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    Maa Laxmi Mantra: मां लक्ष्मी की पूजा के समय करें इन मंगलकारी मंत्रों का जप, धन की परेशानी होगी दूर

    Updated: Thu, 13 Nov 2025 08:29 PM (IST)

    14 नवंबर को वैभव लक्ष्मी व्रत है। यह व्रत हर शुक्रवार को रखा जाता है, जिससे साधक के सुख, सौभाग्य और धन में वृद्धि होती है और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आर्थिक समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए, इस दिन भक्तिभाव से मां लक्ष्मी की पूजा करें, मंत्रों का जप करें, धनदा लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें और महालक्ष्मी आरती के साथ पूजा का समापन करें।  

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    Maa Laxmi Mantra: मां लक्ष्मी को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, शुक्रवार 14 नवंबर को वैभव लक्ष्मी व्रत है। यह पर्व हर शुक्रवार के दिन रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही साध पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है। मां लक्ष्मी की कृपा बरसने से साधक को जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है।

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    maa laxmi (1)

    अगर आप भी आर्थिक विषमता से निजात पाना चाहते हैं, तो शुक्रवार के दिन भक्ति भाव से मां लक्ष्मी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इन मंत्रों (Maa Laxmi Mantra) का जप और धनदा लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। वहीं ,पूजा का समापन महालक्ष्मी आरती से करें।

    मां लक्ष्मी के मंत्र

    1. ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा ।

    2. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्री ॐ।

    3. ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये

    धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥

    4. ऊँ हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम ।।

    5. मां लक्ष्मी ध्यान

    सिन्दूरारुणकान्तिमब्जवसतिं सौन्दर्यवारांनिधिं,

    कॊटीराङ्गदहारकुण्डलकटीसूत्रादिभिर्भूषिताम् ।

    हस्ताब्जैर्वसुपत्रमब्जयुगलादर्शंवहन्तीं परां,

    आवीतां परिवारिकाभिरनिशं ध्याये प्रियां शार्ङ्गिणः ॥

    भूयात् भूयो द्विपद्माभयवरदकरा तप्तकार्तस्वराभा,

    रत्नौघाबद्धमौलिर्विमलतरदुकूलार्तवालेपनाढ्या ।

    नाना कल्पाभिरामा स्मितमधुरमुखी सर्वगीर्वाणवनद्या,

    पद्माक्षी पद्मनाभोरसिकृतवसतिः पद्मगा श्री श्रिये वः ॥

    वन्दे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां,

    हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैर्नानाविधैर्भूषिताम् ।

    भक्ताभीष्टफलप्रदां हरिहरब्रह्मादिभिस्सेवितां,

    पार्श्वे पङ्कजशङ्खपद्मनिधिभिर्युक्तां सदा शक्तिभिः ॥

    धनदा लक्ष्मी स्तोत्र (Dhanadalakshmi Stotram)

    ॥ धनदा उवाच ॥

    देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।

    कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्॥1

    ॥ देव्युवाच ॥

    ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।

    दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्॥

    ॥ शिव उवाच ॥

    पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।

    उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया॥

    स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।

    प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम्॥

    धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।

    योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम॥

    पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।

    धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता॥

    भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।

    प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम

    धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।

    त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम्॥

    धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।

    सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम्॥

    रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।

    शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि॥

    आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके।

    दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते॥

    समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।

    शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने॥

    चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।

    मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते॥

    हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।

    रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने॥

    क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।

    रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये॥

    प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।

    मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके॥

    कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।

    वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते॥

    धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।

    ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे॥

    स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।

    श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे॥

    पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।

    श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः॥

    सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्

    धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।

    भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः॥

    मां लक्ष्मी की आरती

    ॐ जय लक्ष्मी माता,मैया जय लक्ष्मी माता।

    तुमको निशिदिन सेवत,हरि विष्णु विधाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    उमा, रमा, ब्रह्माणी,तुम ही जग-माता।

    सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत,नारद ऋषि गाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    दुर्गा रुप निरंजनी,सुख सम्पत्ति दाता।

    जो कोई तुमको ध्यावत,ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    तुम पाताल-निवासिनि,तुम ही शुभदाता।

    कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी,भवनिधि की त्राता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    जिस घर में तुम रहतीं,सब सद्गुण आता।

    सब सम्भव हो जाता,मन नहीं घबराता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    तुम बिन यज्ञ न होते,वस्त्र न कोई पाता।

    खान-पान का वैभव,सब तुमसे आता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर,क्षीरोदधि-जाता।

    रत्न चतुर्दश तुम बिन,कोई नहीं पाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

    महालक्ष्मीजी की आरती,जो कोई जन गाता।

    उर आनन्द समाता,पाप उतर जाता॥

    ॐ जय लक्ष्मी माता...

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