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    Mahakumbh 2025: महाकुंभ का मुख्य आकर्षण है यह अक्षय वट, जल प्रलय भी नहीं हिला सका इसकी जड़ें

    Updated: Wed, 08 Jan 2025 02:14 PM (IST)

    सोमवार 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ की शुरुआत हो रही है। महाकुंभ लोक आस्था का प्रमुख केंद्र है जिसमें स्नान करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। महाकुंभ न केवल भारत में प्रसिद्ध है बल्कि विदेशों में भी इसका आकर्षण देखने को मिलता है। 144 वर्षों बाद आयोजित होने के कारण महाकुंभ का महत्व और भी बढ़ जाता है।

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    Mahakumbh 2025 प्रयागराज में संगम के किनारे स्थित अक्षय वट है बहुत ही खास।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। इस बार महाकुंभ (Maha kumbh 2025) का आयोजन प्रयागराज में हो रहा है। महाकुंभ के साथ-साथ प्रयागराज में संगम के किनारे स्थित अक्षय वट भी चर्चा का विषय है। क्योंकि इस वृक्ष से जुड़े कई प्रसंग मिलते हैं, जिन्हें पौराणिक काल से जोड़कर देखा जाता है। चलिए जानते हैं इस विषय में।

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    इसलिए खास है अक्षयवट

    त्रिवेणी संगम के पास स्थित होने के कारण यह वृक्ष तीर्थयात्रियों और श्रद्धालुओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान अक्षयवट के दर्शन मात्र से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और जीवन-मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। इस वक्ष को काफी पवित्र माना जाता है और इसकी परिक्रमा भी की जाती है। महाभारत और अन्य पुराणों में इस वृक्ष को ब्रह्मा, विष्णु और महेश द्वारा संरक्षित बताया गया है, जिस कारण इसे त्रिदेवों की कृपा का स्थान भी माना जाता है। साथ ही यह भी माना गया है कि इस अक्षय वट की पूजा-अर्चना से साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति हो सकती है।  

    मिलती हैं ये कथाएं

    अक्षय वट वृक्ष को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार, जब अपने वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ प्रयागराज आए, तो उन्होंने इसी वट वृक्ष के नीचे विश्राम किया था। इसी के साथ यह स्थान कई ऋषि-मुनियों का तपस्थल भी रहा है। पौराणिक मान्यता है कि ऋषि मार्कंडेय ने इसी वृक्ष के नीचे तपस्या की थी। इसी के साथ जैन धर्म के अनुयायियों का मानना है कि उनके तीर्थंकर ऋषभदेव ने भी इसी अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी, इसलिए इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली या तपोवन के नाम से भी जाना जाता है।

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    लोक आस्था का केंद्र

    प्रयागराज में संगम के किनारे स्थित अक्षय वट को लेकर एक पौराणिक मान्यता और भी है, जिसके अनुसार जब सृष्टि के आरंभ में जल प्रलय हुआ, तो समूची पृथ्वी डूब गई थी, लेकिन तब केवल यह वट वृक्ष ही बचा था। तब इसके एक पत्ते पर ईश्वर बाल रूप में रहकर सृष्टि को देखते हैं। इसलिए यह वृक्ष, महाकुंभ के मुख्य आकर्षणों में से एक है, जो लोक आस्था का केंद्र भी बना हुआ है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।