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    Guruvayur Temple: ये मंदिर कहलाता है दक्षिण का द्वारका, द्वापर युग से जुड़े हैं इसके तार

    Updated: Tue, 17 Dec 2024 02:50 PM (IST)

    न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी भगवान श्रीकृष्ण के कई अद्भुत मंदिर स्थापित हैं जिन्हें लेकर कई मान्यताएं भी प्रचलित हैं। आज हम आपको दक्षिण भारत में स्थित भगवान श्रीकृष्ण के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो दक्षिण भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध और पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है और इसकी मान्यता दूर-दूर तक फैली हुई है।

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    Guruvayur Temple ये मंदिर कहलाता है दक्षिण की द्वारका।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आज हम आपको केरल के गुरुवयूर शहर के प्रसिद्ध गुरुवयूर मंदिर (Guruvayur Temple History) के बारे में बताने जा रहे हैं। इस मंदिर के प्रति भक्तों की अटूट श्रद्धा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस मंदिर को दक्षिण की द्वारका के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति का इतिहास भगवान श्रीकृष्ण के युग यानी द्वापर युग से भी जुड़ा हुआ माना जाता है। तो चलिए जानते हैं इससे संबंधित कहानी और अन्य जरूरी जानकारी।

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    मिलती है यह कथा (Guruvayur Temple history)

    इस मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है, जिसके अनुसार यह माना जाता है कि कलयुग की शुरुआत में देवगुरु बृहस्पति और वायु देव को भगवान कृष्ण की एक मूर्ति मिली थी। जिसे लेकर यह माना जाता है कि यह मूर्ति द्वारिका की भयंकर बाढ़ में बहकर यहां आई थी। ऐसे में गुरु बृहस्पति और वायु देव ने एक मंदिर में इसकी स्थापना की और इन दोनों के नाम को मिलाकर ही पर ही मंदिर का नाम गुरुवयूर पड़ा।

    (Picture Credit: Instagram)

    किसने किया निर्माण (Guruvayur Temple Significance)

    गुरुवयूर मंदिर लगभग 5000 साल पुराना बताया जाता है। इस मंदिर को लेकर यह मान्यता चली आ रही है कि इस मंदिर का निर्माण स्वंय भगवान विश्वकर्मा ने किया गया था। वहीं कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण देवगुरु बृहस्पति द्वारा किया गया था। इस मंदिर का निर्माण कुछ इस प्रकार हुआ कि सूर्य की किरणें सबसे पहले भगवान गुरुवयूर के चरणों पर गिरे।

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    कैसा है मूर्ति का स्वरूप

    गुरुवयूर मंदिर (Guruvayur Temple Facts) में विराजमान भगवान कृष्ण की उनके बाल स्वरूप की मानी जाती है, जो उन्नीकृष्णन नाम से भी प्रसिद्ध है। मूर्ति में भगवान कृष्ण के चार हाथ हैं, जिसमें से एक हाथ में श्रीकृष्ण ने शंख, दूसरे में सुदर्शन चक्र, तीसरे में कमल और चौथे हाथ में गदा धारण किया हुआ है। ये मूर्ति की पूजा भगवान कृष्ण के बाल रुप यानी बचपन के रुप में की जाती है। जन्माष्टमी के अवसर पर यहां भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।