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    Kanwar Yatra 2025: परशुराम जी से जुड़ी है कांवड़ यात्रा की परंपरा, इस मंदिर में चढ़ाया था जल

    Updated: Wed, 09 Jul 2025 02:25 PM (IST)

    हिंदू कैलेंडर के अनुसार सावन पांचवा महीना है। शिव भक्तों को सावन के महीने का बेसब्री से इंतजार रहता है। इसी माह में कांवड़ यात्रा की भी शुरुआत होती है। क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले कांवड़ लाने वाले परशुराम जी ने किस मंदिर में गंगाजल से अभिषेक किया था।

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    Kanwar Yatra 2025 story of Pura Mahadev Temple

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में कावड़ यात्रा को बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह यात्रा बहुत कठिन भी होती है। इस दौरान कांवड़िए हरिद्वार से गंगा जल लाकर पैदल यात्रा करते हैं और सावन शिवरात्रि पर अपने क्षेत्र के शिवालयों में शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी मान्यता सावन में और भी बढ़ जाती है। तो चलिए जानते हैं इस मंदिर के बारे में।

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    मंदिर का इतिहास

    आज हम बात कर रहे हैं  उत्तर प्रदेश के बागपत में स्थित 'पुरा महादेव' मंदिर की, जिसका इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। धार्मिक शास्त्रों में ऐसा माना गया है कि भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी (Parshuram legacy) ने ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। इसलिए वह पहले कांवड़िए भी कहलाते हैं। भगवान परशुराम ने ही हिंडन नदी के किनारे स्थित इस मंदिर की स्थापना की थी। उन्होंने कांवड़ द्वारा लाए गए गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक किया था और पहली कांवड़ चढ़ाई थी।

    तभी से कांवड़ यात्रा चली आ रही है। इस मंदिर में हर साल कांवड़ यात्रा के दौरान शिवलिंग का अभिषेक करने के लिए लाखों कांवड़िए पहुंचते हैं। माना जाता है कि जो भी भक्त सावन में इस मंदिर में शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करता है, उसे महादेव की असीम कृपा की प्राप्ति होती है। साथ ही उस भक्त की सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। सावन में कावड़ लाने भक्तों की भारी भीड़ यहां उमड़ती है।

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    मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

    जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका सहित अपने आश्रम में रहते थे। एक बार राजा सहस्त्रबाहु शिकार करते हुए ऋषि जमदग्नि के आश्रम पहुंचे। रेणुका ने राजा का बहुत आदर सत्कार किया। राजा उनकी कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाना चाहता था,  लेकिन रेणुका इसके लिए नहीं मानी। तब राजा रेणुका को ही बलपूर्वक अपने साथ हस्तिनापुर महल में ले गया। तब राजा की पत्नी ने उन्हें वहां से मुक्त कर दिया। रेणुका ने आश्रम पहुंचकर सारी बार जमदग्नि ऋषि को बदताई।

    लेकिन ऋषि ने अन्य पुरुष के महल में रहने के कारण अपने पुत्र परशुराम जी को यह आदेश दिया कि वह रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दें। पिता की आज्ञा मानते हुए परशुराम जी ने ऐसा ही किया। बाद में उन्हें पश्चाताप हुआ और उन्होंने एक शिवलिंग की स्थापना कर उसकी पूजा की। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी माता को पुनः जीवित कर दिया। इसके बाद परशुराम जी ने शिवलिंग की स्थापना करके वहां मंदिर बनवाया था।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है