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    Chaitra Navratri 2025: गया के भस्मकूट पर्वत पर सजा है मंगला गौरी का दरबार, दर्शन करने से होगा कल्याण

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Wed, 02 Apr 2025 02:58 PM (IST)

    बिहार के गया स्थित मां मंगला गौरी मंदिर (Mangal Gauri temple) दुनियाभर में प्रसिद्ध है। बड़ी संख्या में भक्जतन रोजाना मां के दर्शन और आशीर्वाद के लिए मैया के दरबार आते हैं। मां मंगला गौरी के दर्शन मात्र से सभी दुख एवं कष्ट दूर हो जाते हैं। विवाहित स्त्रियां सुख और सौभाग्य में वृद्धि के लिए हर मंगलवार के दिन मंगला गौरी व्रत रखती हैं।

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    Mangal Gauri temple: मंगला गौरी मंदिर का इतिहास

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर साल चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक नवरात्र मनाया जाता है। इस दौरान जगत की देवी मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही नवरात्र के दौरान व्रत रखा जाता है। देवी पुराण, मार्कण्डेय पुराण में और दुर्गा सप्तशती में देवी मां दुर्गा और उनके रूपों की महिमा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

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    धार्मिक मत है कि देवी मां दुर्गा की पूजा (Chaitra Navratri 2025) करने एवं उपासना करने से साधक की हर एक मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी दुख एवं संकट दूर हो जाते हैं। मां दुर्गा अपने भक्तों के सभी दुख हर लेती हैं। मां के उपासकों को जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। इसके लिए नवरात्र के दौरान देवी मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की पूजा भक्ति भाव और उत्साह से की जाती है।

    देशभर में माता के कई प्रमुख दरबार हैं। इनमें 51 शक्तिपीठ हैं, जहां माता रानी के दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी हो जाती है। साथ ही सभी प्रकार के मानसिक एवं शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। बड़ी संख्या में भक्तजन देवी मां दुर्गा के दर्शन हेतु मंदिर आते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान बुद्ध की नगरी गया में भी माता रानी का भव्य दरबार है? आइए, बिहार के गया स्थित मंगला गौरी शक्तिपीठ के बारे में सब कुछ जानते हैं-

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    मंगला गौरी मंदिर कहां है? (Mangal Gauri temple)

    मंगला गौरी मंदिर बिहार के गया जिले में स्थित है। गया धार्मिक विरासत के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। गया में कई प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। इनमें विष्णुपद मंदिर और महाबोधि मंदिर और मंगला गौरी मंदिर प्रसिद्ध हैं। भगवान बुद्ध को गया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान बुद्ध ने कठिन तपस्या की थी। उस समय उन्होंने ज्ञान की शिक्षा और दीक्षा उपस्थित जनों को दी थी।

    विष्णु पुराण में वर्णित है कि असुर गयासुर के नाम पर बुद्ध की नगरी को गया कहा जाता है। गयासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने यह वरदान दिया कि भगवान विष्णु अनंतकाल तक गयासुर में रहेंगे। साथ ही यह वरदान दिया कि जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से गया में अपने पूर्वजों का तर्पण एवं पिंडदान करेगा। उनके मृत पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। इस पावन नगरी में ही मंगला गौरी मंदिर है। यह मंदिर भस्मकूट पर्वत पर स्थित है।

    मंगला गौरी मंदिर शक्तिपीठ की कथा

    सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि चिरकाल में देवों के देव महादेव का विवाह माता सती से हुआ था। इस विवाह से राजा दक्ष प्रसन्न नहीं थे। इस वजह से भगवान शिव का ससुराल वालों के साथ रिश्ता बेहद कटु था। एक बार की बात है, जब राजा दक्ष ने अपने निवास स्थान पर यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा गया। माता सती को यज्ञ की जानकारी हुई, तो उन्होंने भगवान शिव से जाने की इच्छा जताई। भगवान शिव ने न जाने की सलाह दी। विनम्र विनती से मां सती को जाने की अनुमति दी, लेकिन स्वयं न जाने की बात कही।

    उस समय मां सती बिना निमंत्रण के अपने पिता के घर पहुंची। हालांकि, यज्ञ के दौरान पिता समेत अन्य लोगों ने भगवान शिव की कड़ी आलोचना एवं बुराई की। इससे अप्रसन्न होकर मां सती ने यज्ञ वेदी में अपनी आहुति दे दी। मां सती की आहुति से भगवान शिव बेदह क्रोधित हो उठे। उन्होंने भद्रकाली और प्रथम गण वीरभद्र को राजा दक्ष को सबक सिखाने के लिए भेजा।

    वहीं, मां सती के शव को लेकर क्रोधित भगवान शिव इधर-उधर भ्रमण करने लगे। उस समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मां सती के शव को कई खंडों में विभक्त (बांट) कर दिया। मां सती के शरीर का अंग 51 स्थानों पर गिरा था। यह स्थल शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। बिहार के गया स्थित भस्मकूट पर्वत (Bhasmakoot Mountain in Gaya) पर मां सती का पालन अंग (स्तन) गिरा था। इस पावन स्थल पर मंगला गौरी मंदिर है।

