Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Ranganath Temple: वृन्दावन के इस मंदिर का बैकुंठ धाम से है कनेक्शन, जानिए क्यों है ये बेहद खास?

    Updated: Sat, 14 Jun 2025 03:00 PM (IST)

    वृंदावन के श्रीरंगनाथ (Ranganath Temple) मंदिर जिसे रंगजी मंदिर भी कहा जाता है। इसका सीधा संबंध बैकुंठ धाम से है। यहां हर साल बैकुंठ एकादशी पर बैकुंठ द्वार खुलता है जिससे गुजरने वाले भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह मंदिर दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली में बना है और यहां सभी पूजा दक्षिण भारतीय परंपराओं के अनुसार होती हैं।

    Hero Image
    Ranganath Temple : श्रीरंगनाथ मंदिर के रहस्य।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वृंदावन धाम में भगवान कृष्ण के कई प्राचीन और भव्य मंदिर हैं, जो विश्व प्रसिद्ध हैं। इन्हीं में से एक है श्रीरंगनाथ मंदिर (Ranganath Temple) जिसे 'रंगजी मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। यह धाम न केवल अपनी विशालता के लिए जाना जाता है, बल्कि इसका सीधा संबंध बैकुंठ धाम से भी है, जो भगवान विष्णु का निवास स्थान है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बैकुंठ द्वार

    इस मंदिर में हर साल बैकुंठ एकादशी के अवसर पर 'बैकुंठ द्वार' खोला जाता है। यह द्वार साल में केवल एक बार खुलता है। मान्यता है कि इस विशेष दिन पर जो भक्त इस द्वार से होकर भगवान रंगनाथ के दर्शन करते हैं, उन्हें सीधे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है और मोक्ष का आशीर्वाद मिलता है।

    भगवान विष्णु की कथा

    मंदिर का संबंध दक्षिण भारत की 8वीं शताब्दी की वैष्णव संत गोदा देवी से है। गोदा देवी भगवान रंगनाथ की बहुत बड़ी भक्त थीं और उन्होंने उन्हें अपने पति के रूप में पाने की इच्छा जाहिर की थी। उनकी अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान रंगनाथ ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया, जिस कारण इस मंदिर में भगवान कृष्ण को दूल्हे के रूप में पूजा जाता है।

    मंदिर की विशेषताएं

    • यह उत्तरी भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो पूरी तरह से दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली में बना है। इसका निर्माण 1845 से 1851 के बीच सेठ गोविंद दास और राधा कृष्ण ने करवाया था, जिन्होंने इस काम के लिए दक्षिण भारत से कुशल कारीगरों को बुलाया था।
    • यह वृंदावन के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है, जो लगभग 15 एकड़ भूमि में फैला हुआ है।
    • मंदिर में एक 50 फुट ऊंचा स्वर्ण-प्लेटेड 'ध्वज स्तंभ' भी है, जो इसकी भव्यता में चार चांद लगाता है।
    • इस मंदिर में सभी पूजा और अनुष्ठान दक्षिण भारतीय वैदिक परंपराओं के अनुसार किए जाते हैं, और यहां के मुख्य पुजारी भी दक्षिण भारतीय ब्राह्मण होते हैं।

    यह भी पढ़ें: Sankashti Chaturthi 2025: संकष्टी चतुर्थी पर इस विधि से करें भगवान गणेश की पूजा, जानें महत्व और मंत्र

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।