Guru Purnima 2025: गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई को है, जानिए किस समय करें पूजा और स्नान दान
गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2025 ) आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन माता-पिता बड़ों और गुरु का आशीर्वाद लेने का महत्व है क्योंकि गुरु ही अंधकार से उजाले की ओर ले जाते हैं। गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए यह दिन समर्पित है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन को व्यास पूर्णिमा और व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा के दिन अपने माता-पिता और बड़े बुजुर्गों के साथ ही गुरु का आशीर्वाद लेने का बड़ा महत्व है।
गुरु ही गोविंदा का ज्ञान करते हैं। गुरु ही अंधकार से उजाले की तरफ ले जाते हैं। गुरु सिर्फ शिक्षक नहीं होते, जीवन पद के मार्गदर्शक भी होते हैं। बिना गुरु के कुछ भी संभव नहीं है। यह दिन गुरु के प्रति कृतार्थ व्यक्त करने का है। इस दिन आप बृहस्पति बीज मंत्र 'ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः' का 108 बार जाप करें। साथ ही इस दिन आप अपने गुरु को यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।
इंद्र और वैधृति योग रहेगा
पंचांग के अनुसार, 10 जुलाई को भद्रा का समय सुबह 5:31 से लेकर दोपहर 1:55 तक रहेगा। इस इस दिन सुबह 5:31 से लेकर 7:15 तक चौघड़िया का शुभ मुहूर्त रहेगा। इस समय पर स्नान दान और पूजा करने के लिए अच्छा समय है। इसके अलावा इस दिन इंद्र योग और वैधृति योग का भी शुभ संयोग बन रहा है।
गुरु पूर्णिमा पर स्नान-दान का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:10 से सुबह 04:50 बजे तक रहेगा। सुबह 11:59 बजे से दोपहर 12:54 बजे अभिजित मुहूर्त इसके बाद दोपहर 02:45 बजे से दोपहर 03:40 बजे तक विजय मुहूर्त दान-पुण्य के लिए उत्तम समय है।
गुरु पूर्णिमा पर ऐसे करें पूजा
पवित्र नदी में स्नान करें। यदि ऐसा संभव नहीं तो बाल्टी में थोड़ा सा गंगाजल डालकर पानी भर लें। इससे स्नान करने से भी गंगा स्नान जैसा लाभ मिलता है। इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का पूजन और जलाभिषेक करें।
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भगवान विष्णु को पीले फूल, हल्दी चढ़ाएं। मां लक्ष्मी को लाल चंदन, लाल रंग के फूल और श्रृंगार का सामान अर्पित करें। इसके बाद मंदिर में घी का दीपक जलाकर गुरु पूर्णिमा की व्रत कथा पढ़ें। संभव हो तो व्रत लेने का संकल्प करें और शाम को सत्यनारायण की कथा करें।
शाम के समय लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें। इसके बाद लक्ष्मीनारायण की आरती करें। भगवान को भोग लगाकर उसका प्रसाद ग्रहण करें। रात में चंद्रोदय के समय अर्ध्य दें।
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