Chaitra Navratri 2025: काफी प्राचीन है मां मुंडेश्वरी का यह मंदिर, हैरान कर देती हैं इसकी मान्यताएं
देश-विदेश में ऐसे कई मंदिर स्थापित हैं तो अपनी मान्यता और भव्यता को लेकर भक्तों के बीच खासा लोकप्रिय हैं। आज हम पको बिहार में स्थित देवी के एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपनी मान्यताओं के साथ-साथ अपनी प्राचीनता को लेकर भी काफी प्रसिद्ध है। चलिए जानते हैं इस अद्भुत मंदिर के बारे में।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आज हम बात कर रहे हैं मां मुंडेश्वरी मंदिर की, जो देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में भी शामिल है। हर साल खासकर नवरात्र की अवधि में यहां लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर में स्थित माता की मूर्ति मुख्य आकर्षण का केंद्र है। वैसे तो इस मंदिर में हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र की अवधि में यहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिलती है।
मंदिर की खासियत
मां मुंडेश्वरी मंदिर बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर प्रखंड में स्थित है, जो पहाड़ पर लगभग 608 फीट की ऊंचाई पर बना हुआ है। मंदिर में स्थापित माता मुंडेश्वरी की प्रतिमा की बात करें, तो यह मूर्ति बहुत ही जीवंत लगती है। माता मुंडेश्वरी भैंसे पर सवार हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, सृष्टि की रक्षा करने के लिए मां मुंडेश्वरी ने मुंड नामक एक राक्षस का वध किया था, जिस कारण उन्हें मां मुंडेश्वरी के नाम से जाना जाने लगा। यह मंदिर अपनी महिमा के लिए प्रसिद्ध है, जहां नवरात्र के साथ-साथ रामनवमी और शिवरात्रि के मौके पर भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
मंदिर काल और वास्तुकला
पुरातत्वविदों के अनुसार, मंदिर का शिलालेख 349 ई. का है, जो इस मंदिर की प्राचीनता को दर्शाता है। वहीं मुण्डेश्वरी मंदिर की नक्काशी और मूर्तियों उत्तर गुप्तकालीन की बताई जाती हैं। वहीं वास्तुकला की बात करें, तो माता मुंडेश्वरी का मंदिर श्री यंत्र के आधार पर निर्मित है।
मंदिर अष्टकोणीय है, जिसके चारों दिशाओं में एक-एक द्वार है। वहीं मंदिर के पूर्वी भाग में देवी मुण्डेश्वरी की भव्य व प्राचीन मूर्ति बनी हुई है, जो पत्थर की बनी हुई है। इसी के साथ मां मुंडेश्वरी मंदिर के गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित है।
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क्या हैं मान्यताएं
इस मंदिर में एक प्राचीन मान्यता चली आ रही है, जिसके अनुसार, मां मुंडेश्वरी रक्त विहीन बलि स्वीकार करती हैं। जिसके अनुसार, मंदिर का पुजारी मां मुंडेश्वरी के चरणों से चावल को स्पर्श कराकर बकरे पर छिड़क देता है, जिससे वह बेहोश हो जाता है। इसके बाद जब दोबारा मां मुंडेश्वरी से चरणों से स्पर्श कराकर बकरे पर चावल छिड़के जाते हैं, तो बकरा फिर से होश में आ जाता है। इसी बीच मां बलि स्वीकार कर लेती हैं।
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