मां कामाख्या देवी में लगा है अंबुबाची मेला 2025, प्रसाद में मिलेगा रजस्वला वस्त्र
असम की राजधानी गुवाहाटी में मां कामाख्या देवी का भव्य मंदिर बना हुआ है। तंत्र साधना के इस सबसे बड़े केंद्र में 22 जून 2025 से एक खास मेला लगा है, जिसे अंबुबाची मेला कहा जाता है। मजेदार बात यह है कि जिस समय यह मेला लगता है, उस समय मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं।

कामाख्या मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। योनि के आकार की चट्टान की यहां होती है पूजा।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मां कामाख्या देवी के मंदिर में इस समय अंबुबाची मेला लगा हुआ है। गर्भ गृह के दरवाजे बंद हैं और माता के दर्शन नहीं होते हैं। इसके बावजूद यहां पर देश-दुनिया से लाखों भक्त, तांत्रिक उपासक पहुंचते हैं।
इस समय पर यहां पर विशेष पूजा और अनुष्ठान हो रहा है। मां कामाख्या देवी का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां कभी माता सती के अंग गिरे थे। माता के सती होने के बाद जब शिवजी उनके शरीर को लेकर तांडव कर रहे थे, तब इस जगह पर माता सती की योनि गिरी थी।
सृजन की शक्ति का संकेत
यहां पर योनि रूप में ही मां की आराधना होती है। जून में जब यहां पर अंबुबाची मेला लगता है, उस समय मां मासिक धर्म में होती हैं। अन्य मंदिरों के विपरीत कामाख्या मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। योनि के आकार की चट्टान की यहां पूजा होती है जो स्त्री प्रजनन शक्ति का प्रतीक है।
प्रतीक रूप में वह सृजन की शक्ति का संकेत देती हैं। इस दौरान मंदिर के गर्भ गृह के दरवाजे तीन दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं। मंदिर के अंदर कोई पूजा-पाठ या दर्शन नहीं होते हैं। इस समय पर पूर्वी भारत में कई जगहों पर कोई भी कृषि से संबंधित काम भी नहीं किए जाते हैं।
प्रसाद में मिलता है रजस्वला वस्त्र
यह उत्सव महिला शक्ति और सृजन की शक्ति को सम्मान देने के लिए किया जाता है। मां के गर्भ गृह के दरवाजे 25 जून 2025 को फिर से खोल दिए जाएंगे और इसके बाद भक्त मां के दर्शन कर सकेंगे।
इस मेले के दौरान जब यहां पर धार्मिक अनुष्ठान हो रहा होता है, तो मंदिर के गर्भ गृह में एक सफेद कपड़ा रखा जाता है। जब मंदिर के कपाट फिर से खोलते हैं, तो यह कपड़ा लाल हो चुका होता है। इसे राजस्वला वस्त्र कहा जाता है, जो प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है।
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ऐसे पहुंचे मां कामाख्या मंदिर
जिस समय यह आयोजन होता है, तब देशभर से बड़ी संख्या में तंत्र क्रिया करने वाले और गुप्त साधना में लीन रहने वाले साधक यहां पर पहुंचते हैं। मां की साधना करते हैं। इस समय यहां का माहौल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण होता है।
मां कामाख्या के मंदिर पहुंचने के लिए गुवाहाटी रेलवे स्टेशन या हवाई अड्डे तक पहुंचना होगा। रेलवे स्टेशन से मंदिर करीब 8 किलोमीटर दूर है। वहां पहुंचने के लिए स्टेशन के बाहर से ही ऑटो, बस और टैक्सी की सुविधा मिलती है।
देशभर से आने वाले भक्तों के रहने के लिए मंदिर के पास कई धर्मशालाएं बनी हैं, जहां कम किराये पर कमरा मिल जाता है। इसके अलावा गुवाहाटी शहर में होटल भी किराये पर लिया जा सकता है। इसके अलावा सरकार की तरफ से अस्थायी आश्रयों की व्यवस्था की गई है।
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