    काल

    मंगला गौरी मंदिर सदियों पुराना है। सतयुग काल से गयाजी स्थित भस्मकूट पर्वत पर शक्तिपीठ है। तत्कालीन समय में लोग भस्मकूट पर्वत पर जाने से डरते थे। उस समय समुचित व्यवस्था का न होना भी एक कारण था। हालांकि, मंदिर के प्रति पूर्व से ही अगाध श्रद्धा थी। आधुनिक भारत के संदर्भ में देखा जाए, तो 15वीं सदी में यह  मंदिर बना है। तत्कालीन समय से मां मंगला गौरी की पूजा की जाती है। मंगलवार के दिन मां मंगला की विशेष पूजा की जाती है। वहीं, नवरात्र के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन हेतु आते हैं। इस शुभ अवसर पर साधक मंदिर प्रांगण में बैठकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं।

    मंगला गौरी मंदिर की विशेषता

    मंगला गौरी मंदिर के गर्भगृह में देवी मां के दर्शन होते हैं। इसके साथ ही प्रांगण में भगवान शिव, मां दुर्गा, देवी दक्षिण-काली, महिषासुर मर्दिनी और देवी सती की प्रतिमा मंदिर में स्थापित हैं। इसके साथ ही भगवान गणेश और हनुमान जी का मंदिर भी है। इन देवी-देवताओं के स्वरूपों के दर्शन किए जा सकते हैं। देवी मां गौरी की महिमा का वर्णन श्री देवी भागवत पुराण, मार्कंडेय पुराण, पद्म पुराण, वायु पुराण में है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन हेतु मंदिर आते हैं। गर्भगृह में घृतदीप निरंतर जलता रहता है। मां का पालनपीठ लाल चुनरी और उड़हुल के फूलों से हमेशा आच्छादित रहता है। मां मंगला गौरी को उड़हुल का फूल और नारियल अति प्रिय है। इसके लिए पूजा के समय मां को श्रीफल और उड़हुल फूल अवश्य ही अर्पित किया जाता है।

    वास्तुकला

    चिरकाल से भस्मकूट पर्वत (Bhasm Kut Parvat) पर मंगला गौरी मंदिर है। भस्मकूट पर्वत गयाजी के पहाड़ी क्षेत्र में ब्रह्मयोनि की श्रृंखलाओं का हिस्सा है। शक्तिपीठ स्थल बनने से यह पर्वत दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण मोजाइक पत्थरों से हुआ है। वहीं, छत को सीमेंट से निर्मित किया गया है। वर्तमान समय में गर्भगृह का छत मैया की चुनरी से ढका है। मैया के दर्शन हेतु भक्तजन पंक्तिबद्ध होकर गुफा में प्रवेश कर आगे बढ़ते हैं। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कई गलियारे बनाये गए हैं। गलियारे में विहंगम चित्रकारी की गई है। प्रवेश मार्ग की पहली सीढ़ी पर "ॐ मंगलायै नमः। वरं देहि देवि। भष्मकूटनिवासिनि..." श्लोक संस्कृत में लिखा है। तकरीबन 50 सीढ़ियां चढ़कर भक्त मां के दर पर पहुंचते हैं।  मां के दर पर पहुंचते ही साधक का सिर झुक जाता है। मंदिर में मां मंगला की अनुपम प्रतिमा स्थापित है। यहीं से माता रानी के दर्शन होते हैं।

    महत्व

    मंगला गौरी मंदिर में देवी मां की भव्य प्रतिमा स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से जो कोई मां के दर पर आता है, उसकी मनोकामना अवश्य ही पूरी होती है। मां मंगला की पूजा-अर्चना करने से माता रानी शीघ्र प्रसन्न होती हैं। मां अपने भक्तों को कभी खाली हाथ नहीं भेजती हैं। देश-विदेश से लोग मां के दर्शन हेतु मंदिर आते हैं। देवी मां मंगला को परोपकार की देवी भी कहा जाता है। हर मंगलवार के दिन देवी मां गौरी की विशेष पूजा की जाती है। विवाहित महिलाएं मंगलवार के दिन मां मंगला गौरी के निमित्त व्रत रखती हैं। पूजा के समय मां मंगला गौरी को विभिन्न रंग की चूड़ियां, सात प्रकार के फल और पांच प्रकार की मिठाई अर्पित की जाती है।  

    कैसे पहुंचे मंगला गौरी मंदिर?

    भक्तजन यात्रा के सभी माध्यम से गया पहुंच सकते हैं। विमान सेवा के जरिए गया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंच सकते हैं। इसके साथ ही रेल सेवा के माध्यम से भी गया जा सकते हैं। वहीं, सड़क मार्ग के जरिए भी भक्त गया पहुंचते हैं। गया में श्रद्धालुओं के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था की है। देवी मां मंगला गौरी मंदिर तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक मार्ग भी है, जो अक्षयवट से होकर जाता है। इस मार्ग के माध्यम से वाहन जाते हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मार्ग को आकर्षक बनाया जा रहा है। साथ ही तीन मंजिला धर्मशाला का भी निर्माण हो रहा है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।