे भी मार दो। ताकि उनके वियोग में दुखी न होना पड़े। अगर उनको जीवनदान दिया है तो कुछ समय के लिए उसे भी जीवनदान दे दो। उनसे मिलकर वह दोबारा यहां आ जाएगा।

हिरण की बातें सुनकर शिकारी के मन में रात का पूरा घटनाक्रम सामने आ गया। उसने सारा घटनाक्रम हिरण को बताया। तब हिरण ने कहा कि वे तीनों हिरणी उसकी पत्नियां हैं, जिस प्रकार वे तीनों प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, उसकी मृत्यु से वे अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। जिस प्रकार तुमने उन पर विश्वास करके उन्हें जाने दिया, वैसे ही उसे भी जाने दो। वह अपने परिवार के साथ जल्द ही यहां उपस्थित हो जाएगा।

चित्रभानु ने उसे भी जाने दिया। शिवरात्रि व्रत और पूजा होने से उसका मन निर्मल हो गया। उसके अंदर भक्ति की भावना जागृत हो गई। कुछ समय बाद वह हिरण अपने दिए वचन के कारण अपने परिवार के साथ शिकारी के सामने उपस्थित हो गया। उन जीवों की सत्यता, सात्विकता एवं प्रेम भावना को देखकर चित्रभानु को आत्मग्लानि हुई। उसने हिरण परिवार को जीवनदान दे दिया। अनजाने में ही सही, शिवरात्रि का व्रत करने से ​चित्रभानु को मोक्ष मिला। मृत्य के बाद शिवगण उस शिकारी को शिवलोक ले गए।


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