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    Gochar: किसी व्यक्ति पर कैसे पड़ता है गोचर का प्रभाव, जानिए इसके बारे में

    Updated: Sat, 19 Jul 2025 04:00 PM (IST)

    ऐसा माना जाता है कि कुंडली में जो शुभ-अशुभ योग होते हैं वे तभी प्रभाव में आते हैं जब गोचर ग्रह उन्हें स्पर्श या उत्तेजित करते हैं। इस तरह गोचर हमारे जीवन में छुपी संभावनाओं को जाग्रत करने वाला समय का संकेतक है जैसे बीज में वृक्ष बनने की संभावना हो और गोचर उस संभावना को फलने-फूलने का मौसम प्रदान करे।

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    Gochar: ज्योतिष से जानें गोचर का अर्थ।

    आनंद सागर पाठक, एस्ट्रोपत्री। गोचर का अर्थ है ग्रहों (What is Gochar) की वर्तमान चाल यानी इस समय आकाश में ग्रह किस राशि और भाव में भ्रमण कर रहे हैं। जन्म कुंडली हमारे जीवन की स्क्रिप्ट है, जो जन्म के समय ग्रहों की स्थिति को दर्शाती है, जबकि गोचर उस स्क्रिप्ट का स्टेज है, जो समय-समय पर हमारे जीवन में घटनाओं को सक्रिय करता है।

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    ग्रहों की गति के प्रकार

    ग्रहों की सामान्यतः तीन प्रकार की गतियां होती हैं-

    1. सम (Sama) गति

    इसमें ग्रह सामान्य गति से चलते हैं। इस तरह की गति में ग्रह के फल मिलने की प्रक्रिया शुरू होती है। हालांकि, फल मिलने में समय और धैर्य दोनों की ज़रूरत रहती है।

    2. अतिकारी (Atichari) गति

    इस प्रकार की गति में ग्रह अपेक्षाकृत तेजी से चलते हैं। इससे फलों का शीघ्रता से मिलना संभव होता है। कभी-कभी ग्रहों की इस तेज़ गति के कारण परिणाम हाथ से निकल भी सकता है, क्योंकि ग्रह और व्यक्ति दोनों ही जल्दी में रहते हैं।

    3. वक्री (Vakri) गति (वक्री चाल/पिछे चलना)

    जब ग्रह वक्री होते हैं, तब कार्यों में देरी, हताशा और उलटफेर जैसी स्थितियां बन सकती हैं। जब भी ग्रहों के गोचर का विश्लेषण किया जाता है, तब यह देखना बेहद महत्वपूर्ण होता है कि ग्रह किस प्रकार की गति में हैं।

    लग्न, चंद्रमा और सूर्य से जुड़ा गोचर

    गोचर के प्रभाव (Gochar impact on life) को समझने में यह देखना भी जरूरी है कि लग्न, चंद्रमा और सूर्य पर इसका क्या असर पड़ रहा है।

    • लग्न (Ascendant) शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।
    • चंद्रमा (Moon) मन का प्रतिनिधित्व करता है।
    • सूर्य (Sun) आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है।

    दशा और गोचर का संबंध

    गोचर का प्रभाव समझने के लिए चल रही दशा और अंतरदशा को देखना बेहद महत्वपूर्ण होता है। गोचर का असर दशा और अंतरदशा के स्वामी ग्रहों के संबंध से भी समझा जाता है। उदाहरण के लिए अगर अंतरदशा स्वामी से दूसरे भाव से कोई ग्रह गोचर कर रहा है और दशा धन लाभ का संकेत दे रही है, तो यह गोचर वित्तीय लाभ दिला सकता है।

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    लग्न या चंद्र से गोचर?

    शास्त्रों में जैसे फलदीपिका में, चंद्रमा से गोचर को ज्यादा महत्व दिया गया है। उसमें लिखा है “चन्द्रेषु गोचरेषु” यानी गोचर के फल चंद्र से देखें। हालांकि, व्यवहार में गोचर के परिणाम कई पहलुओं से देखने चाहिए जैसे - सूर्य, चंद्र, लग्न, दशा, अंतरदशा और प्रत्यंतर दशा। साथ ही अष्टकवर्ग (Ashtakavarga) का भी बहुत बड़ा महत्व होता है।

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    गुरु और शनि के गोचर

    • प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य श्री के. एन. राव के अनुसार गुरु और शनि का गोचर अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने गुरु और शनि के डबल ट्रांजिट (दोनों का एक साथ प्रभाव) के महत्व पर जोर दिया है।
    • किसी भाव पर गुरु और शनि दोनों का एक साथ प्रभाव उस भाव से जुड़े अच्छे या बुरे परिणामों के फलीभूत होने में सहायक होता है।
    • उदाहरण यदि दशम भाव (10वां घर) पर गुरु और शनि दोनों का गोचर से असर हो, तो नई नौकरी मिलने या करियर में उन्नति के योग बन सकते हैं।
    • गुरु का गोचर लग्न या चंद्र से आठवें भाव में होने पर भाग्य और सामान्य सौभाग्य में कमी आ सकती है।
    • साढ़ेसाती का समय यानी चंद्र से 12वें, 1वें और 2वें भाव से शनि का गोचर, कुल मिलाकर साढ़े सात साल का समय, जीवन में अहम घटनाओं का कारण बनता है। यह समय कई बार मानसिक दबाव भी ला सकता है।
    • लेकिन यदि शनि शुभ स्थिति में और अच्छे भावों का स्वामी है, तो यह समय जीवन का स्वर्णिम काल भी हो सकता है।
    • शनि का चंद्र से चौथे और दसवें भाव से गोचर होने पर निवास और करियर में बदलाव के योग बनते हैं।
    • शनि का सातवें भाव से गोचर वैवाहिक जीवन में अड़चनों का कारण बन सकता है। इसी तरह राहु और केतु के गोचर को भी देखना जरूरी होता है।
    • पाप ग्रह (जैसे शनि, मंगल, राहु, केतु) सामान्यतः लग्न या चंद्र से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव से गोचर करें तो अच्छे परिणाम दे सकते हैं।

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    लेखक: आनंद सागर पाठक, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।